हुगली: कोरोना महामारी के कारण गत दो वर्षों से महेश के विख्यात जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath rathyatra) का आयोजन नहीं हो सका था। इस वर्ष कोरोना परिस्थतियां काबू में आने के बाद शुक्रवार को भव्य रथ यात्रा का आयोजन हुआ। रथ की डोर खींचने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी। हालांकि कोरोना संक्रमण का खतरा अब तक पूरी तरह से टला नहीं है। इसलिए प्रशासन के तरफ से सामूहिक जगहों पर मास्क पहनकर आने का निवेदन किया गया। सभी भक्त भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन होकर रथ (Jagannath rathyatra) की डोर खींचने के लिए लालायित दिखे। पूरा इलाका जय जगन्नाथ के नारों से गूंज उठा। चन्दननगर पुलिस कमिश्नरेट के तरफ से सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किये गए थे। मौके पर डीसीपी श्रीरामपुर जोन डॉक्टर अरविन्द आनंद, एसीपी सुभातोष सरकार, श्रीरामपुर थाना प्रभारी दिव्येंदु दास समेत पुलिस के आला अधिकारी मौजूद रहे।
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ड्रोन कैमरे की मदद पुलिस ने भीड़ पर निगरानी रखी। बड़े पैमाने पर महिला पुलिस बलों के अलावा सिविल डिफेंस और अग्निशमन विभाग के कर्मचारियों की तैनाती की गयी थी। रथयात्रा (Jagannath rathyatra) के दौरान एम्बुलेंस और मेडिकल कैंप की भी व्यवस्था की गई थी। सबसे पहले वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान जगन्नाथ की विधिवत पूजा हुई। उन्हें मंदिर से पालकी में बैठाकर रथ तक लाया गया। लाल कपडे में लिपटी भगवान की मूर्ति को रस्सियों की मद्दद से मंत्रोच्चार के साथ 50 फुट ऊंचे रथ पर चढ़ाया गया। इसके बाद पारम्परिक तरीके से रथ की डोर खिची गई। रथ उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं में उत्साह देखने लायक था।
उल्लेखनीय है कि विश्व प्रसिद्ध उड़ीसा के पूरी की रथ यात्रा के बाद पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के महेश में मनाई जाने वाली रथ यात्रा दूसरी सबसे प्राचीन रथ यात्रा (Jagannath rathyatra) है। यह रथ यात्रा (Jagannath rathyatra) महेश जगन्नाथ रथ यात्रा के नाम से प्रसिद्द है। इस रथ की डोर खींचने के लिए सिर्फ देश ही नहीं विदेश से भी भारी संख्या में भक्त यहां आते हैं। यह रथयात्रा सन 1396 से निकाली जाती है। बंगाल की यह सबसे प्राचीन रथ यात्रा है। महेश रथ यात्रा, महेश जगन्नाथ मंदिर से निकलती है। इस मंदिर की पौराणिक कहानी काफी दिलचस्प है।
किंवदंती के अनुसार एक बंगाली साधु था जिसका नाम महेश था, लोग उसे द्रुबानंद ब्रह्मचारी के नाम से भी जानते थे। एक बार उसने भगवान जगन्नाथ को ”भोग” लगाया, लेकिन उन्होंने ग्रहण नहीं किया। तब वह निराश होकर मृत्यु तक उपवास करने का संकल्प लेकर वन की ओर चला गया। इस घटना के तीसरे दिन, भगवान जगन्नाथ बंगाली साधु के सपने में आए तो उन्होंने बलराम, जगन्नाथ और सुभद्रा की मूर्तियों को दरू-ब्रह्मा (नीम तंजा) का भोग लगाने के लिए कहा। भगवान ने भक्त से कहा वह स्वयं भोजन अर्पित करे। तब बंगाली साधु ने भगवान की मूर्तियों को दरू-ब्रह्मा अर्पित कर पुण्य अर्जित किया। इस चमत्कार के बाद यहां मौजूद मंदिर का नाम भी ”महेश जगन्नाथ मंदिर” के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
50 फुट ऊंचा है रथ –
वर्ष 1755 में पैथरीरागाटा के न्याचंद मलिक ने 20 हजार रुपए में रथ को बनवाया था। 1797 में श्री रामकृष्ण देव के प्रसिद्ध शिष्य बलराम बसु के दादा श्री कृष्णाराम बासु ने मंदिर में एक रथ दान दिया। 1885 में रथ का पुन: निर्माण किया गया था। वर्तमान में जो रथ मौजूद है उसका निर्माण दिव्य कृष्णचंद्र के संरक्षण में मार्टिन बर्न कंपनी द्वारा बनाया गया था। नया रथ चार मंजिला है, जो कि 50 फुट ऊंचा है और इसका वजन 125 टन है। महेश जगन्नाथ मंदिर के बारे में जगन्नाथ की कई अद्भुत लोक कथाएं प्रचलित हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पर्यटक स्थल के तौर पर ऐतिहासिक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और मंदिर को भव्य बनवाया है। शुक्रवार को महेश की रथ यात्रा में पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के कई मंत्री मदन मित्रा, शोभन देव चटर्जी, सांसद कल्याण बनर्जी विधायक सुदीप्तो राय समेत कई जानी-मानी हस्तियां शामिल हुई।
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