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विश्व पर्यावरण दिवस विशेषः मेरठ की चार नदियों को जीवन देने का काम कर रहा यह शख्स

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नई दिल्लीः बड़ी नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए इनकी सहायक नदियों को संरक्षित करना बेहद जरूरी है, लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण छोटी बरसाती नदियों पर कब्जा होता जा रहा है जिसके कारण आज कई नदियां या तो लुप्त हो गई हैं या फिर नाले में तब्दील हो गई है। ऐसे में सहायक नदियों का संरक्षण करना बहुत जरूरी है।आज विश्व पर्यावरण दिवस पर मेरठ की उन चार सहायक नदियों की बात करेंगे, जिसे बचाने में रमन कांत त्यागी की अहम भूमिका रही है। मेरठ में चार सहायक नदी बहती हैं।

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ये नदियां समय के साथ लुप्त हो गईं थीं। गंगा नदी की सहायक नदियों में गिनी जाने वाली काली ईस्ट, नीम, काली वेस्ट और हिंडन नदियों का वजूद नालों के रूप में लोगों के सामने है। इनमें से काली ईस्ट, काली वेस्ट, नीम लगभग लुप्त ही गई थीं। इन नदियों के उद्गम स्थान को खोजने और इसे बचाने के लिए करीब 20 सालों से प्रयासरत मेरठ के रहने वाले रमन कांत त्यागी बताते हैं कि उनकी कई सालों की मेहनत अब रंग ला रही है। काली ईस्ट, काली वेस्ट, नीम और हिंडन नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में अब स्थानीय लोग भी साथ देने लगे हैं। लोग भी नदियों के महत्व को समझने लगे हैं।

नदी पुत्र के नाम से जाने जाने वाले रमन कांत त्यागी बताते हैं कि सेटेलाइट मैपिंग और टेक्निकल अध्ययन के माध्यम से हिंडन नदी का उद्गम स्थल ढूंढा गया, जो कि एक गांव में है। इसके बाद ग्रामीणों और जहां-जहां से हिंडन नदी निकलती है वहां के लोगों से आह्वान किया कि इसे साफ रखें और इस कार्य में अपना सहयोग दें। वे बताते हैं कि शुरुआत में लोग नदी बचाने की मुहिम से जुड़ने से कतराते थे, क्योंकि कई लोग इन नदियों की जमीन पर ही खेती और उद्योग चला रहे थे। पुराने मैप के माध्यम से नदियों के उद्गम स्थान को तलाशा गया और इनके रास्ते को कब्जे से मुक्त कराया गया। उन्होंने बताया कि अब काली नदी को जीवन मिल गया है। हिंडन नदी पर काम किया जा रहा है।

वे आगे बताते हैं कि उनकी बीस साल की मेहनत अब रंग ला रही है। मेरठ की चार नदियों को तलाशने के बाद उसके वजूद को लोगों के सामने लाया गया है। नदी संरक्षण के कार्य में अब सरकार भी मदद कर रही है। नदियों के बारे में लोगों को भी जागरूक किया जा रहा है। मुजफ्फरनगर में हिंडन की सहायक नदी (काली पश्चिम नदी) के आसपास कई गांव में अब भूजल स्तर भी सुधरा है। लोग भी समझने लगे हैं कि जबतक सहायक नदियों को संरक्षित नहीं किया जाएगा तब तक गंगा-यमुना को बचाया नहीं जा सकता।

रमन कांत त्यागी कहते हैं कि जो नीरसता देश में छोटी नदियों को लेकर है, उसको दूर करने की आवश्यकता है। अपने नदी पुनर्जीवन मॉडल से देश की सभी नदियों को बचाने का काम शुरू हो सकता है। मेरे कार्य से और लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। काली व नीम नदियों का पुनर्जीवन समाज में नदियों के प्रति एक चेतना पैदा अवश्य करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

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