Maa Kushmanda: नवरात्रि के चौथे दिन भक्तजन मां कुष्मांडा (Maa Kushmanda) की पूजा-अर्चना करते हैं। मां के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा और दुखों से छुटकारा मिलता है। साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है।
माता रानी ने कुष्मांडा स्वरूप (Maa Kushmanda) असुरों के अत्याचार से देव ऋषियों को मुक्ति दिलाने के लिए धारण किया था। देवी कुष्मांडा स्वरूप में अवतरित हुई थीं। आदिशक्ति के इस स्वरूप के दर्शन-पूजन से जीवन की सारी भव बाधा और दुखों से छुटकारा मिलता है, साथ ही भवसागर की दुर्गति को भी नहीं भोगना पड़ता है।
मां कुष्मांडा का स्वरूप
माता कुष्मांडा देवी (Maa Kushmanda) की आठ भुजाएं होती हैं। ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात है। इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र व गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। माता का वाहन सिंह (शेर) माना गया है। माता कुष्मांडा की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है।
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पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन भोर में उठकर सर्वप्रथम दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद स्नान कर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मां का फूलों से श्रृंगार करें और हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम करें। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती या दुर्गा चालिसा का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। पूजा के दौरान मां कुष्मांडा के मंत्र का जाप करें –
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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