नई दिल्लीः आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ता ने भारत के सरकारी और निजी अस्पतालों में उपचार के खचरें का तुलनात्मक अध्ययन किया है। शोध के परिणाम बताते हैं कि सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों में कुल खर्च बहुत अधिक होता है जो सरकार और मरीज के परिवार दोनों पर बड़ा बोझ है। यह तुलनात्मक अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य के सरकारी और निजी अस्पतालों को आधार बना कर किया गया है। आईआईटी जोधपुर में स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स के सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक रंजन ने यह शोध में डॉ. समीर गर्ग, नारायण त्रिपाठी और कीर्ति कुमार के साथ मिलकर किया है।
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भारत के सरकारी अस्पतालों में भर्ती किसी मरीज के इलाज पर औसत प्रतिदिन कुल खर्च 2833 रुपये देखे गए और निजी अस्पतालों के लिए यह 6788 रुपये था। इस शोध के परिणाम एक अंतर्राष्ट्रीय सहकर्मी समीक्षा पत्रिका हेल्थ इकोनॉमिक्स रिव्यू जर्नल में प्रकाशित किए गए। आईआईटी जोधपुर के मुताबिक यह शोध भारत में जन-जन तक स्वास्थ्य सेवा पहुंचाने का रोड मैप बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह एक अभूतपूर्व अध्ययन है जिसके तहत देश के अंदर अस्पताल में भर्ती किसी एक मरीज की स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी और निजी अस्पताल के खचरें का तुलनात्मक आकलन किया गया है।
यह शोध निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से सेवा खरीदने पर विचार करते हुए अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस विचार को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के महत्वपूर्ण नीति निदेशरें में स्थान दिया गया है। इस शोध का मकसद भारत के सरकारी और निजी अस्पतालों में एक बार भर्ती होने पर कुल औसत खचरें का तुलनात्मक अध्ययन करना था। शोध की अहमियत बताते हुए डॉ. आलोक रंजन ने कहा कि भारत के निजी अस्पतालों की तुलना में सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीज के इलाज का खर्च बहुत किफायती है। देश को सरकारी अस्पतालों में निवेश करना अत्यावश्यक है क्योंकि निजी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा महंगी पड़ती है।
यह सर्वे राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र के सहयोग से पूरे राज्य के 64 अस्पतालों में किया गया। कथित केंद्र छत्तीसगढ़ सरकार के स्वास्थ्य विभाग के लिए कार्यरत एक टेक्निकल एजेंसी है। शोध से पता चला कि निजी अस्पतालों में भर्ती होने पर हर बार कुल खर्च सरकारी अस्पतालों की तुलना में कई गुना अधिक था। इस क्षेत्र में किया गया यह पहला अध्ययन है जिसके परिणामस्वरूप भारत के सरकारी और निजी अस्पतालों में प्रति भर्ती खचरें की बड़ी तुलनात्मक तस्वीर सामने आई जो व्यावाहरिक अनुभव पर आधारित है। चालू वित्त वर्ष में भारत की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश अत्यावश्यक है ताकि देश में जन-जन तक सरकारी स्वास्थ्य सेवा पहुंचाना सुनिश्चित हो।
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