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अखंड सौभाग्य के लिए होती है वट सावित्री पूजा, जानें व्रत कथा

vat savitri pooja

नई दिल्लीः ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री पूजा की जाती है। आज के दिन विवाहित औरतें अपने पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। आज के दिन विवाहित महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा कर सौभाग्य का आशीर्वाद लेती है। ऐसा माना जाता है कि बरगद के पेड़ में सभी देवताओं का वास होता है। वट सावित्री व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लौटाने के लिए यमराज को भी विवश कर दिया था। इस व्रत के दिन सत्यवान-सावित्री कथा को भी पढ़ा या सुना जाता है। वट सावित्री व्रत रखने वाली महिलाएं प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण का बरगद की पेड़ की पूजा करती हैं। व्रत रखने वाली महिलाओं को पूजा के समय व्रत कथा अवश्य सुननी चाहिए।

वट सावित्री पूजा की व्रत कथा भद्र देश के राजा थे अश्वपति। राजा अश्वपति के पास सभी सांसारिक सुख-सुविधाएं थी किंतु उनके कोई भी संतान नही थी। संतान के लिए राजा ने 18 वर्षों  तक लगातार तपस्या की। जिसके फलस्वरूप उन्हें पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई। राजा अष्वपति ने अपनी पुत्री का नाम सावित्री रखा। सावित्री बेहद रूपवती थी। सावित्री जब बड़ी हुई तो राजा उसके लिए वर की तलाष करने लगे, लेकिन सावित्री के योग्य उन्हें कोई भी वर नहीं मिला। अंत में राजा अष्वपति ने सावित्री से स्वयं वर की तलाष करने का कहा। इस पर सावित्री जंगल में गयी। जहां उनकी मुलाकात सत्यवान से हुई। द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। वहीं राजा अश्वपति से ऋषि नारद ने सत्यवान की अल्पआयु होने के बारे में जानकारी दी। इस पर सावित्री के माता-पिता ने उनको बहुत समझाया, परन्तु सावित्री अपने धर्म से नहीं डिगी। जिनके जिद्द के आगे राजा को झुकना पड़ा। इसके बाद सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। सत्यवान बड़े गुणवान, धर्मात्मा और बलवान थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ र्गइं और अपने पति के साथ ही सास-ससुर की सेवा करने लगीं। वहीं नारद जी ने सावित्री को सत्यवान के मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। जिसके चलते सावित्री बेहद परेषान रहने लगी। उन्होंने सत्यवान की मृत्यु के दिन निकट आने के तीन दिन पहले व्रत शुरू कर दिया। हर दिन की तरह भोजन बनाने के लिए लकड़ियां लेने को जंगल में गये। सत्यवान का उस दिन महाप्रयाण का दिन था। सत्यवान जंगल में लकड़ी काट रहे थे तभी उन्हें चक्कर आने लगा। जिसके बाद वह एक पेड़ के नीचे लेट गये और सावित्री उनके सिर को अपने गोद में रख कर सहला रही थी। तभी सावित्री को दूर से यमराज आते हुए नजर आये। यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चली गयीं। इस पर यमराज ने उन्हें पीछे आने से मना किया, लेकिन सावित्री बोलीं कि जहां उनके स्वामी जाएंगे वह वहां ही रहेगीं। यमराज के काफी मना करने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं।

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सावित्री की निष्ठा को देख यमराज ने उन्हें वरदान दिया। जिसके चलते सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आंखें दीं, उनका खोया हुआ राज्य दिया और सावित्री को लौटने के लिए कहा। परंतु सावित्री फिर भी नहीं लौटी। उन्होंने कहा कि मेरे प्राण तो आप लिये जा रहे हैं उसके बिना मैं कैसे लौट सकती हूं। इस पर यमराज ने कहा कि सत्यवान को छोड़ तुम कुछ भी मांग लो। इस पर सावित्री ने यमराज से संतान और सौभाग्य का आशीर्वाद मांगा। यमराज ने बिना सोचे विचारे सावित्री को आशीर्वाद दे दिया और आगे चलने लगे। तभी सावित्री बोलीं कि हे प्रभु! मैं एक पतिव्रता हूं और आपने मुझे संतान का आशीर्वाद दिया है जो मेरे पति के बिना संभव नही है। इस सुनकर यमराज बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने सत्यवान के प्राण वापस कर दिये। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गईं, जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। इसलिए वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से व्रती महिलाओं का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।