जगदलपुर: भारत विविधताओं का देश है। देश के हर कोने में अलग-अलग परंपराएं प्रचलित हैं और हर समुदाय की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। इसी तरह बस्तर संभाग के ग्रामीण अपनी अनोखी परंपराओं और मान्यताओं के लिए जाने जाते हैं। बस्तर के ग्रामीण आमतौर पर अपनी और अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए अनुष्ठान करते हैं और देवताओं को फल, फूल, मिठाई आदि चढ़ाते हैं, लेकिन बस्तर के कशपपति परगने के ग्रामीण अपनी रक्षा के लिए कंकालीन माता के चरणों में कीट-पतंगे चढ़ाते हैं।
उन्हें विश्वास है कि ये कीट उनकी फसलों में दोबारा नहीं लौटेंगे और उनकी फसल अच्छी होगी। कंकालीन माता मंदिर के पुजारी पद्मनाथ ठाकुर के मुताबिक, बस्तर जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर ग्राम बिरनपाल में कंकालीन जंगल है। इस जंगल के बीच में माता कंकालीन का एक पुराना मंदिर है। इस मंदिर में हर साल भाद्रपद शुक्लपक्ष के दिन 84 गांवों के ग्रामीण नवाखानी तिहार मनाते हुए माता बोहरानी अनुष्ठान करते हैं।
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इस अनुष्ठान के तहत खेतों में प्रचलित कीड़ों को कंकालिन गुड़ी लाया जाता है और देवी मां के चरणों में चढ़ाया जाता है। ग्राम बड़े कवाली से दल बल के साथ कंकालिन जंगल पहुंचे जयमन, बड़े मुरमा के कैलाश नाग, सारगुड़ के नरसिंह कश्यप ने बताया कि खेतों में कीट रोग न हो और अच्छी फसल हो, इसके लिए कंकालिन माता के चरणों में कीट चढ़ाने की पुरानी परंपरा है, जिसे लोग आज भी विश्वास के साथ मानते हैं।
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