Sunday, January 19, 2025
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बिहार में वायु प्रदूषण और जानलेवा, बक्‍सर, छपरा और गया में दिल्‍ली से भी खराब हालात

पटनाः बिहार का बक्सर जिला सूबे में ही नही वरण देश भर में वायु प्रदूषण के मामले में सबसे प्रदूषित शहर है। बक्सर में एयर क्वालिटी इंडेक्स 456 रिकार्ड दर्ज होते ही लोगों के स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करने लगा है । बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के जारी सर्वे रिपोर्ट की माने तो देश की राजधानी दिल्ली का एयर इंडेक्स क्वालिटी 254 के आसपास है । हम सूबे की बात करे तो बक्सर के बाद मुंगेर 444 एयर इंडेक्स क्वालिटी के साथ दूसरें पायदान पर, छपरा 412, सिवान और मुजफ्फरपुर 401, सासाराम 395, गया 383, दरभंगा 363, राजगीर 355, पटना 351, बिहारशरीफ 340, मोतिहारी 318 ,बेतिया 310 ,आरा 302 भी वायु प्रदूषित शहरों में क्रमवार शुमार है ।

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प्रदूषण को लेकर सर्वाधिक लापरवाही बक्सर और डुमरांव

बक्सर जिला मुख्यालय समेत सम्पूर्ण जिले की बात करे तो वायु प्रदूषण को लेकर सर्वाधिक लापरवाही बक्सर और डुमरांव नगर परिषदों समेत समभाव से कही ना कही जिला प्रशासन भी सामान रूप से दोषी नजर आता दिख रहा है। बात चाहे ग्रामीण ईलाको में पराली जलाने की हो या फिर बक्सर और डुमराँव अनुमंडल मुख्यालयों के शहर के मध्य ही कचड़े को डंप कर उसे जलाने की ये सभी लक्षण सीधे शहर के वायु को ही प्रभावित करते है । रही सही कसर अवैध तरीके से ढोए जा रहे मिट्टी और बालू के जरिये शहर के वायु प्रदूषण को बढा रहे है।

सख्त हिदायतों के बावजूद जलाई जा रही पराली

हालांकि सरकार के शख्त नियमों को लेकर कभी-कभी जिला प्रशासन हरकत में तो आती है पर यहां प्रशासन सिर्फ कोरम ही पूरा करते नजर आता है। सरकारी नियमो की धज्जिया सार्वजनिक तौर पर उडती हुई देखी जा सकती है। किसान सरकार के सख्त हिदायतों के बावजूद अब भी खेतों में पराली जला रहे है। यह दीगर बात है कि 19 हजार हेक्टेयर धान की कटनी के बाद पराली जलाने के खिलाफ जिला प्रशासन सिर्फ चार किसानों पर कारवाई कर अपना कोरम पूरा किया है । बिहार में पंचायती राज काबिज है। यहा पंच ,सरपंच और मुखिया जैसे जनप्रतिनिधियों की भी कुछ जिम्मेवारी बनती है । बगैर समाजिक सहयोग के वायु प्रदूषण नियंत्रण सम्भव नही है।

धूल कण से जनपद की स्थिति बेहद खराब

वायु प्रदूषण के मामलों को लेकर सम्पूर्ण जनपद में धूल कण की स्थिति यह है कि बक्सर और डुमरांव अनुमंडल मुख्यालय में सड़कों के किनारे बने घरो के लोग किसी ना किसी प्रकार के श्वास संबंधित रोगों से पीड़ित है। जारी कडाके की ठंढ,शीतलहर और घने कुहासे के बीच सड़को से उठने वाले धूलकण नीम पर चढ़े करेले की ही कहावत को हुबहू चरितार्थ कर रहे है। सर्द मौसम के बाद गर्मी के दिनों में यह धूलकण अपने प्रचंड रूप में होते है । यहां सर्वाधिक भयावह स्थिति बक्सर जिला मुख्यालय की बनती है । बक्सर में यह कहावत प्रचलित है कि यहां रहना है तो धूल और बंदरों से बचना ही होगा ।

शहर में कूड़ा डंप करना मजबूरी

बक्सर और डुमराँव परिषद से जुड़े अधिकारी भी मानते है कि इन जगहों पर कूड़ा डंप की जगह ना होने से शहर के मध्य कूड़ा डंप करना मजबूरी है हम किसी के रैयती जमीन पर कूड़ा डम्प नहीं कर सकते और बिहार सरकार के पास अपनी जमीन की कमी है । अगर जमीन है भी तो वह या तो अतिक्रमण का शिकार है या फिर वासगीत पर्चा धारक भूमिहिनों के हवाले है। कूड़ा डम्पिंग को लेकर जिला प्रशासन ,जनप्रतिनिधियों की ओर से बार बार बैठक कर निदान का भरोसा तो लोगों को दिया जाता है पर फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत ही शेष रह जाती है।

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