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400 साल पुरानी थेवा कला को बढ़ावा दे रहीं प्रविता, तकनीक से संवार रहीं भविष्य

पुणे: राजस्थान के प्रतापगढ़ की करीब 400 साल पुरानी थेवा कला को प्रविता कटारिया विस्तार दे रही हैं। सोने पर उकेरी जाने वाली यह कला बदलते समय के साथ केवल राजस्थान तक ही सीमित होकर रह गई थी। मूल रूप से प्रतापगढ़ की रहने वाली प्रविता ने इस कला को व्यवसाय के रूप में अपनाया और महाराष्ट्र के पुणे में स्थापित किया। यही नहीं, वे देश के विभिन्न राज्यों समेत विदेशों में भी इसे पहुंचा रही हैं। सोने के आभूषणों पर बने इन डिजाइनों को लोग खासा पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि देश के कई ज्वेलरी डिजाइनिंग संस्थानों ने भी इस कला को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। यही नहीं, इस कला को सीखने वालों में भी बढ़ोतरी हो रही है।

प्रविता कटारिया कहती हैं कि कारीगरों में भी इस कला के लिए रुझान आया है। इससे जुड़े कारीगर नौ बार राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके हैं। इतना ही नहीं, प्रविता बताती हैं कि जब उन्होंने थेवा कला के आभूषणों को दिल्ली की एक प्रदर्शनी में प्रस्तुत किया तो लोगों ने इन्हें खूब पसंद किया। पहली बार में ही उनके हजारों की कीमत के आभूषण बिक गये और एक साथ दर्जनों सेट्स के ऑर्डर भी मिल गये। इसके बाद प्रविता ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और प्रदर्शनी व सोशल मीडिया की सहायता से अपने आभूषणों का प्रचार किया। देखते ही देखते उनके आभूषणों की मांग बढ़ गई। उन्होंने 2013 में अपनी वेबसाइट लांच की और थेवा कला को जानी-मानी हस्तियों तक पहुंचाया।

प्रविता थेवा कला के साथ सोने के आभूषणों में मीनाकारी कला को भी बढ़ावा दे रही हैं। इसे भी मार्केट में खूब पसंद किया जा रहा है। अब केवल वे सोना ही नहीं, बल्कि मेटल, जेमस्टोन लकड़ी व मार्बल से भी वे हैंडीक्राफ्टस बनाकर अपनी वेबसाइट पर इनकी बिक्री शुरू कर दी है। उनकी वेबसाइट पर दो हजार हस्तनिर्मित उत्पाद उपलब्ध हैं। इनमें शादी, घर के लिए व काॅरपोरेट उपहारों की विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। प्रविता न सिर्फ देश-दुनिया में इस कला को पहुंचा रही हैं, बल्कि रोजगार के नये अवसरों का भी सृजन कर रही हैं।

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परिवार का पूरा सहयोग –

प्रविता आज अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार को देती हैं। वह कहती हैं कि इस काम को करने में उनके पति नितेश व दोनों बेटियां काफी सहयोग करती हैं। वे इन आभूषणों के डिजिटल व ऑनलाइन मार्केटिंग का कार्य देखते हैं। प्रविता ने अपने भविष्य की योजनायें भी बताईं। वे कहती हैं कि भविष्य में वे हस्तनिर्मित वस्तुओं का सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका व मिडिल ईस्ट जैसे देशों में एक्सपोर्ट करेंगी।

सरकार से अपेक्षा –

प्रविता ने बताया कि देश में कृषि के बाद हस्तशिल्प सबसे बड़ा उद्योग है। इस व्यवसाय में लगभग ढाई करोड़ लोग प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इसमें असीम संभावनायें भी हैं, लेकिन अभी भी यह सेक्टर अनदेखी का शिकार है। सरकार के सहयोग से यह व्यवसाय नई ऊंचाइयां छू सकता है। वहीं, एक्सपोर्ट मार्केट को बढ़ावा देने के लिए ऑनलाइन बिजनेस को अपनाया जा सकता है। ज्वेलरी डिजाइनिंग संस्थानों को भी प्राइवेट पब्लिक की मदद लेनी चाहिए, जिससे हस्तनिर्मित व्यवसाय को नई दिशा मिल सके।

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