Friday, January 3, 2025
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डॉल्फिनः अद्भुत प्रजाति को बचाने के प्रयास

 

डॉल्फिन एक अद्भुत प्रजाति है, जो अपनी बुद्धिमत्ता और करिश्माई आकर्षण के लिए जानी जाती है। भारत में यह विलक्षण जीव सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय दोनों रूपों में महत्वपूर्ण है। ये जीव अपनी चपलता और चंचल व्यवहार दोनों के लिए जाने जाते हैं, जिससे वे वन्य जीवन पर नजर रखने वालों के बीच लोकप्रिय हैं। भारत अपने तटीय और मीठे पानी वाले क्षेत्रों में रहने वाली डॉल्फिन प्रजातियों की समृद्ध विविधता से परिपूर्ण है। इंडो-पैसिफिक हंपबैक डॉल्फिन और गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन प्रजातियां सबसे मुख्य हैं। ये डॉल्फिन प्रजातियां अपने पर्यावास के आसपास पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन प्रजाति अपने गुलाबी रंग और मीठे पानी के वातावरण के लिए अद्वितीय अनुकूलन के साथ, गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों में पाई जाने वाली एक विशिष्ट प्रजाति है।

हालांकि, डॉल्फिन संरक्षण को पर्यावास विखंडन, जल प्रदूषण, मत्स्य पालन सहित मानवीय हस्तक्षेप, बांध और बैराज तथा जलवायु परिवर्तन जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत में डॉल्फिन संरक्षण के लिए प्राथमिक चुनौती उसके पर्यावास का क्षरण है। तेजी से शहरीकरण, औद्योगीकरण और अस्थिर कृषि पद्धतियों के कारण जल प्रदूषण, पर्यावास का विनाश होने के साथ-साथ नदियों और उनके मुहानों में जल का प्रवाह कम हो गया है। ये परिवर्तन उस नाजुक इको सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस पर डॉल्फिन अपने अस्तित्व के लिए निर्भर हैं। कृषि के साथ-साथ औद्योगिक और घरेलू कचरे से होने वाला प्रदूषण डॉल्फिन के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। प्रदूषण के घटक जल स्रोतों को दूषित करते हैं, इनके लिए खाद्य की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं, और खाद्य में विषाक्त पदार्थों या जैवसंचय के माध्यम से डॉल्फिन को सीधे नुकसान पहुंचा सकते हैं।

डॉल्फिन भी अक्सर मछली पकड़ने के दौरान और समुद्र के औद्योगीकरण का अनजाने शिकार बन जाती हैं। वे मछली पकड़ने के जाल में फंस जाती हैं, जिससे वे घायल होती हैं या उनकी मृत्यु हो जाती है। नदियों पर बांधों और बैराजों के निर्माण से पानी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है और डॉल्फिन की आबादी अलग-थलग हो जाती है। यह विखंडन उनकी आनुवंशिक विविधता को कम करता है और उन्हें अंतः प्रजनन और स्थानीय तौर पर विलुप्त होने के लिए बाध्य करता है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, जैसे समुद्र के बढ़ते तापमान और समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का डॉल्फिन की आबादी पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मछलियों की अनियमित संख्या और महत्वपूर्ण पर्यावासों का नुकसान इनके संभावित परिणाम हैं।

इनके महत्व, पर्यावरणीय लाभ और मानव कल्याण में योगदान को ध्यान में रखते हुए, भारत समुद्री और नदियों में पाई जाने वाली दोनों डॉल्फिन के संरक्षण में अग्रणी है। भारत सरकार द्वारा 2020 में प्रोजेक्ट डॉल्फिन लॉन्च किया गया। प्रोजेक्ट डॉल्फिन में विशेष रूप से गणना और अवैध शिकार विरोधी गतिविधियों में आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से जलीय और समुद्री डॉल्फिन और जलीय पर्यावास दोनों का संरक्षण शामिल है। यह परियोजना मछुआरों और अन्य नदी/समुद्र पर निर्भर आबादी को शामिल करेगी और स्थानीय समुदायों की आजीविका में सुधार करने का प्रयास करेगी। डॉल्फिन के संरक्षण के लिए ऐसी गतिविधियों की भी परिकल्पना की जाएगी, जो नदियों और महासागरों में प्रदूषण को कम करने में भी मदद करेगी।

इसके अतिरिक्त, गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में नामित किया गया है। गंगा नदी के किनारे डॉल्फिन के महत्वपूर्ण पर्यावासों को विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य, बिहार जैसे संरक्षित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया गया है। नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन और जलीय पर्यावासों का हित सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना (2022-2047) विकसित की गई है और विभिन्न हितधारकों और संबंधित मंत्रालयों की भूमिका की पहचान की गई है।

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इसलिए, भारत में डॉल्फिन का संरक्षण एक बहुआयामी प्रयास है, जिसके लिए सरकारी निकायों, गैरसरकारी संगठनों, स्थानीय समुदायों और जनता के बीच समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। पर्यावास क्षरण, प्रदूषण, मत्स्य पालन, ध्वनि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का समाधान करके, भारत अपने करिश्माई समुद्री डॉल्फिन के दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित कर सकता है और अपने समुद्री इको सिस्टम के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकता है। भारतीय जल में इन उल्लेखनीय प्राणियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए संरक्षण के प्रयासों के प्रति निरंतर समर्पण आवश्यक है।

लीना नंदन

 

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