‘कानून के समक्ष समानता’ का नवाचार

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जबलपुरः जबलपुर संभागायुक्त बी.चंद्रशेखर द्वारा नवीन पहल करते हुए अपने न्यायालय के स्वरूप बदलकर उसे ”Equality before law ” अर्थात कानून के सामने सब समान है” इस संवैधानिक सिद्धांत की चरितार्थ किया गया है। यह प्रदेश का इस तरह का पहला संभवत: देश का भी एकमात्र उदाहरण है।

हमारे देश में सभी प्रकार के न्यायालयों में एक विशिष्ट प्रकार की बैठक व्यवस्था होती है। चाहे वह सिविल न्यायालय हो, दाण्डिक न्यायालय हो या राजस्व न्यायालय हो, सभी न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी एक उच्च स्थान पर बैठते हैं और पक्षकार, वकील, आदि निचले स्तर पर बैठते हैं। साथ ही पक्षकारों को एवं वकीलों को खड़े रहकर ही अपनी बात रखनी होती है। कभी-कभी साक्ष्यों के परीक्षण, प्रतिपरीक्षण या बहस के दौरान वकीलों को घंटों खड़े रहना पड़ता है। विशेषकर बुजुर्ग पक्षकार एवं वकीलों के लिए यह कठिन होता है।

किसी न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को एक उच्च स्थान पर बैठने एवं पक्षकारों या वकीलों को निचले स्थान पर बैठने या खड़े रहकर पैरवी करने का प्रावधान किसी कानून में नहीं है। फिर भी साम्राज्यवादी एवं उपनिवेशवादी ब्रिटिश व्यवस्था के समय से एवं उसके पूर्व से भी इस प्रकार की असमान व्यवस्था न्यायालयों में चली आ रही है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 विधिक समानता ”Equality before law ” का सिद्धांत देता है और प्रत्येक व्यक्ति को यह बुनियादी अधिकार के रूप में प्रदत्त करता है। न्यायालयों की वर्तमान बैठक व्यवस्था विधिक समानता के सिद्धांत के अनुकूल प्रतीत नहीं होती। हमारे न्यायालय विधि एवं न्याय के रखवाले हैं और उन पर यह दायित्व है कि वह इस विधिक समानता के सिद्धांत को लागू करें एवं प्रत्येक व्यक्ति के इस बुनियादी अधिकार का बनाये रखें।

इस संदर्भ में कमिश्नर चन्द्रशेखर द्वारा उनके न्यायालय जो भिन्न-भिन्न कानूनों के तहत राजस्व एवं दाण्डिक न्यायालय है, उनकी संपूर्ण बैठक व्यवस्था को बदल दिया गया है। उनके न्यायालय में सभी पक्ष एक ही स्तर पर बैठते हैं। अर्थात पीठासीन अधिकारी के उच्च स्थान को हटाकर अब पीठसीन अधिकारी, पक्षकार एवं वकील आदि एक ही स्तर पर बैठते हैं। साथ ही उनके न्यायालय में किसी पक्षकार या वकील को खड़े रहकर अपनी बात रखने की आवश्यकता नहीं है। वे एक ही स्तर पर पीठासीन अधिकारी के समक्ष रखी गई कुर्सियों पर बैठकर अपनी बात रखते हैं। चन्द्रशेखर कहते है कि हो सकता है इसे मात्र प्रतीकात्मक समानता माना जाए परन्तु प्रतीकात्मक होते हुए भी यह महत्वपूर्ण है।