Friday, December 20, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeफीचर्डब्रेल लिपि बदल रही दृष्टिबाधितों की दुनिया

ब्रेल लिपि बदल रही दृष्टिबाधितों की दुनिया

संयुक्त राष्ट्र के विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर में करीब 39 मिलियन लोग ऐसे हैं, जो देख नहीं सकते जबकि 253 मिलियन लोगों में कोई न कोई दृष्टि विकार है। इनमें से करीब 100 मिलियन लोगों को नजर की ऐसी कमजोरी अथवा विकलांगता है, जिसे रोका जा सकता था या उन पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे में संचार के साधन के रूप में ब्रेल लिपि के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने, दृष्टि-बाधित लोगों को उनके अधिकार प्रदान करने और ब्रेल लिपि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 4 जनवरी को ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल के जन्मदिवस को ‘विश्व ब्रेल दिवस’ मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार नेत्र विकार से पीड़ित लोगों के गरीबी और अभाव भरे जीवन से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा होती है।

संयुक्त राष्ट्र के ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेन्शन’ में ब्रेल लिपि को संचार के एक साधन के रूप में उद्धृत किया गया है। संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन ‘यूनेस्को’ ने वर्ष 1949 में ब्रेल लिपि में एकरूपता लाने के उद्देश्य से समस्याओं पर ध्यान देने वाला एक सर्वेक्षण आगे बढ़ाने की पहल की थी। ब्रेल लिपि नेत्र विकारों वाले व्यक्तियों और दृष्टि विकलांग लोगों के लिए पढ़ने और लिखने की स्पर्शनीय प्रणाली है, जिसकी खोज 4 जनवरी 1809 को फ्रांस के कूपवरे में जन्मे लुई ब्रेल ने महज 15 वर्ष की आयु में की थी। ब्रेल लिपि कोई भाषा नहीं है बल्कि एक तरह का कोड है। यह ऐसी लिपि है, जिसे एक विशेष प्रकार के उभरे कागज पर लिखा जाता है और इसमें उभरे हुए बिन्दुओं की श्रृंखला पर उंगलियां रखकर या उन्हें उंगलियों से छूकर पढ़ा जाता है। ब्रेल लिपि को टाइपराइटर जैसी दिखने वाली एक मशीन ‘ब्रेलराइटर’ के जरिये लिखा जा सकता है या पेंसिल जैसी नुकीली चीज ‘स्टायलस’ और ब्रेल स्लेट ‘पट्ट’ का इस्तेमाल करके कागज पर बिन्दु उकेरकर लिखा जा सकता है। ब्रेल में उभरे हुए बिन्दुओं को ‘सेल’ के नाम से जाना जाता है। 1 से 6 बिन्दुओं की यह एक व्यवस्था या प्रणाली होती है, जिसमें बिन्दु अक्षर, संख्या और संगीत व गणितीय चिन्हों के संकेतकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

लुई ब्रेल ने केवल तीन साल की उम्र में ही एक दुर्घटना के कारण अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो दी थी। आंखें संक्रमित होने के कारण उनकी आंखों की दृष्टि पूरी तरह चली गई थी लेकिन दृष्टिहीनता के बावजूद उन्होंने न केवल अकादमिक रूप से उत्कृष्ट प्रदर्शन किया बल्कि छात्रवृत्ति पर ‘रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ’ चले गए। 1821 में फ्रांसीसी सेना के एक कैप्टन चार्ल्स बार्बियर लुई ब्रेल के स्कूल के दौरे पर आए थे, जिन्होंने सेना के लिए एक विशेष क्रिप्टोग्राफी लिपि का विकास किया था, जिसकी मदद से सैनिक रात के अंधेरे में भी संदेशों को पढ़ सकते हैं। चार्ल्स ने स्कूल में बच्चों के साथ ‘नाइट राइटिंग’ नामक यही तकनीक साझा की, जिसका उपयोग सैनिक दुश्मनों से बचने के लिए किया करते थे। इसके तहत वे उभरे हुए बिन्दुओं में गुप्त संदेशों का आदान-प्रदान करते थे किन्तु उनका यह कोड बहुत जटिल था। इसीलिए ब्रेल ने इसी आइडिया के आधार पर अपनी लिपि पर कार्य शुरू किया और ‘रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड यूथ’ में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने 1824 में अपनी लिपि को तैयार कर लिया, जो काफी सरल थी। इसी लिपि को ब्रेल लिपि के नाम से जाना गया और सरल लिपि की खोज के बाद दुनियाभर में नेत्रहीन या आंशिक रूप से नेत्रहीन लोगों की जिंदगी काफी हद तक आसान हो गई। अपने इसी आविष्कार के कारण लुई ब्रेल दुनियाभर में दृष्टिबाधित लोगों के लिए मसीहा बन गए।

ब्रेल लिपि के अंतर्गत उभरे हुए बिन्दुओं से एक कोड बनाया जाता है, जिसमें 6 बिन्दुओं की तीन पंक्तियां होती हैं और इन्हीं में इस पूरे सिस्टम का कोड छिपा होता है। चार्ल्स बार्बियर की शुरुआती कूट लिपि 12 बिन्दुओं पर आधारित थी, जिन्हें 66 की पंक्तियों में रखा जाता था। तब इसमें विराम, संख्या और गणितीय चिन्ह मौजूद नहीं थे। लुई ब्रेल ने इसमें सुधार करते हुए 12 की जगह 6 बिन्दुओं का उपयोग कर 64 अक्षर और चिह्न का आविष्कार किया, जिसमें उन्होंने विराम चिन्ह, संख्या और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी जरूरी चिह्न उपलब्ध कराए। ब्रेल ने हालांकि 1824 में पहली बार सार्वजनिक रूप से अपने कार्य को प्रस्तुत किया था लेकिन ब्रेल लिपि प्रणाली को 1829 में पहली बार प्रकाशित कराया। उन्होंने एक प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दी और अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय ब्रेल लिपि प्रणाली का विस्तार करने में बिताया। हालांकि जीते जी उनके काम को उचित सम्मान नहीं मिला और उनके निधन के 16 वर्ष बाद 1868 में ब्रेल लिपि को प्रामाणिक रूप से मान्यता मिली, जो आज दुनियाभर में मान्य है।

समय के साथ तकनीकी युग में ब्रेल लिपि में कुछ बदलाव होते रहे हैं और अब ब्रेल लिपि कम्प्यूटर तक भी पहुंच गई है। ब्रेल लिपि वाले ऐसे कम्प्यूटर में गोल व उभरे हुए बिन्दु होते हैं और कम्प्यूटरों में यह तकनीक उपलब्ध होने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि अब दृष्टिहीन व्यक्ति भी तकनीकी रूप से मजबूत हो रहे हैं। ब्रेल लिपि में अब बहुत सारी पुस्तकें निकलती हैं, यहां तक कि स्कूली बच्चों के लिए पाठ्य-पुस्तकों के अलावा रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ भी छपते हैं। भारत सरकार द्वारा 4 जनवरी 2009 को लुई ब्रेल के जन्म को 200 वर्ष पूरे होने पर उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया था। 43 वर्ष की आयु में 6 जनवरी 1852 को लुई ब्रेल का निधन हो गया लेकिन उनकी खोजी ब्रेल लिपि ने आज विश्वभर में दृष्टिहीनों तथा आंशिक रूप से नेत्रहीनों की जिंदगी को बहुत आसान बना दिया है।

योगेश कुमार गोयल

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें