नई दिल्ली: सम्राट मिहिर भोज की जाति को लेकर छिड़ा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा ने सोमवार को आयोजित प्रेसवार्ता में सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर जाति का बताया। साथ ही उन्होंने ऐतिहासिक दस्तावेज भी पेश किए।
गुर्जर महासभा के प्रमुख आचार्य वीरेन्द्र विक्रम ने बताया कि गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज रघुंशी सम्राट थे और गुर्जर प्रतिहार वंश के सबसे प्रतापी सम्राट थे, जिन्होंने 53 वर्ष तक अखंड भारत पर शासन किया। उनकी पहचान समाज में गुर्जर सम्राट के नाम से ही है। उनके समकालीन शासकों राष्ट्रकूट और पालों ने अपने अभिलेखों में उनकों गुर्जर कह कर ही संबोधित किया है।
उन्होंने कहा कि कुछ लोग जबरदस्ती गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज के इतिहास को कब्जाने का विफल प्रयास कर रहे हैं। ऐसे लोग देश का माहौल खराब करके जातिगत संघर्ष करवाना चाहते हैं। उन्होंने मांग की है कि ऐसे लोगों पर भारत सरकार सख्त कार्रवाई करें।
बता दें कि यह विवाद गौतमबुद्धनगर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा की स्थापना से शुरू हुआ, जिस पर पहले तो गुर्जर प्रतिहार लिखे जाने का विरोध करते हुए राजपूत समाज के लोगों ने प्रदर्शन किए। इसके बाद प्रतिमा का अनावरण हुआ तो उसमें से गुर्जर शब्द हटाए जाने पर गुर्जर समाज के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया।
वहीं, 10 अक्टूबर को सपा मुखिया अखिलेश यादव की सहारनपुर के तीतरों में जनसभा हुई तो, उसमें अखिलेश यादव ने भी गुर्जरों की वकालत कर इस मुद्दे को हवा दे दी। अब स्थिति यह हो गई है कि जिस गांव में राजपूत समाज की बहुलता है, वनसम्राट मिहिर भोज को राजपूत सम्राट लिखते हुए बोर्ड लगाए जा रहे हैं। ऐसे अधिकांश बोर्ड बड़गांव क्षेत्र के गांव शिमलाना, चंदपुर आदि में लग चुके हैं। उधर, सढ़ौली हरिया, मदनुकी, बहादरपुर, नशरतपुर, अहमदपुर, बुड्ढाखेड़ा गुर्जर आदि गांवों में गुर्जर समाज के लोगों ने बोर्ड लगा दिए हैं। उन पर सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर प्रतिहार लिखा गया है।