कानपुरः श्रावण माह में लोग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह की पूजा-अर्चना करते हैं, लेकिन कानपुर के खेरेश्वर मंदिर में भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां के शिवलिंग की पूजा सबसे पहले श्रावण माह में अदृश्य शक्ति द्वारा की जाती है। यह अदृश्य शक्ति कौन है यह तो कोई नहीं जानता, लेकिन मंदिर के दरवाजे खुलने से पहले ही शिवलिंग पर जल और जंगली फूल चढ़ा हुआ मिलता है। ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा ने सबसे पहले यहीं पर शिवलिंग की पूजा की थी। इसलिए श्रावण मास इस मंदिर के लिए मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष बन जाता है।
सावन का महीना शिव की भक्ति को समर्पित है, इस पूरे महीने में जो लोग पूजा-अर्चना करते हैं उन्हें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। शहर व आसपास के इलाकों में कई प्राचीन शिव मंदिर हैं, जहां सावन माह में पूजा-अर्चना के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है खेरेश्वर मंदिर। यह मंदिर शहर से लगभग 40 किमी दूर शिवराजपुर में गंगा तट पर स्थित है। इस पौराणिक मंदिर में शिवलिंग के दर्शन से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां दर्शन के लिए कानपुर, उन्नाव, कानपुर देहात,कन्नौज समेत कई दूर-दराज जिलों से श्रद्धालु आते हैं।
ऐसा माना जाता है कि श्रावण माह में हर दिन मंदिर के दरवाजे खुलने से पहले कोई अदृश्य शक्ति इस मंदिर के शिवलिंग की पूजा करती है। लोग कहते हैं कि यह अदृश्य शक्ति महाभारत काल का अश्वत्थामा है, जो अपराजित और अमर है। यहां के पुजारी पीढ़ी दर पीढ़ी बाबा खेरेश्वर की सेवा करते आ रहे हैं। पुजारियों के पूर्वजों के अनुसार, यहां सुबह के समय शिवलिंग के ऊपर जंगली फूल और जल चढ़ाया जाता है, जबकि रात में शिवलिंग को स्नान और साफ करने के बाद मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इस शिवलिंग का पता 500 साल पहले मिला था।
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दर्शन मात्र से दूर होती हैं बाधाएं
पुजारी कल्लू बाबा ने बताया कि खेरेश्वर महादेव के दर्शन से बाधाएं दूर होती हैं। श्रावण मास में दुग्धाभिषेक का विशेष महत्व है। मंदिर में प्रतिदिन भक्तों को पूजा-अर्चना एवं दर्शन कराया जा रहा है। प्रत्येक सोमवार को भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। मंदिर के पास रहने वाले पुजारी ने बताया कि उन्होंने कई बार सफेद लिबास में एक लंबे कद के व्यक्ति को मंदिर में आते-जाते देखा है। कुछ पूछने पर वह कुछ नहीं बोलता और तेज रोशनी से गायब हो जाता है जो कि अश्वत्थामा है। खेरेश्वर धाम से लगभग 100 मीटर की दूरी पर अश्वत्थामा का मंदिर भी बना हुआ है। हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित है कि सतयुग, त्रेता और द्वापर युग के कुल दस लोग अमर होकर आज भी इस धरती पर मौजूद हैं। अश्वत्थामा भी उनमें से एक है।
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