उदासीन और भ्रष्ट अधिकारियों पर चल रहा सीएम का चाबुक

 

लखनऊः सरकारी काम में उदासीनता और अनियमितता के आरोपों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब समझौता करने वाले नहीं हैं। तमाम बड़े और चापलूस अधिकारियों से घिरे होने के बाद भी किसी न किसी माध्यम से उन तक अनियमितता और भ्रष्टाचार की जानकारियां पहंुच ही जाती हैं। बड़े मामलों में बहराइच और वाराणसी के उपायुक्त स्वतः रोजगार पर कार्रवाई इसका उदाहरण है। निचले स्तर के अधिकारियों का कहना है कि सीएम को अपने इर्द-गिर्द के अधिकारियों पर भी ध्यान देना चाहिए। वह तमाम मामलों को दबाने की भूमिका में रहते हैं। वैसे तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने कार्यकाल में तमाम बड़े अफसरों पर कार्रवाई कर चुके हैं। इनमें आईपीएस रैंक के अधिकारी भी शामिल हैं।

बहराइच और वाराणसी के उपायुक्त (स्वतः रोजगार) को निलंबित करने का आदेश खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिया था। मुख्यमंत्री इन दिनों बिहार के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं, इसके बाद भी जो बड़े मामले उन तक पहुंच रहे हैं, उन पर वह ऐक्शन भी ले रहे हैं।

जिन मामलों में उन्होंने कार्रवाई की, उनसे संबंधित दोनों ही अधिकारियों के खिलाफ अब विभागीय जांच होगी। मुख्यमंत्री कार्यालय ने बुधवार 4 नवंबर को ट्वीट कर बताया था कि उन दोनों अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है। कार्यालय की ओर से बताया गया कि निलंबन के आदेश के साथ ही मुख्यमंत्री ने आरोपी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही के आदेश भी दिए हैं। संयुक्त विकास आयुक्त, लखनऊ मण्डल, लखनऊ को मामले में जांच अधिकारी बनाया गया है। निलंबन अवधि में यह कार्यालय आयुक्त, ग्राम्य विकास, लखनऊ से संबद्ध रहेंगे।

शासकीय धन का अनियमित भुगतान
वर्तमान में उपायुक्त (स्वतः रोजगार) के पद पर बहराइच में पदस्थ सुरेन्द्र कुमार गुप्ता पर आरोप है कि जनपद हरदोई के ब्लॉक अहिरोरी में खंड विकास अधिकारी रहते हुए ग्राम खाड़ाखेड़ा के आंगनबाड़ी केन्द्र के स्थलीय विवाद होने के स्थिति में न तो कोई कार्य कराया और न ही किसी फर्म से किसी भी निर्माण सामग्री की आपूर्ति ली। इतना ही नहीं, कोई मापाकंन भी नहीं कराया गया। बावजूद इसके भुगतान की कार्यवाही की गई। इस प्रकार गुप्ता ने न केवल प्रक्रियात्मक त्रुटि की, बल्कि शासकीय धन का अनियमित तरीके से भुगतान करने की गड़बड़ी भी की। मुख्यमंत्री ने इसे घोर अनुशासनहीनता, लापरवाही और स्वेच्छाचारिता माना है।

कर्मचारियों को धमकाने पर कार्रवाई

सुरेश चन्द्र केसरवानी, उपायुक्त (स्वतः रोजगार) वाराणसी पर राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन के कार्यों में शिथिलता बरतने का आरोप है। केसरवानी के खिलाफ अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ अशोभनीय भाषा का प्रयोग और उन्हें धमकाने की शिकायत भी मिली है।

बीते दिनों मुख्य विकास अधिकारी, वाराणसी ने इनके कार्यालय का निरीक्षण किया था, जहां पत्रावलियों के निस्तारण व वित्तीय अनियमितता सम्बन्धी शिकायतें सामने आई थीं। केसरवानी की उदासीनता के कारण दिसम्बर 2019 तक के लक्ष्य के सापेक्ष मासिक प्रगति की पूर्ति नहीं की जा सकी। इसके अलावा इन्हें जून 2019 में विकास खंड हरहुआ का अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया था, जिसके निर्वहन में भी केसरवानी ने लगातार उदासीनता बनाए रखी। मुख्यमंत्री ने अब इन्हें निलंबित कर इनके विरुद्ध विभागीय जांच कराने का आदेश दिया है।

बड़े अधिकारियों पर गिर चुकी है गाज

सीएम योगी आदित्यनाथ भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप में कई अब तक कई अधिकारियों को निलंबित कर चुके हैं। कुछ बहाल किए गए हैं तो कुछ को अन्य स्थान से जोड़ दिया गया था। बड़े मामलों में प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित और महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। इसके बाद उनको निलंबित कर दिया था। एडीजी जसबीर सिंह ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में सरकार पर टिप्पणी की थी।

इस टिप्पणी के बाद योगी सरकार ने उन्हें 14 फरवरी 2019 को निलंबित किया गया था। डीआईजी दिनेश चंद्र दुबे और डीआईजी अरविंद सेन को भी पशुपालन घोटाले में निलंबित किया गया था। आईपीएस दिनेश चंद्र दुबे और अरविंद सेन पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे, जिस पर कार्रवाई की गई थी। अरविंद सेन तत्कालीन एसपी सीबी सीआईडी थे। आईपीएस वैभवकृष्ण का एसएसपी नोएडा रहने के दौरान आपत्तिजनक वीडियो वायरल हुआ था। इसके साथ ही उन पर गोपनीय चिट्ठी को लीक करने का आरोप लगा था।

अधिकारी आचरण नियमावली का उल्लंघन करने के वैभव कृष्ण को सस्पेंड कर दिया गया था।
आईपीएस अपर्णा गुप्ता कानपुर में संजीत यादव अपहरण कांड में लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित हुई थीं। आईपीएस अभिषेक दीक्षित को एसएसपी प्रयागराज रहते निलंबित किया गया था। सहारनपुर में हुई हिंसा के मामले में तत्कालीन एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे को निलंबित किया गया था। वर्तमान में वह डीआईजी आजमगढ़ के पद पर तैनात थे। एसपी बाराबंकी रहे डॉ. सतीश कुमार को एक निजी फर्म के संचालक से उनके यहां तैनात दारोगा द्वारा 65 लाख रुपये रिश्वत लेने के मामले में निलंबित किया गया था।

क्लीनचिट मिलने के बाद उन्हें बहाल कर दिया गया था। एसएसपी बुलंदशहर एन कोलांची व एसएसपी प्रयागराज रहे अतुल शर्मा को भी भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित किया गया था। हालांकि, बाद में उन्हें बहाल कर दिया गया। विक्रांत वीर को हाथरस के एसपी, निर्भया कांड में लापरवाही और शिथिल पर्यवेक्षण का आरोप लगा था। अपर्णा गुप्ता को 2015 बैच की इस आईपीएस को सरकार ने तब निलम्बित कर दिया था। जब कानपुर के संजीत यादव अपहरण कांड में उनका नाम सामने आया था। इसी तरह अभिषेक दीक्षित का मामला है। 2006 के इस आईपीएस को प्रयागराज रहते निलम्बित किया गया था। कानून व्यवस्था न संभाल पाने के कारण इनपर गाज गिरी थी।

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ये हैं खास निलंबन

सुभाष चन्द्र दुबे को 2017 में सहारनपुर में हुए बवाल के बाद 2005 बैच के इस आईपीएस को सस्पेंड कर दिया गया था। डॉ. सतीश कुमार को बाराबंकी में एसपी रहते हुए इन्हें निलम्बित किया गया था। 2013 बैच के इस आईपीएस अफसर पर रिश्वतखोरी के आरोप लगे थे। एन कोलांची को बुलंदशहर में एसएसपी रहते 2019 में निलम्बित किया गया था। कोलांची पर थानाध्यक्षों के तबादले में अनियमितता के आरोप लगे थे।

अतुल शर्मा को प्रयागराज के एसएसपी रहते इन्हें निलम्बित किया गया था। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर नाकामी और भ्रष्टाचार के आरोप थे। आरएम भारद्वाज को 2018 में संभल में एसपी रहते इस आईपीएस को तब निलम्बित किया गया, जब एक महिला को गैंगरैप के बाद जलाकर मार डाला गया था। संतोष कुमार सिंह को प्रतापगढ़ में एसपी रहते सस्पेंड किया गया था। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर नाकामी के आरोप थे। हिमांशु कुमार पहले आईपीएस हैं जिन्हें योगी सरकार ने निलम्बित किया था। एक ट्वीट के कारण इन्हें मार्च 2017 में सस्पेंड किया गया था।