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बारह महीनों के विशेष दान

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भारतवर्ष अध्यात्म एवं संस्कृति प्रधान देश है। यहाँ का धार्मिक जीवन व्रत, पर्व, उत्सव, दान, जप, तप, पूजन आदि सत्कर्मों एवं पुण्यार्जन के कार्यों से सदा से अनुस्यूत रहा है। परार्थ के लिये उत्सर्ग एवं त्याग यहाँ की सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। दाता के लिये विशेष कल्याणकारी तथा ग्रहीता के लिये परम उपयोगी होने से दान एक मुख्य कर्म है। यूं तो संवत्सरपर्यन्त प्रत्येक मास की प्रत्येक तिथि में कुछ-न-कुछ दान अपने सामर्थ्यानुसार देना ही चाहिये, तथापि चैत्र आदि विशेष-विशेष मासों में ऋतुचर्या और ऋतुपरिवर्तन की दृष्टि से उस मास की प्रकृति के अनुसार कुछ विशिष्ट वस्तुएं दान में दी जाती हैं, जैसे- ग्रीष्मऋतु में ताप के निवारण के लिये जलदान, प्रपादान, प्याऊ-स्थापनद्ध, छाता, पंखा आदि का दान, ऐसे ही शीत ऋतु में शीतबाधा के निवारण के लिये अग्निदान, वस्त्रदान, लवण, गुड़ आदि वस्तुओं का दान। मेष तथा मकर की संक्राति अर्थात् वैशाख तथा माघ के महीने में क्रमशः सत्तू तथा खिचड़ी का दान तो शास्त्रतः प्रचलित ही है और प्रायः लोगों की जानकारी में भी है, किंतु वर्ष के शेष दस महीनों में शास्त्रानुसार किस विशेष अन्न ,एवं विशेष पदार्थ का दान करना चाहिये, इसकी जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। तद्नुसार यहाँ पर चैत्र आदि मास के क्रम से प्रत्येक मास की अन्नादि देय वस्तुओं का यथासम्भव संक्षेप में दान विवरण दिया जा रहा है-

  1. चैत्रमास
    संवत्सर (वर्ष) का प्रारम्भ चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। इसी तिथि से पितामह ब्रह्माजी ने सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था। इसी तिथि को भगवान ने मत्स्यरूप में अवतार धारण किया था। इस दिन पंचांग श्रवण होता है। पंचांग श्रवण के अनन्तर पंचांग का दान करना चाहिये। इसी में नवरात्र-संबंधी पूजन तथा दान भी होता है। चैत्र मास में प्रायः गेहूँ की फसल एवं आम के फल तैयार रहते है, अतः विशेष रूप से प्रतिदिन संकल्पपूर्वक गेहूँ तथा आम्रफल का दान करना चाहिये। यदि सामर्थ्य रहे तो चैत्र मास में प्रतिदिन स्वर्ण आदि के साथ मिट्टी के जलपात्र या बर्तनों का दान करना चाहिये। इससे भगवान सूर्य तथ वरूण देवता प्रसन्न होते हैं और वर्ष भर आरोग्य प्रदान करते हैं। भविष्य पुराण में बताया गया है कि चैत्र मास में जल, अन्न, शैया, गेहूँ, अरहर, दही-भात, बेल फल और आम के फल का दान करना चाहिये। दान संग्रह में बताया गया है कि वस्त्र, शैया, जलपात्र और कमण्डलु का दान करना चाहिये तथा वायु ,एवं लिंगपुराण ने (बर्तन) दान की महिमा बतायी है।
  2. वैशाख मास
    स्कन्दपुराण ने बताया है कि वैशाख के समान कोई मास नही है, सतयुग के समान कोई युग नही है, वेद के समान कोई शास्त्र नही है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नही है। धर्म के साधनभूत मासों में वैशाख मास (माधवमास) सर्वश्रेष्ठ है। यह मास भगवान विष्णु को विशेष प्रिय है। वैशाख मास में जलदान करने की विशेष महिमा है। शास्त्र ने तो यहाँ तक परामर्श दिया है कि यदि स्वयं जलदान न कर सके तो दूसरों को इसका महत्व बताये तथा जलदान के लिये उन्हे प्रेरित करें। जो वैशाख मास में मार्ग में प्याऊ लगाता है वह देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यन्त प्रिय होता है, वैशाख मास में जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता, पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना चाहिये। इसी प्रकार जो पादुकादान तथा मार्ग में रूकने वालों के लिये विश्रामशाला बनाता है, वह अक्षय पुण्य प्राप्त करता है। मेष-संक्राति में धर्मघट का भी दान किया जाता है। वैशाख मास की अक्षय तृतीया को किया गया दान अक्षय हो जाता है। इसी तिथि से त्रेता का प्रारम्भ हुआ था। परशुरामजी का आविर्भाव इसी तिथि में हुआ था। मेष संक्राति या वैशाख मास में प्रतिदिन जौ के सत्तू तथा जल का दान करना चाहिये। यदि सत्तू का अभाव हो तो खड़े यव का भी दान किया जा सकता है। वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को अथवा वैशाख की पूर्णिमा को या सामर्थ्य होने पर पूरे वैशाख महीनें में प्रतिदिन पंखे का दान करना चाहिये। धूप से बचाने के लिये छत्र (छाते) का दान भी करना चाहि, तथा तक्र (मट्ठे) व आम्र के पन्ने ,एवं शर्बत का दान करना चाहिए।
  3. ज्येष्ठ मास
    ज्येष्ठ मास में ग्रीष्म से रक्षा करने वाले पदार्थों का दान करना चाहिये। वटसावित्री, गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी आदि इस मास के मुख्य पर्व है। अतः तद्व्रत सम्बन्धी दान तो आवश्यक ही है। विशेष रूप से ज्येष्ठ मास में दध्योदन (दही.भात) और सन्तान वृद्धि के लिये अश्वत्थ वृक्ष के (पीपल) निमित्त जलदान की महिमा है। दही और भात की पृथक-पृथक दान की भी परम्परा है। सामर्थ्य रहने पर ज्येष्ठ मास भर प्रत्येक दिन जूता का दान करना चाहि,। ऐसे ही ज्येष्ठ मास में गोदान, जलदान, अन्नदान, उदकुम्भदान, पंखादान, छत्रदान की विशेष महिमा है।
  4. आषाढ़ मास
    भगवान जगन्नाथजी की रथयात्रा तथा गुरूपूर्णिमा यह आषाढ़ के दो मुख्य पर्व है। आषाढ़ मास में आमलक (आमड़ा) के फल के दान का महात्म्य है। यदि शक्ति हो तो आषाढ़ मास भर अथवा पूर्णिता के दिन कपूर के सहित चन्दन तथा ग्रन्थ (पुस्तक) का दान करना चाहिये। वस्त्र, अन्न, जल तथा भगवान वामन की प्रसन्नता के लिये जूता, छाता, नमक और आमल का दान करना चाहिये। गुरू पूर्णिमा को अपने गुरू के निमित्त वस्त्र, अन्न, जल, फल एवं दक्षिणा सहित दान करना चाहिए। वेद, अठारह पुराणों, गीता, रामायण, महाभारत, स्मृतियों के ग्रन्थों का दान करना चाहिये।
  5. श्रावण मास
    श्रावण मास भगवान शंकर को अति प्रिय है अतः रूद्र संबंधी अभिषेकादि तथा श्रावण के सोमवार को व्रत रखने का विशेष महत्व है। इसी मास के मंगलवार को मंगलागौरी व्रत तथा व्रत सम्बन्धी दान-पूजन आदि होता है। ऐसे ही अशून्य शयन व्रत, तीज, श्रावणी-उपाकर्म इस मास के मुख्य पर्व है। यह मास पूजन, दान तथा स्वाध्याय का मास है। श्रावण मास में प्रतिदिन शाक-सब्जी का दान करना चाहिए। इसके साथ ही वस्त्र, घृत, दूध, रत्न, अन्न आदि द्रव्यों का दान करना चाहिए। श्रावण उपाकर्म (श्रावणी पूर्णिमा) को प्रतिष्ठित यज्ञोपवीत का दान करना चाहिए और ब्राह्मणों को पायस (खीर) से सन्तृप्त करना चाहिये।
  6. भाद्रपद मास
    भाद्रपद मास व्रत पर्वों का मास है। इसमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोवत्स द्वादशी, कुशोत्पाटिनी अमावस्या, हरितालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, राधाष्टमी, वामन द्वादशी तथा अनन्त चतुर्दशी आदि पर्व पड़ते हैं। इनमें व्रत के विधान के अनुसार विविध दानों का विधान है। सिंह की संक्रान्ति या भाद्रपद मास में प्रतिदिन खीर और शहद-दान की विधि है। पृथक-पृथक रूप से दूध, शर्करा, श्यामाक (साँवा), मधु आदि भी दान किया जाता है। पायस (खीर) का दान किया जाता है। सामर्थ्य होने पर भाद्रपद मास में प्रत्येक दिन छत्र (छाता) दान करना चाहिये। सुवर्ण छत्र की भी विशेष महिमा है।
  7. आश्विनमास
    कन्या के सूर्य या आश्विन (क्वारद्ध में प्रतिदिन तिल और घृत का दान करना चाहिये। इस मास में रोगों की भी अधीकता रहती है। अतरू आरोग्यता-सम्पादन के लिये विशेष रूप से औषधि का दान करना चाहिये। आश्विनमास में घृतदान करने से सुरूपता की प्राप्ति होती है। इसी मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावास्या तक पितरों का पर्व पितृपक्ष पड़ता है, उसमें पितरों के निमित्त पिण्डदान आदि श्राद्धकर्म का विधान है। पितृपक्ष में प्रतिदिन अथवा माता-पिता आदि पूर्वजों की तिथियों पर उनके निमित्त ब्राह्मणों को भोजन, अन्न, वस्त्र तथा दक्षिणा आदि का दान करना चाहिये। इससे पितरों की तृप्ति होती है तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा नवमीतक शारदीय नवरात्र महोत्सव होता है, जिसमें व्रत, पाठ, पूजन, हवन, दान आदि की विधि है। इस काल में कुमारी कन्याओं तथा सुवासिनी (सौभाग्यवती स्त्री) को भोजन-वस्त्र तथा दक्षिणा का दान करना चाहिए। आश्विन शुक्ल पूर्णिमा शरत्पूर्णिमा कहलाती है। यह महालक्ष्मी का पर्व है। इस दिन कोजागरव्रत होता है। इस दिन महानिशा में चन्द्र किरणों से अमृत की वर्षा होती है। अतः खीर से भरे पात्र को चाँदनी में रखा जाता है और उसका दान तथा भोग होता है। इस दिन कांस्यपात्र में घी भरकर सुवर्ण सहित उसका दान किया जाता है। भगवान ने इसी दिन महारासोत्सव की लीला की थी, अतः इसे रासोत्सव या कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं। इस रात्रि में खीर का प्रसाद बाँटने की परम्परा है।
  8. कार्तिकमास
    मासानां कार्तिकः श्रेष्ठःष् इस वचन से कार्तिक मास सभी मासों में श्रेष्ठ है। कार्तिक मास तो दान-पूजन का ही मास है। करवाचौथ, गोवत्स द्वादशी, धनतेरस, गोत्रिरात्र व्रत, नरक चतुर्दशी, हनुमान जयंती, दीपावली, अन्नकूट, गोवर्धनपूजन, यमद्वितीया, सूर्यषष्ठी, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, देवोत्थानी, एकादशी, तुलसी विवाह, वैकुण्ठ चतुर्दशी, कार्तिक पूर्णिमा आदि महोत्सवों का मास है कार्तिक। यह मास प्रकाश पर्व तथा दीपदान के लिये प्रसिद्ध है। इन पर्वों पर विशेष-विशेष वस्तुओं का दान होता है। तुला की संक्रान्ति अथवा कार्तिक मास में प्रतिदिन चने का दान तथा गोसेवा करनी चाहिये और नित्य गोपरिचर्या करके गोग्रास देना चाहिये। प्रत्येक दिन सायंकाल दीपदान करना चाहिए। साथ ही इस मास में धान्य, बीज, चाँदी, नमक आदि का दान करना चाहि, तथा सम्पूर्ण मास गायों की सेवा करनी चाहिये। गायों के चारे आदि का दान, गोशाला निर्माण आदि कार्य भी विशेष रूप से इस मास में करने चाहिये।
  9. मार्गशीर्ष (अगहन) मास
    वृश्चिक के सूर्य या अगहन महीने को भगवान् ने अपनी विभूति बताया है. मासानां मार्गशीर्षोऽहम्ष्। इस महीने भर गुड़ तथा नमक के दान की विशेष महिमा है। इसी महीने कपास या सूती वस्त्र का दान करना चाहिये। इस मास में काल भैरवाष्टमी तथा विवाह पंचमी ये दो मुख्य पर्व हैं। मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तावतार तिथि है तथा मार्गशीष शुक्ल एकादशी को गीताजयन्ती पड़ती है।
  10. पौषमास
    पौषमास में धनु की संक्रान्ति होती है तथा धनुर्माससम्बन्धी उत्सव होते हैं। पौष पूर्णिमा से माघ स्नान के नियम प्रारम्भ होते हैं। पौष मास में रविवार को व्रत करके भगवान सूर्य की आराधना होती है तथा सूर्य को अर्ध्यदान दिया जाता है। इस मास में नीवार धान्य (तिन्नीद्ध तथा गुड़ का दान दिया जाता है। पौष मास में शीतबाधा आदि के निवारण के लिये ऊनी वस्त्र तथा कम्बल आदि देने की विधि है। स्कन्दपुराण ने बताया है कि पौष मास में गो, वस्त्र, धान्य, लवण, गुड़, चाँदी, घृत आदि का दान करना चाहिये। कम्बल तथा ऊनी वस्त्र के दान करना चाहिए।
  11. माघ मास
    माघमास स्नान, दान, पूजन तथा नामजप ,एवं सत्संगपूर्वक रात्रि जागरण का मास है। सभी दानों के लिये माघ माघमास अत्यन्त प्रशस्त है। गंगादि पुण्यतोया नदियों के तट पर कुंभ आदि पर्व इसी मास में पड़ते है। अतः कल्पभर (मासभर) दान-ही होता है। मकरसंक्रान्ति, षट्शिला एकादशी, मौनी अमावस्या, वसन्तपंचमी, अचलासप्तमी, माघीपूर्णिमा इस मास के मुख्य पर्व हैं, कल्पभर के स्नान के बाद विशेष दान-पुण्य की परम्परा है। माघमास में प्रतिदिन घृत, नमक, हल्दीसहित और तिल-गुड़ से बने लड्डू के साथ खिचड़ी तथा पात्र (बर्तन) देने का विधान है। विशेष करके माघ की अमावास्या या पूर्णिमा अथवा सामर्थ्य होने पर पूरे मास भर प्रतिदिन अग्नि और ईंधन (लकड़ी) के दान से महाफल होता साथ ही इसमें गुड़ तिल, तिलधुनु, कृशरान्न (खिचड़ीद्ध, पान, गुड़, ईंधन, अग्नि, ऊन वस्त्र आदि का दान होता है।
  12. फाल्गुन मास
    कुंभ के सूर्य या फाल्गुनमास में प्रतिदिन धान और गौ के लिये जल तथा तृण (घास-चाराद्ध आदि का दान करना चाहिये। विशेष रूप से फाल्गुन भर आसन और बिछाने के लिये वस्त्र का दान करना चाहिये। वायुपुराण मे बताया गया है कि फाल्गुन में विष्णु की प्रसन्नता के लिये धान, गाय तथा वस्त्र का दान करना चाहिये। इस मास की कृष्ण चतुर्दशी महाशिवरात्रि कहलाती है, जिसमें भगवान शंकर की पूजा तथा उनके निमित्त दान की परम्परा है। रंगो का त्यौहार होली भी फाल्गुन का ही पर्व है। इसमें सौजन्य, सौहार्द ,एवं मैत्रीकरण के लिये परस्पर अभिवादन तथा आलिंगन दान की परम्परा है। पुरूषोत्तममास या अधिकमास (मलमास) पुरूषोत्तम मास के अधिष्ठाता स्वयं भगवान मधुसूदन विष्णु हैं। इस मास में प्रत्येक दिन अपूप (पुआ) दान की विधि है। पुराणों में बताया गया है कि मलमास प्राप्त होने पर गुड़, घृत मिले चावल आदि के आटे से पुए बनाकर ब्राह्मणों को देना चाहिये। इस मास में द्वादशी तिथि को अन्नदान की विशेष महिमा है। इस मास में थोड़े से भी दान का महान फल है।

लोकेंद्र चतुर्वेदी ज्योतिर्विद