Thursday, November 14, 2024
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अगस्त क्रांति की याद दिलाती है जुर्माना की राशि से खड़ी की गई इमारत की नींव

बेगूसराय: देश प्रेमियों के बीच अपनी कविता के माध्यम से राष्ट्रभक्ति की भावना जगा कर उद्वेलित करने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि बेगूसराय आजादी के बाद जहां औद्योगिक नगरी के रूप में स्थापित हुआ। वहीं, आजादी से पहले भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां के युवाओं ने ना केवल गोली खाई, बल्कि अंग्रेजों को नाको चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया था।

अगस्त का महीना आता है तो हर किसी के जेहन में अगस्त क्रांति की यादें आ जाती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो ऐसे में बेगूसराय में किए गए अनमोल कार्य की चर्चा होना स्वभाविक है। अगस्त क्रांति के दौरान बेगूसराय में पूरब से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक खूब संघर्ष हुआ था। आक्रोशित युवकों ने रेल की पटरी उखाड़ दी थी, स्टेशन को जला दिया था। अंग्रेजों ने जब जुर्माना किया और अंतरिम सरकार में वापस की गई जुर्माना की राशि से बनी कीर्ति बता रही है कि हमारा इतिहास कितना बुलंद था। 1930-31 का जमाना, स्वतंत्रता संग्राम की आग में सुलगता इलाका। भगत सिंह की फांसी, चंद्रशेखर आजाद का बलिदान एवं बेगूसराय में आजादी के दीवाने छह युवकों की मौत से आक्रोशित, उद्वेलित और प्रेरित युवकों की टोली ने आजादी का अलख जगाने के लिए केंद्रस्वरुप गोदरगावां ठाकुरबाड़ी में महावीर पुस्तकालय की स्थापना की। धार्मिक एवं जातीय भेद मिट गए थे, ठाकुरबाड़ी भारत माता का मंदिर बन गया, देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना बलवती हो गई तथा स्तरीय पुस्तकें पत्र-पत्रिकाएं जमा होने लगे।

बदलते समय के साथ उस पुस्तकालय का नाम हो गया विप्लवी पुस्तकालय और 32 हजार से अधिक पुस्तकों के साथ जिला, बिहार ही नहीं, यह देश के चर्चित पुस्तकालयों में शुमार हो गया। बेगूसराय जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर मटिहानी प्रखंड में गोदरगावां गांव के प्रवेश द्वार पर विशालकाय चन्द्रशेखर आजाद और पुस्तकालय परिसर में भगत सिंह की प्रतिमा इतिहास व संस्कृति का बोध कराती है। पुस्काध्यक्ष मनोरंजन विप्लवी बताते हैं कि 1942 के आंदोलन में बड़ी संख्या में गोदरगावां और आस-पास के गांव के लोगों ने भी भाग लिया तथा बरौनी-कटिहार रेल खंड के लाखो स्टेशन पर रेल की पटरी उखाड़ी, स्टेशन जला दिया था। जिसमें अंग्रेजों ने सामूहिक जुर्माना वसूला था। 1946 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार ने अंग्रेजों द्वारा वसूली गई जुर्माना की राशि आठ सौ रूपया वापस करवा दिया तो लोगों ने स्मारक स्वरूप पुस्तकालय भवन निर्माण का निर्णय लिया। 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली और उसी दिन से स्थानीय सत्यनारायण शर्मा द्वारा दान की गई जमीन पर पुस्तकालय भवन का निर्माण शुरू कर दिया गया, जो आज भी पुस्तकालय के रूप में अंधकार में जीवन का अलौकिक प्रकाश बिखेर रहा है।

राज्यपाल डॉ. ए.आर. किदवई, नामवर सिंह, कमलेश्वर, प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, हबीब तनवर, डॉ रामजी सिंह, रेखा अवस्थी, अंजुमन आरा, शंकर दयाल सिंह, हरिवंश (राज्यसभा के वर्तमान उपसभापति), एबी वर्धन, केदारनाथ सिंह, ललित सुरजन जैसे सैकड़ों साहित्यकार, कवि, पत्रकार, जनप्रतिनिधि, अधिकारी यहां आकर संस्कृत-शिक्षा-संस्कृति- संस्कार और इतिहास को परिभाषित कर चुके हैं। 24 मई 2017 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां आए तो, भव्यता एवं व्यवस्था देख विशिष्ट पुस्तकालय दर्जा दिया। फिलहाल आजादी के दीवानों को समर्पित तथा उत्कृष्ट एवं जन सहयोग से खड़ी की गई इस संस्कृति की इमारत में साहित्य-संस्कृती-इतिहास एवं समाज का अद्भुत समावेश देखा जा सकता है। चल रहे अगस्त के ऐतिहासिक माह में लोग पुस्तकालय में बैठकर आजादी के संघर्ष की गाथा को याद कर रहे हैं, आजादी के 75 वर्ष पर आयोजित अमृत महोत्सव की चर्चा हो रही है।

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