Friday, January 24, 2025
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कैसा है 370 की समाप्ति के बाद का कश्मीर

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शनिवार, 05 अगस्त को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के चार साल पूरे हो रहे हैं। इसी दौरान इस कार्यवाही के औचित्य पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है। कांग्रेस के नेता रहे और अब राज्यसभा में निर्दलीय सदस्य कपिल सिब्बल की दलील है कि संविधान सभा को ‘ओवरलुक’ कर ऐसा करना ठीक नहीं कदम नहीं था। कोर्ट का यह प्रश्न गंभीर है कि संविधान सभा नहीं होने की स्थिति में यह कैसे हो। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला उम्मीद करते हैं कि कोर्ट से न्याय मिलेगा। स्वाभाविक है कि उनके लिए ‘न्याय’ का आशय राज्य में 370 की बहाली है।

कोर्ट से बाहर जम्मू-कश्मीर की धरती से आ रही खबरों की पड़ताल देश को सुकून देती है। अभी चार महीने पहले जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने राज्य में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के पहले प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था। यूएई स्थित एमआर ग्रुप के 500 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट से दस हजार नौकरियां मिलने की उम्मीद की गई है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने अभी राज्यसभा में बताया है कि राज्य में 370 हटाये जाने के बाद से करीब 30 हजार युवाओं को नौकरियां दी जा चुकी हैं। यह संख्या 29 हजार, 295 बताई गई। आगे सात हजार, 924 रिक्तियों के विज्ञापन आये हैं और दो हजार 504 रिक्तियों के संबंध में परीक्षाएं हुई हैं। विश्वव्यापी कोरोना के बावजूद राज्य के युवाओं के लिए इस तरह के कदम बहुत अच्छा संकेत है।

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सच यह है कि 370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के दो केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख के लोग अपना भविष्य सुरक्षित समझने लगे हैं। जम्मू-कश्मीर के आम लोग भी इससे संतुष्ट हैं किंतु राजनीतिक दलों अथवा यूं कहें कि कुछ नेताओं के लिए 370 मसला बना हुआ है। उन्हें इससे संतुष्टि नहीं मिलती कि पिछले दो साल में ही पर्यटक घाटी की ओर जिस तेजी से उमड़ रहे हैं, उससे राज्य की आर्थिकी में इजाफा होगा। अकेले 2022 में ही राज्य में एक करोड़, 88 लाख पर्यटक पहुंचे। निश्चित ही ट्रेड मार्केट पर इसका असर देखने में थोड़ा समय लगेगा। फिर भी जानकार बताते हैं कि स्थानीय बाजार और ट्रैवेल उद्योग की उछाल से इस दिशा में उम्मीदों को चार चांद लगने ही हैं। फिर से लोगों के जेहन में स्थानीय उत्पाद घर करेंगे और उनकी मांग बढ़ेगी। इसी बीच राज्य में जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की सम्पन्न हुई बैठक पूरी दुनिया के लिए साफ संकेत है कि विभिन्न देशों के नजरिए से कश्मीर घाटी के हालात और उसके भविष्य के बारे में छाया धुंध छंट चुका है। वर्किंग ग्रुप में 60 से अधिक प्रतिनिधियों का शामिल होना मायने रखता है। चीन की इससे दूरी को भी समझा जा सकता है कि वह पाकिस्तान के करीब है।

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स्वाभाविक है कि किसी भी भूभाग में रोजगार और व्यवसाय की स्थिति स्थानीय कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है। पिछले तीन वर्ष जम्मू कश्मीर के लिए इस लिहाज से बेहतर कहे जा सकते हैं। उग्रवादी हमले कम हुए है। सुरक्षा बलों की चौकसी से तिलमिलाए चरमपंथियों ने ‘टारगेटेड अटैक’ शुरू किए और इधर हाल में तो अवकाश पर आए एक सुरक्षाकर्मी जावेद अहमद का अपहरण भी कर लिया। सीमाओं पर सख्त सुरक्षा से बौखलाए समर्थकों ने कभी और किसी को भी लक्ष्य करने की जुर्रत शुरू की। हालांकि इस तरह की घटनाएं नगण्य हैं और देश-दुनिया के मुकाबले घाटी पर तीक्ष्ण नजर रखने के चलते मीडिया में यह खबरें बड़ी लगती हैं। यह आंकड़ा भी कानून व्यवस्था की बेहतरी का ही है कि राज्य में स्थानीय चरमपंथी भी घटकर तीन दहाई से भी कम रह गये हैं।

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निश्चित ही राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया का फिर से शुरू किया जाना बड़ा उद्देश्य है। कानून व्यवस्था, रोजगार और बाजार की बेहतरी के बाद लोग चुनाव की उम्मीद कर रहे हैं। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की अपनी कार्य शैली इस तरह की है कि वे प्रतिदिन पंचायत प्रतिनिधियों, विभिन्न संगठनों और आम लोगों के बीच हुआ करते हैं। खबरें बताती हैं कि लोगों का भविष्य में भरोसा बढ़ा है। राज्य के पुनर्गठन के बाद निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह काम भी लगभग पूरा होने को है। उम्मीद है कि राज्य की जनता शीघ्र भी अपनी एक निर्वाचित सरकार के साथ आगे बढ़ेगी।

डॉ. प्रभात ओझा

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