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बेल की खेती से लिखिए समृद्धि की इबारत, तेजी से बढ़ रही मांग

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लखनऊः जितना हम आधुनिक होते जा रहे हैं, उतना ही पुरानी चीजों को खोते जा रहे हैं। इसके बावजूद भी ऊंची सोच वाले इन चीजों को ही लपक लेते हैं। यह चीजें ही समझदारी और समृद्धि बन जाती हैं। भारत के प्राचीन फलों में से एक होने के बाद भी लोग बेल जैसे फल से दूर होते जा रहे हैं। सभी जानते हैं कि बेल के जड़, छाल, पत्ते, शाख और फल औषधि रूप में मानव जीवन के लिये काफी उपयोगी हैं। प्राचीनकाल से बेल को ‘श्रीफल’ के नाम से जाना जाता है। बेल एक क्यारी से लेकर बंजर भूमि में उगाया जा सकने वाला पोषक फल है। इसमें विटामिन-ए, बी, सी, खनिज तत्व, कार्बोहाइड्रेट एवं औषधीय गुण पाए जाते हैं। भविष्य में बेल की खेती की अपार संभावनायें हैं। मई-जून की गर्मी के समय इसकी पत्तियां झड़ जाती है, जिससे पौधों में शुष्क एवं अर्धशुष्क जलवायु को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। यूपी के सभी जिलों में बेल की खेती की जा सकती है।

ज्यादा लाभ वाली हैं कई किस्में

बेल की अनेक स्थानीय किस्में हैं, परन्तु हाल के वर्षों में केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान की ओर से पौध तैयार किए गए हैं। यह बारिश के दौरान लोगों को वितरित किए जाने हैं। नरेन्द्र बेल 5 में पौधे कम ऊँचाई (3-5 मी.) एवं अधिक फैलाव वाले होते हैं। फल चपटे सिरे वाले, मध्यम आकार के (21 से 25 से.मी.), मीठे स्वाद तथा कम बीज वाले होते हैं। फलों का औसत वजन 900-1000 ग्राम तक होता है। नरेन्द्र बेल 7 के पौधे औसत ऊँचाई (5-7 मी.) तथा अपेक्षाकृत कम फैलाव वाले (3-5 वर्ग मी.) व अपेक्षाकृत कम फैलाव वाले (3-5 वर्ग मी.) होते हैं। फल गोल तथा काफी बड़े होते हैं। जिनका का औसत वजन 3-4.5 किग्रा तक पाया जाता है। इसके अलावा पंत सिवानी, पंत अर्पणा, पंत उर्वसी, पंत सुजाता आदि उन्नतशील किस्म हैं।

यह महीना है बुवाई के लिए अनुकूल

बेल के पौधे मुख्य रूप से बीज द्वारा तैयार किये गये मूलवृंत पर कालिकायन या ग्राफ्टिंग द्वारा बनाये जाते हैं। बीजों की बुवाई फलों से निकालने के तुरंत बाद 15-20 से.मी. ऊंची 1 से 10 मीटर आकार की क्यारियों में 1-2 से.मी. गहराई पर कर देनी चाहिये। बुवाई का उत्तम समय मई-जून का महीना होता है।

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चार साल में करें छटाई

पौधों की सधाई का कार्य शुरूआत के 4-5 वर्षों में करना चाहिए। मुख्य तने को 75 से.मी. तक शाखा रहित रखना चाहिए। इसके बाद 4-6 मुख्य शाखायें चारों दिशाओं में बढ़ने देनी चाहिए। बेल के पेड़ों में विशेष छंटाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है, परन्तु सूखी, कीड़ों एवं बीमारियों से ग्रसित टहनियों को समय-समय पर निकालते रहना चाहिए।