Monday, November 18, 2024
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पहला बैसाख : बांग्ला नववर्ष पर बंगाल के मंदिरों में उमड़ी भीड़, सुबह से ही श्रद्धालुओं का लगा तांता

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में शनिवार को पोयला (पहला) बैसाख यानी बांग्ला नववर्ष को लेकर राज्य भर में उत्साह है। दुर्गा पूजा के बाद बंगाल में मनाए जाने वाले इस सबसे बड़े पर्व में राज्य भर से लोग सुबह से ही विभिन्न मंदिरों में पूजा-अर्चना करने पहुंच गए हैं। नया बांग्ला कैलेंडर वर्ष 1430 आज से शुरू हो गया है।

आज बंगाल में प्रथा के अनुसार, बंगाली भाषी एक दूसरे को मिठाई खिलाते हैं और बंगाली नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। आज शनिवार होने के कारण सभी सरकारी कार्यालयों में अवकाश भी है, इसलिए कोलकाता के शक्तिपीठ, कालीघाट, दक्षिणेश्वर, कालीबाड़ी झील के अलावा बीरभूम के प्रसिद्ध शक्तिपीठ तारापीठ व अन्य मंदिरों में सुबह से ही मत्था टेकने के लिए लोगों की लंबी कतार लग गई. है। बूढ़े, जवान, जवान, बच्चे, औरत हर उम्र के लोग नए कपड़े पहने सड़कों पर देखे जा सकते हैं। विभिन्न मंदिरों में भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं।

नियमानुसार आज बंगाली व्यवसायी नए खाते की पूजा करते हैं और नई खाता बही भी आज से शुरू होती है। बंगाल में दुर्गा पूजा के बाद मनाए जाने वाले इस सबसे बड़े त्योहार का अपना एक इतिहास है। इसकी शुरुआत बंगाल के महान हिंदू शासक शशांक के समय से मानी जाती है। मौर्य वंश के इस शासक का राज्याभिषेक वैशाख के प्रथम दिन ही हुआ था और तभी से नव बंगाली संवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। 600 से 700 ईस्वी में शुरू हुए शशांक के शासन को बंगाली शासन का गौरवशाली वर्ष भी कहा जाता है। तब बंगाल राज्य की सीमा पूरे देश में सबसे बड़ी थी और शशांक के शासन में हर समुदाय के लोग स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन कर सकते थे। बैसाख महीने के पहले दिन से मनाए जाने वाले इस त्योहार से बंगाली समुदाय की बंगाली होने की भावना भी जुड़ी हुई है। बाद में इसे मुगल बादशाह अकबर और बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खान ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया और बंगाली कैलेंडर भी घोषित कर दिया।

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संस्कार भारती के क्षेत्र प्रमुख सुभाष भट्टाचार्य ने हिंदुस्थान समाचार से खास बातचीत में बताया कि आज से बांग्ला नववर्ष 1430 की शुरुआत हो चुकी है. इतिहास को कई जगहों पर तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है कि इसकी शुरुआत अकबर ने की थी जबकि महाराजा शशांक ने बंगाली नववर्ष की शुरुआत वैशाख के पहले दिन अपने राज्याभिषेक से की थी, अकबर के शासन से बहुत पहले। उन्होंने नए कैलेंडर भी जारी किए जो हिंदू कैलेंडर प्रणाली के अनुसार हिंदू वैदिक सौर मास पर आधारित हैं। इसे बांग्ला कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है।

यह त्योहार अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है

उल्लेखनीय है कि पोयला बैसाख का त्योहार पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम, त्रिपुरा और ओडिशा के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन बंगाली समुदाय अपने घरों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों के मुख्य दरवाजों पर रंगोली बनाते हैं। इसके अलावा लाल रंग का स्वास्तिक बनाना भी शुभ माना जाता है। मुख्य रूप से प्रथम पूज्य गणेश जी और सुख-समृद्धि की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। बंगाली कैलेंडर भी कई जगहों पर वितरित किया जाता है। कुछ जगहों पर मंदिरों में कुमारी पूजा भी की जाती है और देवी की भी पूजा की जाती है।

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