Sunday, December 29, 2024
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रूस-यूक्रेन जंग ने कच्चे तेल की कीमतों में लगाई आग, चुनाव के बाद बढ़ेंगे पेट्रोल-डीजल के दाम !

नई दिल्लीः रूस-यूक्रैन युद्ध से कच्चे तेल की कीमतों में आठ प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि हुई है। दुनिया में रूस के कच्चे तेल के बहिष्कार से ग्लोबल ब्रेंट क्रूड आयल की कीमतें बढ़कर रिकॉर्ड 113.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई है, जबकि अमेरिकी वेस्ट टेक्सस इंटरनेशनल की कीमत 109.78 डालर प्रति बैरल हो गई है। यह पिछले सात सालों में सबसे अधिक कीमत है। सितंबर, 2013 के बाद इसकी कीमत सबसे अधिक होकर 113.58 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतें बढ़ने के बाद भारत में भी पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। जानकारों की माने तो यूपी, पंजाब समेत पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमत में आग लग सकती है।

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दरअसल खाड़ी में कच्चे तेल के उत्पादन करने वाले संगठन (ओपेक) के अलावा दुनिया में रूस और अमेरिका ऐसे दो बड़े देश हैं जो दस प्रतिशत से अधिक तेल उत्पादन में क्षमता रखते हैं। एनर्जी आसपेक्ट की सह संस्थापक अमृता सेन ने कहा है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की ओर से आर्थिक प्रतिबंधों के बाद रूस की ओर से उत्पादित कच्चे तेल का सत्तर प्रतिशत तेल, घटी कीमतों पर भी उठाने को तैयार नहीं है। इसका बड़ा कारण रूस के बड़े बैंकों पर प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था स्विफ्ट (SWIFT) से मुद्रा के लेनदेन में एक बड़ी बाधा को बताया जा रहा है।

120 डॉलर प्रति बैरल जा सकते है दाम

अमेरिका की संवाद समिति सीएनबीसी ने कहा है कि ब्रेंट बैंचमार्क कच्चे तेल में इतनी वृद्धि 2011 के बाद पहली बार हुई है। कहा जा रहा है कि कच्चे तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं, जो दुनिया भर के आम तेल उपभोक्ताओं के लिए पीड़ादायक हो सकती है। अमेरिका के नेतृत्व में मंगलवार को 31 देशों की अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने मार्केट में राहत के इरादे से सामरिक कोष से छह करोड़ कच्चे तेल की निकासी का फैसला किया था। कच्चे तेल के विश्लेषकों की मानें तो ओपेक सदस्य देशों की ओर से कच्चे तेल की कीमतों में बहुत जल्दी राहत मिलने की सम्भावना नहीं है।

चुनाव बाद पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना तय

दरअसल विधानसभा चुनावों की वजह से ही तेल के दामों में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है। हालांकि, यूं तो कहा जाता है कि तेल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से तेल के भाव तय करती हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि जब किसी राज्य के चुनाव चल रहे होते हैं तो आमतौर पर पेट्रोल-डीजल के भाव नहीं बढ़ते। चुनाव के बाद फिर से कीमतों में बदलाव होने लगता है। ऐसे में एक्सपर्ट्स आशंका जता रहे हैं कि इस बार भी चुनावी नतीजों के बाद पेट्रोल-डीजल के दम बढ़ सकतें हैं।

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