पहली बार चली 232 वैगन की 2.7 किलोमीटर लंबी मालगाड़ी, रेलवे ने किया नया प्रयोग

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मीरजापुर: चुनार रेलवे की ओर से माल ढुलाई को बढ़ावा देने के लिए नित नए प्रयोग किए जा रहे हैं। शनिवार की देर शाम चुनार जंक्शन से एनसीआर ने कोयला रेक की आवाजाही में तेजी लाने के उद्देश्य से, चुनार से 4 खाली रेक (बॉक्सएन) की लांगहाल मालगाड़ी का संचालन किया।

पिनाका के रूप में नामित 2.7 किलोमीटर लंबी इस लांगहाल मालगाड़ी में कुल 232 वैगन और चार ब्रेकवान शामिल थे। इसमें सबसे आगे मल्टी यूनिट लोकोमोटिव (इंजन) था। बाकी तीन रैक के अपने-अपने इंजन थे। रेलवे के इस प्रयोग से एनसीएल की कोयला खदानों से रेलवे की होने वाली ढुलाई में काफी तेजी आएगी। साथ ही समय की बचत भी होगी।

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एसएस चुनार आरके पांडेय ने रविवार को बताया कि उत्तर मध्य रेलवे ने रेक को जोड़ कर मालगाड़ी जोड़ने का ट्रायल के रूप में पहला प्रयोग छह अगस्त को किया गया था। इसमें दो रेक जोड़ कर चुनार से चोपन भेजे गए थे। इसके बाद 22 अगस्त को तीन रेक भेजने का प्रयोग करने के बाद शनिवार को चार रेक जोड़ कर चोपन भेजने का सफल प्रयोग किया गया। आमतौर पर लंबी दूरी की ट्रेनें दो ट्रेनों को मिलाकर चलाई जाती हैं। हालांकि, माल ढुलाई में तेजी लाने, विशेष रूप से कोयले को देखते हुए, परीक्षण के आधार पर तीन या अधिक ट्रेनों को मिलाकर एक लंबी मालगाड़ी की संरचना की गई। अगस्त के महीने में प्रयागराज मंडल के चुनार से 36 लांगहॉल की दो ट्रेनों और चार त्रिअग्नि (त्रिअग्नि- तीन खाली बॉक्सएन) रेक की लांगहाल का गठन किया गया था। खाली रेक की लांगहॉल को विभिन्न कोयला लदान स्थलों पर लदान के लिए पूर्व मध्य रेलवे को भेजा जाता है।

सिंगल लाइन है चुनार-चोपन रेल खंड

चुनार-चोपन खंड वर्तमान में सिंगल लाइन खंड है, यह कोयले की आवाजाही के लिए ट्रंक मार्ग के रूप में भी कार्य करता है। उत्तरी कोयला क्षेत्रों (एनसीएल) में अधिकतम कोयला लोडिंग हो रही है। इसलिए कोचिंग ट्रेनों की समय पालन को प्रभावित किए बिना कोयला रेक की गतिशीलता बढ़ाने के लिए लांगहॉल ट्रेनों को चलाने के विचार को क्रियान्वित किया गया है। पिनाका शनिवार की रात 18.20 बजे चुनार से रवाना हुई और उसे चोपन में पूर्व मध्य रेलवे को सौंप दिया गया। जिसमे से दो रेक को शक्ति नगर साइडिंग एवं दो को कृष्णशिला साइडिंग में कोयला लोडिंग के लिए भेजा गया। पारंपरिक रूप से उत्तर मध्य रेलवे में टूंडला, खुर्जा, झांसी और बाद जैसे स्थानों से दो ट्रेनों की लांगहॉल बनाई जाती रही है।

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