जगदलपुर: बस्तर जिले के पशु एवं चिकित्सा विभाग द्वारा जिले के अलग-अलग इलाकों से लिए गए लंपी वायरस के लक्षण वाले 50 से अधिक मवेशियों की सैंपलों जांच के लिए भेजा गया था, जिसमें 17 मवेशियों की रिपोर्ट लंपी वायरस पॉजिटिव आई है। इस रिपोर्ट के बाद विभाग में हडकंप मच गया है। इससे बचने के लिए विभाग के पास सबसे बड़ा हथियार टीकाकरण है। जिसके लिए विभाग मैदान में उतर भी चुका है। बावजूद इसके जिले के कितने इलाके में लंपी वायरस फैला है इसकी ठीक ठीक जानकारी विभाग के पास नहीं है। वर्तमान में देश के 15 से भी अधिक राज्यों में इस बीमारी के फैलने की पुष्टि हो चुकी है।
लंपी वायरस एक त्वचा एवं संक्रमित रोग है जो एक पशु से दुसरे पशु को हो जाता है। इसका संक्रमण मुख्य रूप से मच्छरों, मक्खियों, तत्तैयो, जूं आदि से फैल सकता है। इसके अलावा पशुओं के सीधे संपर्क में आने से भी फैल सकती है। खासकर साथ खाने / दूषित खाने और पानी के सेवन करने से भी ये बीमारी फैल सकती है। लंपी एक बहुत ही तेजी से फैलने वाला वायरस है। इस बीमारी में पशुओं की त्वचा में गांठदार या ढेलेदार दाने बन जाते हैं। इसको कैपरी पॉक्स वायरस के तौर पर भी जाना जाता है, इसको एलएसडीवी कहते हैं। यह वायरस एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है। लंपी वायरस जीन्स में तीन प्रजातियां होती हैं जिसमें शीप पॉक्स, गोट पॉक्स और लंपी स्किन डिसीज वायरस कहा जाता है।
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इस बीमारी से पशुओं को बचाने के लिए समय पर लक्षणों की पहचान कर उनके आधार पर इलाज शुरू कर देना ही एकमात्र तरीका है। लंपी वायरस की बीमारी से लड़़़ना इसलिए भी चुनौती है क्योंकि इसके इलाज के लिए जो व्यवस्था करनी है उसे तैयार करना बेहद मुश्किल है। लक्षण के बाद से ही इन्हें क्वारंटाइन रखना होता है। क्योंकि यह संक्रामक बीमारी है एक से दूसरे में फैलता है। इतनी बड़ी मात्रा में मवेशियों को क्वारंटाइन कर इलाज करना बेहद मुश्किल है।
बस्तर जिले के कलेक्टर चंदन कुमार ने बताया कि जिले में जितने मवेशियों में लंपी वायरस मिले हैं, उन्हें आइसोलेट कर इलाज करने के निर्देश दिए गए हैं। सभी की जांच करने उनके लिए अलग से व्यवस्था करने कहा गया है। सीमावर्ती क्षेत्रों में विशेष तौर पर निगरानी रखने के साथ मवेशियों के टीकाकरण में तेजी लाने को कहा गया है।
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