Friday, December 20, 2024
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Chandrashekhar Azad: प्रयागराज का आजाद उद्यान, गवाह है अपने वीर सपूत की दिलेरी और बलिदान का

 

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लखनऊः 27 फरवरी की तारीख कई अहम वजहों से देश और दुनिया के इतिहास में दर्ज है। यह वही तारीख है जब क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद चिरनिद्रा में लीन हो गए थे। 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के अल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश पुलिस से घिरे होने पर भारत के वीर सपूत आज़ाद ने खुद को गोली मार ली थी। 27 फरवरी 1931 को वह अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। क्रांतिकारी आजाद की आज पुण्यतिथि है। प्रयागराज का अल्फ्रेड पार्क आज चंद्रशेखर आजाद पार्क या चंद्रशेखर आजाद उद्यान के नाम से जाना जाता है। यह उद्यान हमेशा वीर सपूत को श्रद्धांजलि देता है।

बता दें कि क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। चंद्रशेखर आजाद में गांधी जी का प्रभाव उनके क्रांतिकारी जीवन के प्रारम्भिक दिनों में ही दिखाई देता है। बाद में स्वयं चंद्रशेखर आजाद ने विचारधारा बनकर अंग्रेजों को संकट में डाल दिया। आज़ाद की क्रांतिकारी कहानी और विचारधारा ने स्वतंत्रता प्रेमियों की पूरी पीढ़ी को प्रभावित किया है। सरदार भगत सिंह भी उनके अनुयायी थे।

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15 साल की उम्र में असहयोग आंदोलन में गिरफ्तारी के बाद जज को दिए गए गांधीजी के जवाबों ने उन्हें मशहूर कर दिया। जज के पूछने पर उसने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्र, घर का पता जेल बताया। इससे नाराज होकर जज ने उसे 15 कोड़ों की सजा सुनाई। वह हर कोड़े पर वंदे मातरम और महात्मा गांधी की जय बोलते रहे। तभी से उनका नाम आजाद हो गया।

असहयोग आंदोलन के दौरान जब गांधीजी ने चौरीचौरा की घटना के कारण आंदोलन वापस ले लिया तो आजाद का गांधीजी से मोहभंग हो गया। इसके बाद उनकी मुलाकात बिस्मिल खां से हुई। आज़ाद ने बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों के साथ 9 अगस्त, 1925 को काकोरी में चलती ट्रेन को रोककर ब्रिटिश खजाने को लूट लिया। काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन को झकझोर कर रख दिया था। ब्रिटिश सरकार आजाद और उनके साथियों के पीछे पड़ी, लेकिन आजाद बार-बार पुलिस को चकमा देने में पूरी तरह सफल रहे।

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इसके बाद 1928 में लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद आजाद ने सांडर्स को मारने की योजना बनाई। आजाद की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और राजगुरु लाजपत राय 17 दिसंबर 1928 को लाहौर के पुलिस अधीक्षक के कार्यालय के बाहर एकत्र हुए। जैसे ही सांडर्स अपने अंगरक्षकों के साथ बाहर आया, भगत सिंह और राजगुरु ने उस पर गोली चला दी और उसे मार डाला।

इसके बाद सांडर्स के अंगरक्षकों ने भगत सिंह और राजगुरु का पीछा करना शुरू किया तो आजाद ने उन अंगरक्षकों को गोली मार दी। आजाद ताउम्र अपने नाम के अनुरूप स्वतंत्र होना चहते थे। उन्होंने प्रण लिया था कि वे कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे और अंग्रेजों को उन्हें फांसी देने का मौका नहीं मिलेगा। आजाद ने अपना वादा पूरी तरह निभाया। मौत को गले लगाते वक्त आजाद महज 24 साल के थे।

जब डरकर अंग्रेजों ने कटवा दिया पेड़

27 फरवरी 1931 को प्रयागराज (अब इलाहबाद) के अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों के साथ आजाद की भीषण मुठभेड़ हुई थी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के दिल में क्रांतिकारियों का खौफ पैदा कर दिया था। इस मुठभेड़ में जब आजाद के पास गोलियां खत्म हो गईं तो उन्होंने खुद को गोली मार ली लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हालांकि जिस पेड़ की ओट लेकर आजाद, अंग्रेजों की फायरिंग का मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे, अंग्रेजों ने आजाद की मौत के बाद डरकर उस पेड़ को कटवा दिया था।

बताया जाता है कि इस पेड़ पर लोगों ने कई जगह आजाद लिख दिया था। इतना ही लोग यहां की मिट्टी भी उठा ले गए थे। आजाद की मौत के बाद इस जगह पर लोगों हुजुम जुटने लगा और लोग फूल-मालाओं के साथ इस जगह की दीप जलाकर आरती करने लगे थे। लेकिन अंग्रेजों ये रास नहीं आया और रातों-रात उस पेड़ को जड़ से कटवा दिया।

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