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अभी तक नहीं मिले हिमस्खलन में फंसे सेना के 7 जवान, बर्फबारी ने तोड़ा 34 साल का रिकॉर्ड

नई दिल्ली: बर्फीले तूफान में 06 फरवरी की शाम से लापता सेना के गश्ती दल का अभी तक पता नहीं चल सका है। अरुणाचल प्रदेश के कामेंग जिले में हिमस्खलन के बाद फंसे सेना के 7 जवानों को तलाशने में मंगलवार को अरुणाचल प्रदेश पुलिस की टीम भी जुट गई। 19 जेएके राइफल्स के जवानों को खोजने के लिए पहले से ही सेना ने बचाव कार्य चला रखा है और बचाव कार्यों में सहायता के लिए विशेष टीमों को एयरलिफ्ट किया गया है। हिमस्खलन के बाद जब सेना के इस गश्ती दल से संपर्क स्थापित नहीं हो सका तो फौरन एक एक्सपर्ट टीम क्विक रेस्पॉन्स के लिए मौके पर लगाई गई। उस टीम में शामिल विशेषज्ञ लापता जवानों की तलाश में जुटे हैं।

पश्चिम कामेंग जिले की पुलिस के मुताबिक यह घटना तवांग जिले के जंग पुलिस स्टेशन के तहत एलएसी के साथ जंगदा बस्ती से लगभग 35 किलोमीटर दूर के मैमी हट इलाके के पास हुई है। मंगलवार सुबह से पुलिस की एक टीम भी सेना के तलाशी अभियान में शामिल हो गई है। 6 फरवरी को मैमी हट के पास हिमस्खलन की चपेट में आने से 19 जेएके राइफल्स के सात सैन्यकर्मी फंस गए हैं। घटना के बाद सेना के अधिकारियों ने जंग थाने को सूचना दी थी लेकिन यह क्षेत्र बहुत दूर है और बर्फबारी के कारण सभी सड़कें अवरुद्ध हो गई हैं। इस बार डारिया हिल में बर्फबारी ने 34 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यहां इससे पहले 1988 में इतनी बर्फबारी हुई थी। अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के रूपा शहर में दो दशक बाद बर्फबारी हुई है।

तेजपुर स्थित रक्षा पीआरओ लेफ्टिनेंट कर्नल हर्षवर्धन पांडे ने कहा कि वर्तमान में खोज और बचाव अभियान जारी है। बचाव अभियान में सहायता के लिए विशेष टीमों को एयरलिफ्ट किया गया है। पिछले कुछ दिनों से क्षेत्र में भारी बर्फबारी के साथ खराब मौसम देखा जा रहा है। सर्दियों के महीनों में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में गश्त करना मुश्किल हो जाता है। सैन्य कर्मियों के साथ पहले भी इस तरह के हादसे हो चुके हैं। अरुणाचल प्रदेश के तवांग स्थित भारत-चीन की सीमा पर 21 दिसंबर को भारी बर्फबारी हुई थी जिसने 10 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। हिमस्खलन के बाद जब सेना के इस गश्ती दल से संपर्क स्थापित नहीं हो सका तो फौरन एक एक्सपर्ट टीम क्विक रेस्पॉन्स के लिए मौके पर लगाई गई। उस टीम में शामिल विशेषज्ञ लापता जवानों की तलाश में जुटे हैं।

मई 2020 में सिक्किम में हिमस्खलन की चपेट में आने से सेना के दो जवानों की मौत हो चुकी है। पिछले साल अक्टूबर में उत्तराखंड की 7,120 मीटर ऊंची छोटी माउंट त्रिशूल पर चढ़ाई करने गए नौसेना के 20 सदस्यीय दल में से नौसेना के चार पर्वतारोही शहीद हो गए थे। इसी तरह 2019 में सियाचिन ग्लेशियर में हिमस्खलन के कारण सेना के छह जवानों की मौत हो गई थी, जबकि अन्य जगहों पर इसी तरह की घटनाओं में 11 अन्य मारे गए थे। इन घटनाओं के बाद सरकार ने संसद में दिए बयान में कहा था कि उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात सशस्त्र बलों के कर्मियों को पहाड़ों के हिमाच्छादित इलाकों में जीवित रहने और हिमस्खलन जैसी किसी भी घटना का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाता है।

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सेना ने यह भी कहा कि उच्च ऊंचाई पर तैनात जवान परिचालन चुनौतियों का सामना करने के लिए हाईटेक गैजेट्स, सर्विलांस ड्रोन, नाइट विजिल कैमरा, थर्मल इमेजिंग ट्रेसर, हेलीकॉप्टर, स्नो स्कूटर, हिमस्खलन डिटेक्टर का उपयोग करते हैं। सैनिकों को उच्च तकनीक वाले उपकरण प्रदान किए गए हैं जिसमें पाकिस्तान के साथ सीमा पर चरम स्थितियों से निपटने के लिए ट्रैकर और वर्दी शामिल हैं। भारतीय सेना के जवान चीन और पाकिस्तान की सीमा के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में 5-10 फीट बर्फ और माइनस 5 से 20 डिग्री सेल्सियस तक की शीत लहर में तैनात हैं। भारतीय सेना के जवान कठोर मौसम और पहाड़ी इलाकों के बावजूद जम्मू-कश्मीर में एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) की रक्षा कर रहे हैं। सैनिकों को विशेष रूप से कम ऑक्सीजन के स्तर के साथ समुद्र तल से लगभग 10 हजार फीट की ऊंचाई पर कठोर मौसम की स्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

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