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15 दिन के अंदर कर लें गेहूं की बोआई

लखनऊः तमाम उन किसानों के लिए यह अच्छी खबर साबित हो सकती है, जिन्होंने अभी तक गेहूं की बोआई नहीं की है। नवंबर के शुरुआत में हल्की बारिष से बोआई में कुछ परेषानी हुई थी, फिर भी लक्ष्य लेकर चल रहे किसानों ने जमीन की नमी कम होते ही बीज बो दिए थे। दिसंबर के शुरुआती दिनों मंे भी गेहूं की बोआई कर सकते हैं। ध्यान यह देना होगा कि खाद और बीज की गुणवत्ता से समाझौता न करें। तापमान अभी इस फसल के अनुकूल है। ज्यादा ठंड होने से पहले ही अंकुर जमीन के बाहर जा जाएंगे।

गेहूं ठण्डी एवं शुष्क जलवायु की फसल है अतः फसल बोने के समय 20 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान होना चाहिए। इन दिनों करीब इतना ही तापमान रहता है। तापमान अधिक होने पर फसल जल्दी पाक जाती है और उपज घट जाती है, इसलिए 15 दिसंबर तक हर हाल में बौनी कर लेनी जरूरी है। अन्यथा नुकसान उठाने के लिए तैयार रहें। दोमट, जलोढ़, मटियार, दोमट तथा काली मिट्टी वाले किसानों के लिए अभी मौसम मददगार है। प्रयोगों से यह देखा गया है कि लगभग 15 नवंबर के आसपास गेहूं बोये जाने पर अधिकतर बौनी किस्में अधिकतम उपज देती है। यदि किसी कारण से बोनी विलंब से करनी हो तब देर से बोने वाली किस्मों की बोनी दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक हो जाना चाहिये। देर से बोयी गई फसल को पकने से पहले ही सूखी और गर्म हवा का सामना करना पड़ जाता है, जिससे दाने सिकुड़ जाते हैं तथा उपज कम हो जाती है।

ऐसे करें खेत की तैयारी

अच्छे अंकुरण के लिये एक बेहतर भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है। समय पर जुताई खेत में नमी संरक्षण के लिए भी आवश्यक है। बोआई के समय खेत खरपतवार मुक्त कर लें। बोआई करते समय यह ध्यान रखें कि बीज जमीन पर पर्याप्त दूरी पर डालें।

उचित बीज का करें चुनाव

बुआई के लिए जो बीज इस्तेमाल किया जाता है वह रोग मुक्त, प्रमाणित तथा क्षेत्र विशेष के लिए अनुशंषित उन्नत किस्म का होना चाहिए। रोगों की रोकथाम के लिए ट्राइकोडरमा की 4 ग्राम मात्रा 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के साथ प्रति किग्रा बीज की दर से बीज शोधन कर उपयोग करें। गेहूं के लिए 100 से 120 किग्रा प्रति हेक्टेयर तथा देशी गेहूं के लिए 70 से 90 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोतें हैं।

क्रास बोआई पर दे जोर

प्रयोगों में यह देखा गया है कि पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण क्रास बोआई करने पर गेहूूं की अधिक उपज प्राप्त होती है। इस विधि में कुल बीज व खाद की मात्रा, आधा-आधा करके उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में बोआई की जाती है। इस प्रकार पौधे सूर्य की रोशनी का उचित उपयोग प्रकाश संश्लेषण मंे कर लेते हैं, जिससे उपज अधिक मिलती है। गेहूं में प्रति वर्गमीटर 400 से 500 बालीयुक्त पौधे होने से अच्छी उपज प्राप्त होती है।

खाद एवं उर्वरक में न हो असमानता

ग्ेाहूं बोआई में हरी खाद, जैविक खाद एवं रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है। खाद एवं उर्वरक की मात्रा गेहूं की किस्म, सिंचाई की सुविधा, बोने की विधि आदि कारकों पर निर्भर करती है। अच्छी उपज लेने के लिए भूमि में कम से कम 35-40 क्विंटल गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद 50 किलो ग्राम नीम की खली और 50 किलो अरंडी की खली आदि इन सब खादों को अच्छी तरह मिलाकर खेत में बुवाई से पहले इस मिश्रण को समान मात्रा में बिखेर लें। इसके बाद खेत में अच्छी तरह से जुताई कर खेत को तैयार करें इसके उपरांत बुवाई करें।

सिंचाई समय पर ही करें

पहली सिंचाई बोने के 20 से 25 दिन पर करना चाहिये। लम्बी किस्मों में पहली सिंचाई सामान्यतः बोने के लगभग 30 से 35 दिन बाद की जाती है। दूसरी सिंचाई बोआई के लगभग 40 से 50 दिन बाद करना चाहिए। तीसरी सिंचाई ब¨आई के लगभग 60 से 70 दिन बाद की जाती है। चैथी सिंचाई बोआई के 80 से 90 दिन बाद करनी चाहिए। पांचवी सिंचाई बोने के 100 से 120 दिन बाद ही करें।

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खरपतवार पर नियंत्रण रखें

ग्ेाहूं के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार भी खेत में उगकर पोषक तत्वों, प्रकाश, नमी आदि के लिए फसल के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं। यदि इन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो उपज मे 10 से 40 प्रतिशत तक हानि संभावित है। बोआई से 30 से 40 दिन तक का समय खरपतवार प्रतिस्पर्धा के लिए अधिक क्रांतिक रहता है। इसे नियंत्रण के लिए 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36 प्रतिशत (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा अथवा 2,4-डी लवण 80 प्रतिशत (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टेयर में बोनी के 25 से 30 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।