Sunday, November 17, 2024
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Doordarshan: दूरदर्शन ने अपने सफर के 64 साल किए पूरे, ‘दूसरों के शोर-शराबे के बीच बरकरार वही शालीनता ‘

Doordarshan completes 64 years

नई दिल्लीः दूरदर्शन के लोगो के साथ प्रसारण की शुरुआत में धुन बजते ही लोगों के चेहरे खिल उठते थे। उस समय टीवी का मतलब दूरदर्शन (Doordarshan) था। सत्तर और अस्सी के दशक में देश के लोग दूरदर्शन के साथ बड़े हुए, हंसे-रोये और हिंदी और अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं का उच्चारण भी सही करते रहे। हर कोई दूरदर्शन का प्रसारण शुरू होने का बेसब्री से इंतजार करता था। चाहे समाचार हो, रामायण-महाभारत हो या हर शुक्रवार प्रसारित होने वाला नये गानों का कार्यक्रम चित्रहार।

दूरदर्शन अपने सफर के 64 साल किए पूरे

सबका समय तय था। लोग अपने हिसाब से अपना काम निपटाकर बंद टीवी के सामने बैठ जाते थे। दूरदर्शन (Doordarshan) के सफर को लेकर अस्सी और नब्बे के दशक के ज्यादातर लोगों के मन में ऐसी ही खट्टी-मीठी यादें होंगी। पांच मिनट के समाचार कार्यक्रम से शुरू हुआ यह सफर आज 24 घंटे के दैनिक सफर में बदल गया है। आज (शुक्रवार) दूरदर्शन अपने 64 साल के सफर को पूरा कर 65वें साल में प्रवेश कर रहा है। इस दौरान दूरदर्शन कई पड़ावों से गुजरा है और आज वह निजी टीवी चैनलों के बीच अपना स्थान बनाए हुए है और अपनी गति से लोगों के साथ सूचनाएं साझा कर रहा है। इस अवसर पर दूरदर्शन के वरिष्ठ समाचार पाठकों ने दूरदर्शन को बधाई दी और अपने खट्टे-मीठे अनुभव और यादें ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के साथ साझा कीं।

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सत्तर के दशक से लेकर कई सालों तक दूरदर्शन का जाना-पहचाना चेहरा रहे शम्मी नारंग का कहना है कि दूरदर्शन के साथ उनका सफर बेहद शानदार और यादगार रहा है। आवाज के जादूगर और दूरदर्शन के सुनहरे युग को जीने वाले शम्मी कहते हैं कि लोग अब उसी युग में लौटना चाहते हैं जहां वे देश और समाज से जुड़ी विश्वसनीय खबरें आराम से देख सकें। शम्मी नारंग बताते हैं कि दूरदर्शन के लोगों पर इतना भरोसा था कि वह यहीं से हिंदी का मजबूत उच्चारण और वॉयस मॉड्यूलेशन सीखते थे। यह गर्व की बात होती थी कि लोग आपको आदर्श मानते थे।

अस्सी के दशक में दूरदर्शन के कदम तेजी से बढ़े

उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक में दूरदर्शन ने तेजी से प्रगति की। धीरे-धीरे बच्चा जवान हो रहा था। दूरदर्शन अपनी अलग पहचान बना रहा था। दो चीज़ें बदल गईं। इसका प्रसारण राष्ट्रीय स्तर पर किया गया। इसका रंग काला और सफेद था। ख़बरें पढ़ने का अंदाज़ बदला। दूरदर्शन सिर्फ दो-तीन लोगों पर निर्भर नहीं था। लोगों को अंग्रेजी और हिंदी में बेहतरीन तरीके से सामग्री परोसी गई। और फिर प्रांतीय भाषा के चैनल शुरू हुए। कहीं प्रसारण का ताना-बाना अलग-अलग रंगों से खूबसूरती से बुना गया था। अस्सी का ये दशक सबसे सुनहरा था। उन्हें उम्मीद है कि आने वाले सालों में भी दूरदर्शन निजी चैनलों के बीच अपना दबदबा कायम रखेगा।

आकाशवाणी के बाद कृषि समाचार और फिर समाचार पढ़ने का सफर उन दिनों अपने आप में दिलचस्प था। कागज के पन्नों पर लिखी खबरों को पढ़ने के साथ-साथ उसे सामने देखने की चुनौती भी बड़ी थी। कई वर्षों तक दूरदर्शन को सीखने और सिखाने के साथ-साथ बदलते भी देखा। उनका कहना है कि 1990 के बाद प्राइवेट टीवी के आने से दूरदर्शन में कई बदलाव आए लेकिन आज भी शालीनता वैसी ही है। भीड़ में भी दूरदर्शन ने शान से अपना अस्तित्व कायम रखा।

इंडिया टेलीविजन के नाम से हुई थी शुरूआत

गौरतलब है कि दूरदर्शन (Doordarshan) की शुरुआत 15 सितंबर 1959 को इंडिया टेलीविजन के नाम से हुई थी, जिसे बाद में दूरदर्शन नाम दिया गया। 1965 में ऑल इंडिया रेडियो के एक भाग के रूप में नियमित दैनिक प्रसारण शुरू हुआ। 1972 में, इस सेवा को मुंबई (तब बॉम्बे) और अमृतसर तक बढ़ा दिया गया था। 1975 तक यह सुविधा सात शहरों में शुरू हो चुकी थी। राष्ट्रीय प्रसारण 1982 में शुरू हुआ। इस वर्ष, रंगीन टेलीविजन को जनता के लिए पेश किया गया। वर्तमान समय में दूरदर्शन का परिवार बहुत बड़ा हो गया है। आज दूरदर्शन के पास लगभग दो दर्जन चैनल हैं। यह देश का सबसे बड़ा प्रसारण मंच है।

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