नई दिल्लीः गुरूवार के दिन भगवान विष्णु की आराधना के साथ ही बृहस्पति देव की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक सप्ताह का हर एक दिन किसी न किसी देवता को समर्पित होता है। इसी तरह गुरूवार के दिन भगवान बृहस्पति का व्रत एवं पूजन करने से भक्त के जीवन में आ रही सभी बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती है। भगवान बृहस्पति को देवताओं का गुरू माना जाता है और गुरू का स्थान सर्वोच्च होता है। ऐसे में देवगुरू बृहस्पति का गुरूवार के दिन व्रत एवं पूजन करने से भक्त के सभी कष्ट दूर होते है और उनके घर में सर्वथा शांति बनी रहती है। इसके साथ ही भगवान बृहस्पति की पूजा आराधना से भाग्योदय भी अवश्य होता है।
गुरू बृहस्पति की पूजा की विधि गुरूवार के दिन प्रातः काल घर की भली प्रकार से सफाई के बाद स्नानादि के निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान बृहस्पति को पीला रंग अतिप्रिय है। इसलिए व्रती को गुरूवार के दिन पीला वस्त्र ही धारण करना चाहिए। गुरू भगवान की पूजा मंदिर अथवा घर पर ही विधि-विधान से की जा सकती है। घर पर पूजा की चौकी पर पीले रंग के कपड़े को बिछाकर भगवान बृहस्पति की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद पीले चंदन से उनका तिलक करें। एक पीतल के लोटे में जल भरकर भगवान को चढ़ाये और जल में चना और गुड़ डालकर रखें।
यह भी पढ़ेंःकेरल में कोरोना की स्थिति चिंताजनक, केन्द्र ने भेजी 6 सदस्यीय विशेषज्ञों की टीमइसके साथ ही भगवान को गुड़, चने और पीला फल भोग में लगाये। इसके बाद पीला फूल अर्पण कर धूप और दिया जलाकर भगवान की पूजा करें। इसके बाद बृहस्पति भगवान की कथा श्रवण करें। पूजा करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजा की समाप्ति तक किसी से बोले नहीं अर्थात मौन भाव से भगवान की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद भगवान बृहस्पति और भगवान विष्णु की आरती करें और पूजा की समाप्ति के बाद प्रसाद अवश्य ग्रहण करें। पूजा खत्म होने पर लोटे के जल को केले के पेड़ में अर्पित करें।