चंडीगढ़ः पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार (Haryana government) को बड़ा झटका देते हुए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण का कानून रद्द कर दिया है। इस कानून को फरीदाबाद और गुरुग्राम के उद्योगपतियों ने यह कहते हुए चुनौती दी थी कि इस कानून के लागू होने से उत्पादकता, काम की गुणवत्ता और रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
2019 विधानसभा चुनाव जननायक जनता पार्टी ने किया था ऐलान
दरअसल, 2019 विधानसभा चुनाव से पहले जननायक जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसका ऐलान किया था। बाद में गठबंधन सरकार बनने के बाद श्रम विभाग भी जेजेपी के पास चला गया और सरकार ने स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स एक्ट 2020 बनाया। इसमें हरियाणा के युवाओं को नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। निजी कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्टों, साझेदारी फर्मों सहित ऐसे सभी निजी संस्थानों को। यह भी प्रावधान किया गया कि यह आरक्षण केवल उन निजी संस्थानों पर लागू होगा जहां 10 या अधिक लोग कार्यरत हैं और वेतन रुपये से कम है। 30 हजार प्रति माह। इस संबंध में श्रम विभाग ने 6 नवंबर 2021 को एक अधिसूचना भी जारी की थी।
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हाई कोर्ट में दी गई थी चुनौती
इस कानून को फ़रीदाबाद और गुरुग्राम के उद्योगपतियों ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो फरवरी 2022 में इस पर रोक लगा दी गई। इसके खिलाफ हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया था और 4 हफ्ते के भीतर इस पर फैसला लेने को कहा था। लंबी बहस के बाद पिछले महीने हाईकोर्ट में जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस हरप्रीत कौर जीवन ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शुक्रवार को हाई कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया है। पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा के महाधिवक्ता बलदेव राज महाजन ने कहा कि हम जल्द ही हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेंगे। हम सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को बहाल करवाकर हरियाणा मूल के लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान लागू कराएंगे।
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