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नवरात्र के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना से होता है पाप-विघ्न का नाश

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कानपुरः कोरोना काल में भी देवी भक्तों की आस्था को कोरोना रूपी दैत्य हिला न सका। भक्त घरों में ही रहकर माता की प्रतिमा व कलश की पूजा करते हुए नवरात्र के सातवें दिन भी माता दुर्गा की सातवीं शक्ति स्वरूप कालरात्रि से समस्त प्राणियों के जीवन दान की कामना कर रहे हैं। ज्योतिषविदों के अनुसार नवरात्र में माता के सभी स्वरूपों की पूजा का एक अलग महत्व माना गया है। इन नौ दिनों में घर पर ही माता की मूर्ति व कलश स्थापना करने से माता की कृपा होती है। ज्ञान, स्वस्थ शरीर, शक्ति, धन व यश का भी फल प्राप्त होता है।

माता दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माता कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी-काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालरात्रि के अन्य प्रसिद्ध नामों में से एक हैं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि नाम, काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है, हालांकि इन दो देवियों को कुछ लोगों द्वारा अलग-अलग रूप में माना गया है।

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माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है, जो माता के आगमन से पलायन करते हैं। सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माँ कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य (सिद्धियों और निधियों विशेष रूप से ज्ञान, शक्ति और धन) का वह भागी हो जाता है। उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है और अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है।