लखनऊः इस बार किसानों को तोरई की फसल (ridge gourd crop) में काफी झटका लगा है। जो किसान पहले बारिश का इंतजार कर रहे थे, वह बैठे ही रह गए। जब बारिश शुरू हुई तो फसल का समय निकल चुका था। अब जिनके खेतों में काफी छोटे पौधे हैं, उनसे कमाई की उम्मीद कामी कम है।
तोरई की खेती (ridge gourd crop) गर्मियों में जायद के रूप में की जाती है। इसे जब बारिश में बोते हैं तो वह खरीफ की फसल कही जाती है। यह दोनों मौके ऐसे हैं, जिनमें यदि किसानों ने समय को पकड़ लिया तो काफी मुनाफा मिलता है। गर्मी में जायद का सीजन मार्च में ही बेहतर माना जाता है, जबकि वर्षाकालीन खरीफ का सीजन जून से जुलाई तक चलता है। इस बार तरोई की अगेती खेती से ही किसानों की भरपूर आमदनी हो रही है। जिन किसानों ने बारिश का इंतजार नही किया था, उन्होंने इसकी बुवाई के लिए नाली विधि ज्यादा उपयोग किया।
मिट्टी की गुणवत्ता की जांच जरूरी
बारिश आने पर इससे पौधों को बचाने में आसानी हुई। जिन किसानों के खेतों में देर से बोए गए तरोई के बीज उगकर करीब दो फीट के हैं, उन्हें पौधे उखाड़ने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। गेहूं की फसल के लिए अभी उचित समय नहीं है। यदि कोई अधिक लाभकारी फसल है और कम जगह में तोरई के पौधे हैं, तभी उगे हुए पौधे उखाड़ने में समझदारी होगी। तोरई की फसल (ridge gourd crop) बोने के लिए किसानों को पता होना चाहिए कि उनके खेत की मिट्टी की गुणवत्ता कैसी है ? मृदा परीक्षण से खेत में पोषक तत्वों की कमी का पता चलने पर उसे दूर करने में मदद मिल जाती है। हालांकि, 15-20 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाने से अच्छी उपज मिलती है। इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की जरूरत भी आवश्यकतानुसार पड़ी है। यह ऐसी सब्जी की फसल है, जो 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है।
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तोरई की सफल किस्में
तोरई की मांग गर्मी के दिनों में ज्यादा रहती है। इन दिनों सब्जी की कमी भी रहती है। बाजार में दुकानदारों के पास तमाम तरह के बीज मिल जाते हैं, लेकिन उन्नत किस्मों में पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी आदि हैं। कुछ किसान पालीहाउस में भी इनके पौधे तैयार करते हैं। इनमें घिया नाम का बीज प्रचलन में आज भी है लेकिन जो भी बीजों का उपयोग किया जाए, किसान उसे उपचारित जरूर करें। इससे संदेह की स्थिति नहीं रहेगी।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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