नई दिल्लीः भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी पर्व पर भी तिथियों को लेकर असंमजस की स्थिति है। ऐसे में हर बार की तरह इस वर्ष भी जन्माष्टमी दो दिन मनाई जायेगी।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त
18 अगस्त को रात्रि 12 बजे अष्टमी है। इसी दिन सभी व्रत रखना श्रेयस्कर होगा। क्योंकि श्री विष्णु पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, सभी अर्ध रात्रि काल में श्री कृष्ण के जन्म की पुष्टि करते हैं। 18 अगस्त को रात्रि के बाद अष्टमी आ जायेगी, जो की 19 अगस्त को 23 बजे तक रहेगी। इसलिए 18 को समस्त व्रत करना श्रेयस्कर होगा। 19 अगस्त को जन्मोत्सव का उत्सव मनाएं। जिस प्रकार से अष्टमी तिथि को अर्ध रात्रि, रोहिणी नक्षत्र में भगवान का जन्म मथुरा में हुआ, मां बाप दोनों भूखे थे। जबकि अगले दिन जब भगवान वृंदावन पहुंच गए तो वहां उत्सव मनाया गया। ठीक इसी प्रकार 18 को व्रत करें तथा 19 को उत्सव मनाएं।
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भगवान के जन्म के समय उच्च राशि में थे चंद्र और रोहिणी
जब भगवान का जन्म हुआ तब चंद्र, रोहिणी में अपनी उच्च राशि में थे। कहते हैं कि रोहिणी का चंद्रमा जन्म स्थान से दूर ले जाता है। जन्म के समय श्रीकृष्ण की कुण्डली में सूर्य सिंह राशि में था। यदि यह चतुर्थ भाव में हो तो जातक की अपनी माता की गोद छीन जाती है। शुक्र-शनि छठे घर में होने पर जेल योग बनाता है। जिस कारण से भगवान का जन्म ही जेल में हुआ। गुरु लाभ स्थान में, मकर का मंगल नवम में ये कुंडली देखकर कहा जा सकता है कि ये कुंडली किसी महा मानव की है। मंगल, शनि, चंद्र, बुद्ध अपनी उच्च राशि में सूर्य, शुक्र, गुरु अपनी स्व राशियों में थे। श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली के अनुसार श्री कृष्ण 16 कला के अवतार थे। बगुला मुखी के परम साधक कृष्ण ने कई बार बगुला मुखी के स्तंभन मंत्र का प्रयोग किया। इसी कारण वह पीले वस्त्र पहनते थे। केंद्र में राहु, केतु, सूर्य के कारण सर्प दंश का योग था, इसीलिए वो मोर पंख लगाते थे। शनि, शुक्र की तुला राशि रहना मायावी बनाता है। इसी कारण से भगवान को मायावी भी कहा गया।
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