सवालों के घेरे में परिवहन निगम की टेंडर शर्तें

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लखनऊः पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड पर बनने वाले बस अड्डों के निर्माण की कवायद ने एक बार फिर से जोर पकड़ा हुआ है। परिवहन निगम प्रबंधन ने निवेशकों को लुभाने के लिए फिर से टेंडर शर्तों में बदलाव किया है।

नए सिरे से तैयार की गईं टेंडर शर्तों को निदेशक मंडल की बोर्ड बैठक में मंजूरी भी मिल गई है। इसके तहत पीपीपी मोड पर बनने वाले बस अड्डों की लीज अवधि अब 90 वर्ष कर दी गई है। इसके पूर्व लीज अवधि 30 से बढ़ाकर 60 वर्ष की गई थी। हालांकि, परिवहन निगम प्रबंधन की सहमति के बाद ही लीज अवधि बढ़ेगी वहीं परिवहन निगम प्रबंधन के लीज अवधि बढ़ाने के फैसले को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।

दरअसल, भवनों के लिए जो मानक तय किए गए हैं, उसके तहत आरसीसी बिल्डिंगों की अधिकतम आयु 60 वर्ष तय की गई है, वहीं स्ट्रक्चुअल इंजीनियरिंग फोरम ऑफ इंडिया (सेफी) के तहत आरसीसी भवन की आयु 50 वर्ष तय की गई है। सिविल इंजीनियरों की मानें तो आरसीसी बिल्डिंग की आयु 60 वर्ष निर्धारित की गई है। ऐसे में उस भवन को 90 वर्ष की लीज पर दिए जाने का फैसला कहीं से भी उचित नहीं है। लीज अवधि अगर 60 वर्ष ही मान ली जाए तो इतने वर्षों बाद जब भवन परिवहन निगम को हस्तांतरित होगा, उस दौरान यह अपनी आयु पूरी करने के चलते जर्जर हो चुका होगा। ऐसे में लीज अवधि पूरी होने के बाद निगम के हिस्से क्या जर्जर भवन आएगा? परिवहन निगम मुख्यालय के अफसरों के लिए यह मंथन का विषय बन गया है।

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तीन बार के टेंडर में डूब चुके हैं करोड़ों रुपए 

पीपीपी मॉडल पर बस अड्डों के निर्माण के लिए परिवहन निगम तीन बार टेंडर निकाल चुका है। हालांकि, तीनों बार के टेंडर में एक या दो निवेशकों के अलावा किसी निवेशक ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। निवेशकों के न आने से निगम को तीनों बार टेंडर निरस्त करना पड़ा। जानकारों की मानें तो एक बार टेंडर पब्लिश कराने में परिवहन निगम को करीब डेढ़ करोड़ रुपए खर्च करना पड़ता है। इस प्रकार तीन बार टेंडर निकालने में ही परिवहन निगम 4.50 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है। अब चैथी बार टेंडर निकालने की तैयारी परिवहन निगम कर चुका है। ऐसे में डेढ़ करोड़ रुपए का व्यय भार निगम पर फिर से पड़ेगा, वहीं पीपीपी मोड के बस अड्डों के प्रस्ताव पर अडानी ग्रुप के दिलचस्पी दिखाने के बाद निगम प्रबंधन को भी इस बार टेंडर प्रक्रिया पूरी होने की आस जगी है।

तीन चरणों में विकसित होंगे 83 बस अड्डे

तीन चरणों में प्रदेश के सभी जनपदों के 83 बस अड्डों को पीपीपी मॉडल पर विकसित करने का प्रस्ताव बनाया गया है। बीते दिनों मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने इस बाबत आयोजित समीक्षा बैठक में इस प्रक्रिया को तेज करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने आगामी वर्षों में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या में वृद्धि को लेकर बस स्टेशनों पर चार्जिंग प्वाइंट्स बनाने के भी निर्देश दिए थे। पहले फेज में 16 जनपदों के 24 बस अड्डे विकसित होंगे। इनमें गाजियाबाद में तीन, आगरा में तीन, प्रयागराज में दो, लखनऊ में तीन (चारबाग, अमौसी और गोमती नगर), अयोध्या में दो और मथुरा, कानपुर नगर, वाराणसी, मेरठ, अलीगढ़, गोरखपुर, बुलंदशहर, हापुड़, बरेली, रायबरेली, मिर्जापुर में एक-एक बस अड्डे विकसित किए जाएंगे, वहीं दूसरे फेज में 24 जनपदों के 24 बस अड्डे विकसित होंगे। इनमें कासगंज, महोबा, बिजनौर, इटावा, फतेहपुर, श्रावस्ती, अमरोहा, उन्नाव, बलिया, मुरादाबाद, रामपुर, एटा, बलरामपुर, बस्ती, देवरिया, फिरोजाबाद, गोंडा, कन्नौज, पीलीभीत, अम्बेडकरनगर, बदायूं, बागपत, मुजफ्फरनगर, संभल जनपद के बस अड्डे शामिल हैं। इसके अलावा तीसरे फेज में 35 जनपदों के एक-एक 35 बस अड्डों को विकसित किए जाने का प्रस्ताव बनाया गया है।

कई जनपदों में लीज पर हैं जमीनें

बीते दिनों शासन की ओर से सभी जनपदों के एक-एक बस अड्डों का ब्यौरा परिवहन निगम से मांगा गया था। पीपीपी मॉडल पर विकसित किए जाने को लेकर शासन ने यह ब्यौरा मांगा था। हालांकि, प्रदेश के कुछ जनपद ऐसे हैं जहां पर परिवहन निगम के बस अड्डे की जमीन लीज पर है। ऐसे में लीज पर ली गई जमीन को दोबारा लीज पर दिया जाना मुश्किल भरा फैसला होगा। इनमें हरदोई, सीतापुर, नोएडा, लखीमपुर, हमीरपुर, जालौन, झांसी जनपद शामिल हैं।

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