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सुप्रीम कोर्ट पहुंची दो महिला पत्रकार, राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को दी चुनौती

supreme court

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर कर राजद्रोह के कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। नई याचिकाएं दो महिला पत्रकारों ने दायर की हैं। पैट्रिशिया मुकीम और अनुराधा भसीन ने याचिका दायर की है । याचिका में कहा गया है कि राजद्रोह कानून का इस्तेमाल पत्रकारों को चुप कराने के लिए किया जा रहा है। पिछले छह दशकों के अनुभवों के मुताबिक ये निष्कर्ष साफ है कि जब तक इस कानून को खत्म नहीं किया जाता है तब तक अभिव्यक्ति की आजादी का कोई मतलब पूरा नहीं होता है।

याचिका में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 से 2019 के आंकड़े का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राजद्रोह के केस 160 फीसदी बढ़े हैं, लेकिन इनमें दोष साबित होने की दर काफी कम है, जो कि 2019 में 3.3 फीसदी है। याचिका में कहा गया है कि राजद्रोह का कानून संविधान की धारा 14, 19 और 21 का उल्लंघन है।

पिछली 15 जुलाई को राजद्रोह की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि कभी महात्मा गांधी, तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी।

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क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की ज़रूरत है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है, लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की ज़रूरत है।