अयोध्याः रामनगरी के श्री राजगोपाल मन्दिर के वयोवृद्ध दिवंगत महंत कौशल किशोर दास फलाहारी बाबा के पार्थिव शरीर को साधुशाही परंपरा के तहत शोभायात्रा निकालकर अयोध्या के प्रमुख संतों-महंतों के समक्ष सरयू में जल समाधि दी गई। लगभग 90 वर्ष की अवस्था में पिछले कई दिनों से वह बीमारी के करण अस्वस्थ चल रहे थे। कुछ दिन पूर्व उन्हें लखनऊ के हॉस्पिटल में भर्ती किया गया, जहां शनिवार सुबह अंतिम सांस ली। शनिवार को ही उनका पार्थिव शरीर लखनऊ से अयोध्या मन्दिर में लाया गया और मंदिर में भक्तों के दर्शन के लिए रखा गया।
रविवार को राजगोपाल मंदिर से हनुमान गढ़ी, अशर्फी भवन, गोलाघाट, लक्ष्मण किला, हनुमत निवास के रास्ते नया घाट होते हुए यात्रा सरयू घाट पहुंची, जहां उन्हें विधि विधान के साथ अंतिम विदाई दी गई। इस अवसर पर मणिराम छावनी के उत्तराधिकारी महंत कमल नयन दास, श्रीराम वल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमार दास, लक्ष्मण किला महंत मैथिली रमण शरण, तिवारी मंदिर के महंत गिरीश त्रिपाठी, हनुमंत निवास महंत मिथिलेश नंदनी शरण, संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य डॉ. रामानंद शुक्ल, युवा साहित्यकार यतीन्द्र मोहन मिश्र, सद्गुरु कुटी महंत अवध बिहारी दास,रामकचेहरी चारों धाम मन्दिर व सरयू आरती संयोजक महंत शशिकांत दास, डांडिया मन्दिर महंत गिरीश दास, अयोध्या के सांसद लल्लू सिंह, प्रथम मेयर ऋषिकेश उपाध्याय सहित सैकड़ों की संख्या में लोग अंतिम दर्शन यात्रा में उपस्थित रहे।
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बलरामपुर के निवासी थे फलाहारी बाबा
फलाहारी बाबा बलरामपुर के निवासी थे और बाल्यकाल में ही वह अयोध्या आ गए। उन्होंने उस समय लक्षमण घाट क्षेत्र स्थित हनुमत निवास के तत्कालीन महंत सिया रघुनाथ शरण से प्रेरित होकर उनके शिष्य बने। जहां पर इनकी शिक्षा दीक्षा हुई। युवा अवस्था तक हनुमत सदन में रहकर विरक्त साधुशाही की परंपरा से जुड़े। 70 वर्षों से अनाज ग्रहण नहीं किया था। सिर्फ दूध और फलाहार ही खाते रहे हैं।अयोध्या में चर्चा है कि उन्होंने गुरु महंत सिया रघुनाथ शरण के निधन के बाद हनुमत निवास का महंत बनने से इनकार करते हुए गुरु भाई हरेराम शास्त्री को महंत बना दिया। वर्ष 1985 में अयोध्या के प्रसिद्ध मंदिर राजगोपाल के तत्कालीन महंत मधुसूदन दास का भी निधन हुआ। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट से जुड़े लोगों ने फलाहारी बाबा को ही राजगोपाल का महंत बना दिया था, जिसके बाद से अब तक राजगोपाल के महंत बने रहे।
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