Friday, December 27, 2024
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Homeअन्यज्ञान अमृतअहोई अष्टमीः संतान की मंगलकामना का पर्व

अहोई अष्टमीः संतान की मंगलकामना का पर्व

हिन्दू समुदाय में करवा चौथ के चार दिन पश्चात और दीपावली से ठीक एक सप्ताह पहले ‘अहोई अष्टमी'(Ahoi Ashtami) का पर्व मनाया जाता है। प्रायः वही स्त्रियां यह त्योहार मनाती हैं जिनके संतान होती है। किन्तु अब यह व्रत निसंतान महिलाएं भी संतान की कामना के लिए करती हैं। ‘अहोई अष्टमी’ व्रत प्रतिवर्ष कार्तिक कृष्ण अष्टमी को किया जाता है और इस वर्ष यह पर्व 05 नवंबर को मनाया जा रहा है। स्त्रियां दिनभर व्रत रखती हैं। सायंकाल से दीवार पर आठ कोष्ठक की पुतली लिखी जाती हैं। उसी के पास सेह और उसके बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पृथ्वी पर चौक पूरकर कलश स्थापित किया जाता है।

मिटते हैं सभी संकट

कलश पूजन के बाद दीवार पर लिखी अष्टमी का पूजन किया जाता है। फिर दूध-भात का भोग लगाकर कथा कही जाती है। आधुनिक युग में अब बहुत सी महिलाएं दीवारों पर चित्र बनाने के लिए बाजार से अहोई अष्टमी के रेडीमेड चित्र खरीदकर उन्हें पूजास्थल पर स्थापित कर उनका पूजन करती हैं। कार्तिक कृष्ण अष्टमी को महिलाएं अपनी संतान की दीर्घ आयु तथा उनके जीवन में समस्त संकटों या विध्न-बाधाओं से उनकी रक्षा के लिए यह व्रत रखती हैं। कुछ स्थानों पर इस दिन धोबी मारन लीला का भी मंचन होता है, जिसमें श्रीकृष्ण द्वारा कंस द्वारा भेजे गए धोबी का वध करते प्रदर्शन किया जाता है। अहोई माता के रूप में अपनी-अपनी पारिवारिक परम्परानुसार लोग माता पार्वती की पूजा करते हैं।

प्रचलित हैं कई कथाएं 

अहोई अष्टमी व्रत के संबंध में कुछ कथाएं प्रचलित हैं। ऐसी एक कथानुसार प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात लड़के थे। दीपावली से पहले साहूकार की स्त्री घर की लीपा-पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई और कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। दैव योग से उसी जगह एक सेह की मांद थी। सहसा उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई, जिससे सेह का बच्चा तत्काल मर गया। अपने हाथ से हुई हत्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था? उसने पश्चाताप किया और दुःखी होकर अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उनके बेटे की मृत्यु हो गई। फिर अचानक साल भर में उसके दूसरे, तीसरे और इसी तरह सभी बेटे मर गए। महिला बेहद परेशान रहने लगी। एक दिन उसने अपने पड़ोस की स्त्रियों से विलाप करते हुए कहा कि उसने जानबूझ कर कभी कोई पाप नहीं किया। हाँ, एक बार खदान में मिट्टी खोदते समय अनजाने में मैंने एक बच्चे को मार डाला और उसके बाद मेरे सातों बेटे मर गये।

यह सुनकर पड़ोस की वृद्ध महिलाओं ने साहूकार की पत्नी को सांत्वना दी और कहा कि तुमने यह बात बताकर जो पश्चाताप किया है, उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। उसी अष्टमी के दिन तुम देवी भगवती की शरण में जाकर सेह और सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और क्षमा मांगो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारे पाप धुल जायेंगे। साहूकार की पत्नी ने वृद्ध महिलाओं की सलाह मानकर कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को व्रत और प्रार्थना की। ऐसा वह हर साल नियमित रूप से करने लगी। बाद में उनके सात पुत्र हुए। तभी से अहोई व्रत की परंपरा प्रचलित हो गई।

अहोई व्रत के संबंध में एक और कथा प्रचलित है। बहुत समय पहले की बात है, झाँसी के पास एक शहर में चंद्रभान नाम का एक साहूकार रहता था। उनकी पत्नी चंद्रिका अत्यंत सुंदर, सर्वगुण संपन्न, सती साध्वी, विनम्र, चरित्रवान और बुद्धिमान थीं। उनके कई बेटे और बेटियाँ थीं लेकिन वे सभी बचपन में ही गुजर गये थे। संतान न होने के कारण दोनों पति-पत्नी बहुत दुःखी रहते थे। वे दोनों प्रतिदिन मन में यही सोचते रहते थे कि हमारी मृत्यु के बाद इस अपार धन-संपत्ति की देखभाल कौन करेगा? एक बार दोनों ने वनवास लेने और अपना शेष जीवन भगवान की भक्ति में बिताने का फैसला किया।

यही विचार कर दोनों अपना घर त्यागकर वन की ओर चल दिए। रास्ते में जब थक जाते तो रुककर थोड़ा विश्राम कर लेते और फिर चल पड़ते। इस प्रकार धीरे-धीरे वे बद्रिका आश्रम के निकट शीतल कुण्ड जा पहुंचे। वहां पहुंचकर दोनों ने निराहार रहकर प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया। निराहार व निर्जल रहते हुए जब उन्हें सात दिन हो गए तो आकाशवाणी हुई कि तुम दोनों प्राणी अपने प्राण मत त्यागो। यह सब दुख तुम्हें तुम्हारे पूर्व पापों से भोगना पड़ा है। यदि तुम्हारी पत्नी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजन करे तो अहोई देवी प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन देंगी। तुम उनसे दीर्घायु पुत्रों का वरदान मांग लेना। व्रत के दिन तुम राधाकुण्ड में स्नान करना।

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चन्द्रिका ने आकाशवाणी के बताए अनुसार विधि-विधान से अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजा-अर्चना की और तत्पश्चात राधाकुण्ड में स्नान किया। जब वे स्नान इत्यादि के बाद घर पहुंचे तो उस दंपति को अहोई माता ने साक्षात दर्शन देकर वर मांगने को कहा। साहूकार दंपति ने हाथ जोड़कर कहा, ”हमारे बच्चे कम आयु में ही परलोक सिधार जाते हैं। आप हमें बच्चों की दीर्घायु का वरदान दें।” ”तथास्तु!” कहकर अहोई माता अंतर्ध्यान हो गईं। कुछ समय के बाद साहूकार दंपति को दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति हुई और वे सुखपूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। देवी पार्वती को अनहोनी को होनी बनाने वाली देवी माना गया है, इसलिए अहोई अष्टमी पर माता पार्वती की पूजा की जाती है और संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन की कामना की जाती है।

योगेश कुमार गोयल

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