गोरखपुरः किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार लगातार प्रोत्साहन योजनाएं लागू कर रही है। इसी कड़ी में किसानों का खजाना बढ़ाने के लिए योगी सरकार ने Superfoods मखाना की खेती के लिए सब्सिडी देने की व्यवस्था बनाई है। इसके लिए सरकार का खास फोकस पूर्वांचल पर है, जिसकी जलवायु बिहार के मिथिलांचल जैसी है, जहां सबसे ज्यादा मखाना की खेती होती है। सरकार ने पूर्वांचल के 14 जिलों में सब्सिडी पर मखाना की खेती का लक्ष्य रखा है।
इसमें गोरखपुर मंडल के देवरिया जिले में पिछले साल से मखाना की खेती शुरू हो गई है, जबकि मंडल के तीन अन्य जिलों गोरखपुर, महराजगंज और कुशीनगर को कुल 33 हेक्टेयर में मखाना की खेती का लक्ष्य दिया गया है। वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है कि गोरखपुर मंडल की जलवायु में मिथिला जैसी उत्पादकता देने की क्षमता है।
मखाना के लिए सबसे अच्छा है इलाका है पूर्वांचल
मखाना की खेती ऐसे स्थानों के लिए ज्यादा उपयुक्त है जहां खेतों में काफी पानी जमा होता है। गोरखपुर मंडल में न सिर्फ तालाबों की पर्याप्त संख्या है, बल्कि मंडल के कई ब्लॉक ऐसे हैं, जहां निचले इलाकों में बारिश का पानी लंबे समय तक खेतों में भरा रहता है। जाहिर है कि इन क्षेत्रों के किसान मखाना की खेती अपनाकर मालामाल हो सकते हैं। सरकार ने इसी इरादे से मखाना की खेती के लिए सब्सिडी का प्रावधान भी किया है। सरकार की इस पहल का मकसद किसानों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना है। सरकारी प्रवक्ता का कहना है कि गोरखपुर मंडल के देवरिया जिले में पिछले साल मखाना की खेती का प्रयोग शुरू हुआ है।
लागत का 40 फीसदी सब्सिडी से मिलेगा मुआवजा
उद्यान विभाग में पंजीकरण कराकर मखाना की खेती करने वाले किसानों को सरकार प्रति हेक्टेयर 40 हजार रुपये की सब्सिडी देगी। एक हेक्टेयर में मखाना की खेती की लागत करीब एक लाख रुपये आती है। ऐसे में लागत का 40 फीसदी हिस्सा अकेले सरकारी सब्सिडी से ही पूरा हो जाएगा। एक हेक्टेयर के तालाब या जलभराव वाले खेत में औसतन प्रति हेक्टेयर 25 से 29 क्विंटल उपज प्राप्त होती है। वर्तमान में अच्छी गुणवत्ता वाले मखाना का औसत थोक मूल्य 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम है।
नर्सरी लगाने से लेकर फसल तैयार होने में लगते हैं दस महीने
मखाना की खेती औसतन तीन फीट पानी से भरे तालाब या खेत में की जाती है। नवंबर माह में इसकी नर्सरी लगाई जाती है और चार महीने बाद (फरवरी-मार्च में) इसकी रोपाई की जाती है। रोपाई के करीब पांच महीने बाद पौधों में फूल खिलने लगते हैं। अक्टूबर-नवंबर में इसकी कटाई शुरू हो जाती है। नर्सरी लगाने से लेकर कटाई तक फसल तैयार होने में कुल दस महीने लगते हैं। मखाना की खेती उन किसानों के लिए और भी फायदेमंद है जो पहले से ही अपने निजी तालाबों में मछली पालन करते हैं।
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Superfoods के रूप में बढ़ रही है मखाना की ख्याति
पोषक तत्वों का खजाना होने के कारण सुपरफूड के रूप में मखाना की ख्याति बढ़ रही है। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य और इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए जागरूकता काफी बढ़ गई है और इसी वजह से मखाने की मांग भी काफी तेजी से बढ़ी है। कैलोरी में कम होने के अलावा मखाना प्रोटीन, फास्फोरस, फाइबर, आयरन और कैल्शियम से भरपूर होता है। पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के साथ-साथ हृदय, उच्च रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए इसका सेवन फायदेमंद माना जाता है।
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