चंडीगढ़: हरियाणा के अलग-अलग जिलों में होली का पवित्र त्योहार अनोखे ढंग से मनाए जाने को लेकर मशहूर हैं। हरियाणा के कैथल में एक गांव ऐसा भी है, जहां 160 साल से होलिका दहन नहीं किया गया। दरअसल गांवों के बुजुर्गों के अनुसार 160 साल पहले एक बाबा ने होली की अग्नि के बीच अपने को समर्पित कर दिया था। बुजुर्गों के अनुसार हरियाणा के कैथल जिले के गुहला चीका में स्थित गांव दुसेरपुर में स्नेही राम नाम के साधु रहा करते थे, जो कद में काफी छोटे थे। होलिका दहन के दिन जब होली जलाई जा रही थी, उस समय बाबा भी वहां पहुंच गए। बाबा का छोटा कद देखकर ग्रामीणों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
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इससे बाबा इतने आहत हुए कि होली की अग्नि में ही समाधि ले ली। उस दिन के बाद गांव में होलिका दहन की परंपरा बंद हो गई। ग्रामीणों की मानें तो बीच-बीच में कुछ लोगों ने गांव में होलिका दहन की परंपरा शुरू भी की लेकिन उस दौरान किसी न किसी तरह के अपशकुन हो गए। जिसके बाद किसी ने यहां होलिका दहन की परंपरा को दोबारा शुरू नहीं की।
मध्य प्रदेश के इस गांव में भी नहीं होता होलिका दहन
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल में मौजूद इस गांव में होलिका दहन का जिक्र होते ही लोग डर जाते हैं। यही वजह है कि होलिका दहन की रात गांव में कोई उत्साह नजर नहीं आता है, हालांकि होली खेली जाती है। यह कहानी है सागर जिले के देवरी विकासखंड में आने वाले हथखोह गांव की। जहां पिछले कई सालों से होलिका दहन नहीं हुआ। हालांकि यहां होली रात सामान्य रात की तरह ही होती है। गांव के बुजुर्गों की मानें तो उनके सफेद बाल पड़ गए हैं, मगर उन्होंने गांव में कभी होलिका दहन होते नहीं देखा। गांव के लेागों को इस बात का डर है कि होली जलाने से झारखंडन देवी कहीं नाराज न हो जाएं। उनका कहना है कि इस गांव में होलिका दहन भले नहीं होता है, लेकिन हम लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्यौहार मनाते हैं।
होलिका दहन के पीछे ये है मान्यता
इस गांव में होलिका दहन नहीं होने के पीछे एक मान्यता है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दशकों पहले गांव में होलिका दहन के दौरान कई झोपड़ियों में आग लग गई थी। उस वक्त गांव के लोगों ने झारखंडन देवी की आराधना की और आग बुझ गई। स्थानीय लोग मानते हैं कि आग झारखंडन देवी की कृपा से बुझी थी, लिहाजा होलिका का दहन नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि लोग रंग गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाते हैं।
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