Sunday, February 9, 2025
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Indian Economy के लिए ‘ट्रंप’ कार्ड

महंगाई और रोजगार कितना बड़ा मुद्दा है, यह अमेरिकी चुनाव के परिणाम से भी स्पष्ट हो गया है। बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था का निष्पादन अच्छा रहा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था इस समय पिछले कुछ वर्षों की अपेक्षा काफी बेहतर स्थिति में है। उसके वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक वृद्धि दर 3.5 प्रतिशत है, बेरोजगारी अपने निम्नतम स्तर पर है और महंगाई भी 09 प्रतिशत से घटकर दो वर्षों में 03 प्रतिशत पर आ गई फिर भी डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस को हार का सामना करना पड़ा।

इस हार का एक बड़ा कारण आम जनता को आवश्यक वस्तुओं के लिए, विशेष रूप से पेट्रोल और किराने के सामान और आवास के लिए अधिक व्यय करना पड़ रहा था। खुदरा महंगाई और रोजगार दर में धीमी वृद्धि ने आम अमेरिकी जनता को ट्रंप के पक्ष में कर दिया। ट्रंप की प्रस्तावित नीतियां अमेरिका के एक बड़े तबके को पसंद आई क्योंकि ट्रम्प ने स्पष्ट रूप से ‘पहले अमेरिका’ की नीती पर चलने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जताई है और यह प्रवृति आज पूरे विश्व में दिखाई दे रही है।

इस समय विश्व के सभी देशों में लोक-लुभावन वादा करने वाले, स्वदेशी का नारा देने वाले, घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का तर्क देकर संरक्षण को बढ़ावा देने वाले तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। उसी कड़ी में डोनाल्ड ट्रंप एक महत्वपूर्ण नाम है। जिस अमेरिका ने वैश्वीकरण और उदार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक विदेश और व्यापार नीति अपनाई, हर तरह के जतन किए, वहीं ट्रंप के शासनकाल में संरक्षण का राग अलापने की बात हो रही है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रचार के दौरान 3डी नीति अपनाने की बात कही, डीसरप्ट यानी तोड़ो, डीसइंगेज यानी फोड़ो और डीग्लोबलाइजेशन यानी वैश्वीकरण से हटो, जो कि अमेरिका की पिछली नीतियों के एकदम उलट रास्ता है।

Indian Economy : भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती भागीदारी

भारत और अमेरिका के बीच की रणनीतिक साझेदारी हाल के वर्षों में लगातार बढ़ी है। अमेरिका कई दशकों से भारत का एक प्रमुख व्यापार भागीदार रहा है, परंतु पिछले एक दशक में रक्षा क्षेत्र के व्यापार और तकनीक के नए समझौतों में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। भारतीयों का अमेरिका में प्रवासन भी इन दोनों देशों के संबंधों का एक प्रमुख आधार रहा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और भारत का अमेरिका के साथ 35.3 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष है। अमेरिका को भारत ने वित्त वर्ष 2024 में 77.5 अरब डॉलर का निर्यात किया जबकि 42.2 अरब डॉलर का आयात किया।

2024 में भारत ने अमेरिका को 11 अरब डॉलर का इलेक्ट्रिक मशीनरी और उपकरण, 9.9 अरब डॉलर का कीमती रत्न और ज्वैलरी, 08 अरब डॉलर का फार्मास्यूटिकल उत्पाद, 6.2 अरब डॉलर का एटमी रिएक्टर और बॉयलर तथा 5.8 अरब डॉलर का खनिज ईंधन व तेल इत्यादि का निर्यात किया। इससे उलट अमेरिका से भारत ने 13 अरब डॉलर का खनिज ईंधन और तेल, 5.2 अरब डॉलर का कीमती रत्न और ज्वैलरी, 3.8 अरब डॉलर का एटमी रिएक्टर और बॉयलर, 2.4 अरब का इलेक्ट्रिक मशीनरी और उपकरण तथा 2.3 अरब डॉलर का एयरक्राफ्ट, स्पेसक्राफ्ट और पार्ट्स का आयात किया।

भारत का अमेरिका से रक्षा व्यापार, जो कि 2008 में एक अरब डॉलर था, 2023 में बढ़कर 20 अरब डाॅलर हो गया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ट्रंप के पहले कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप से ट्यूनिंग बहुत ही अच्छी थी। ट्रंप ने रक्षा प्रौद्योगिकी और सैन्य उपकरण के बेहद महत्वपूर्ण समझौते, जो कि अमेरिका अपने बेहद निकट के मित्रों के साथ करता रहा है, भारत के साथ किए थे। दोनों देशों के बीच व्यापक वैश्विक सामरिक साझेदारी हुई थी और अमेरिका ने चीन के साथ विवाद के दौरान भी भारत का समर्थन किया था। भारत और अमेरिका के संबंध बाइडेन के समय भी काफी अच्छी रहे हैं और उच्च प्रौद्योगिकी पर सहयोग बढ़ा। बाइडेन प्रशासन ने अत्याधुनिक ड्रोन बिक्री के सौदों को मंजूरी दी थी और पहली बार जेट इंजन उत्पादन की अनुमति भारत को दी। इसके अतिरिक्त सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग और वायरलेस टेलीकम्युनिकेशन सहित कई महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों परसहयोग को बढ़ाने के लिए भी समझौता दोनों देशों के बीच हुआ।

महत्वपूर्ण यह है कि इस प्रकार की साझेदारी सरकारों के साथ साथ उद्यमियों और तकनीक समूहों के बीच भी बनी। अपने प्रचार के दौरान ट्रंप मोदी को अपना ‘सच्चा दोस्त’ कहते रहे हैं, परंतु दूसरी तरफ भारत को ‘टैरिफ किंग’ भी कहते हैं। 2019 में अमेरिका की सामान्य कृत वरीयता प्रणाली, जीपीएस के तहत प्रशुल्क पर भारत को मिलने वाली प्राथमिकता का दर्जा ट्रंप सरकार ने वापस ले लिया था, जिसके तहत भारत को अमेरिकी बाजार में शुल्क मुक्त निर्यात की अनुमति थी, यह भारत द्वारा उसके कुल निर्यात का 12 प्रतिशत था। भारत से आयातों पर अमेरिका ने अनेक वस्तुओं पर प्रशुल्क में वृद्धि की जैसे स्टील पर 25 प्रतिशत, एल्युमिनियम पर 10 प्रतिशत की वृद्धि। प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने 29 अमेरिकी सामानों पर जैसे- बादाम, अखरोट, सेव इत्यादि पर प्रशुल्क में वृद्धि कर दी।

ट्रम्प का संरक्षणवाद को बढ़ावा

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डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि सबसे पहले उनके लिए अमेरिका का हित है। अब तक अमेरिका दीर्घकालीन रणनीति के तहत पूरे वैश्विक राजनीति और आर्थिक तंत्र को प्रभावित करने की हैसियत से कार्य करता रहा है, परंतु ट्रंप ने तात्कालिक हितों को अत्यधिक महत्व देने की अपनी नीति को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है। ट्रंप का मानना है कि अमेरिका की उदारता का लाभ दूसरे देश उठाते रहे हैं इसलिए अब अमेरिकी आर्थिक हितों को सुरक्षित करने का समय आ गया है, तभी अमेरिका को और अधिक सशक्त बनाया जा सकता है, इसके लिए प्रशुल्क में भारी वृद्धि की आवश्यकता है। निश्चित ही ट्रंप प्रशासन वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद की जो दीवार खड़ी करेगा।

वह वैश्वीकरण के खात्मे की शुरुआत हो सकती है और इससे वैश्विक व्यापार प्रणाली और विश्व व्यापार संगठन के लिए संकट पैदा हो सकता है। आशा है कि ट्रंप रूस और यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध समाप्त करवाने और साथ ही इजरायल और फिलिस्तीन, ईरान, मध्य एशिया के युद्ध को रोकने में सफल होते हैं तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा होगा परन्तु ट्रम्प की ‘अमेरिका प्रथम’ की नीति के कारण निश्चित ही विश्व व्यापार प्रभावित होगा।

विश्व व्यापार संगठन और नाटो जैसे संगठनों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। चीन के साथ अमेरिका का व्यापार शुल्क युद्ध वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। अपने चुनाव अभियान में ट्रंप भारतीय सामान पर 10 प्रतिशत प्रशुल्क और चीन के सामान पर 60 प्रतिशत तक प्रशुल्क लगाने की बात कह रहे थे। यह भारत और चीन जैसे देशों के साथ ट्रम्प की सौदेबाजी करने का एक तरीका भी हो सकता है। सभी आयातों पर ट्रम्प द्वारा 10 से 20 प्रतिशत शुल्क लगाने और अप्रवासियों के एचवन वीजा की सख्ती से निश्चित ही भारत पर प्रभाव पड़ेगा।

अप्रवासन का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा है। चुनाव में ट्रंप ने बार बार यह कहा कि बाहर के लोग हमारी नौकरियां छीन रहे हैं। अमेरिका में अवैध अप्रवासियों की संख्या 01 करोड़ से ऊपर है। भारत के लगभग 7,25,000 लोग अवैध रूप से रह रहे हैं। इसमें से अधिकांश पंजाब और गुजरात के हैं, परन्तु असली चिंता उन लोगों को भी लेकर है, जो 10 लाख भारतीय ग्रीन कार्ड के इंतजार में हैं। लगभग 51 लाख भारतीय अमेरिकी नागरिक अमेरिका की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

वहां रह रहे इन भारतीयों की औसत आय $1,36,000 है, जो अमेरिकी औसत से दोगुना है। 10 में से एक डॉक्टर वहां भारतीय मूल का है। वहां के डॉक्टर लगभग 40 प्रतिशत दवाएं भारतीय कंपनियों के लिखते हैं, जो कि अपेक्षाकृत काफी सस्ते में मिल जाती हैं। भारत अमेरिका को सस्ती दवाई निर्यात करता है, 2022 में 219 अरब डॉलर की बचत अमेरिकियों ने दवाओं पर की। यदि अमेरिकी एचवन वर्क वीजा में कमी आती है, तो इससे वहां जाने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा परन्तु यदि वीजा जारी करने के नियमों में ट्रंप प्रशासन अधिक सख्ती बरतेगा तो इससे वहां महंगाई और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, क्योंकि उत्पादन महंगा होगा।

उभरती हुई Indian Economy की बढ़ती ताकत

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हाल के वर्षों में, एक दशक में, भारत ने भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचे को काफी मजबूत किया है, निवेश और व्यावसायिक हितों को प्राथमिकता देने वाली नीतियां बनाई है, उद्यमिता के लिए एक मजबूत इकोसिस्टम तैयार हुआ है, इक्विटी की ओर घरेलू निवेशकों के प्रवाह में निरंतर वृद्धि हुई है, अनुकूल माहौल मिलने और व्यापार बढ़ने से छोटी कंपनियों के लाभ में बढ़ोत्तरी हुई है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न आर्थिक संकेतक सामान्यतः काफी स्थिर है। अभी हाल ही में वित्तीय कंपनी मोतीलाल ओसवाल इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी के दो कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) की नींव काफी मजबूत हुई है और आगे भी अर्थव्यवस्था के और मजबूत होने की पूरी संभावना है। भारत की आर्थिक समृद्धि वैश्विक पूंजी में संरचनात्मक बदलावों की संभावना को दर्शाती है इसलिए आज वैश्विक पटल पर भारत चीन के मुकाबले एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में उभरा है।

भारत का कारोबार अनुकूल माहौल निवेशकों को आकर्षित करता है। हालांकि, इसमें अभी और सुधार की काफी गुंजाइश है लेकिन भारत के बाजार पूंजीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है। इस समय देश में 11 मेगा कंपनियां हैं, जिनका बाजार पूंजीकरण पांच ट्रिलियन रुपए से अधिक है जबकि 2014 में ऐसी कोई कंपनी नहीं थी। ई-कॉमर्स आधारित सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या जहां 2014 में सिर्फ पांच थी, 2024 में बढ़कर 29 हो गई है, जो इस बात का संकेत है कि स्टार्टअप के लिए देश में एक स्वस्थ व्यावसायिक माहौल बना है। इन कंपनियों का बाजार पंजीकरण इस दौरान 178 बिलियन रुपए से बढ़कर 4.5 ट्रिलियन रुपए हो गया है।

भारत की उपेक्षा आसान नहीं

ट्रंप प्रशासन भारत की बढ़ती ताकत और महत्व की उपेक्षा नहीं कर सकता। सामरिक रूप से भविष्य में भारत अमेरिका का अच्छा भागीदार हो सकता है, जिसका लाभ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी मिलेगा। नोमुरा रेटिंग एजेंसी के अनुसार ट्रंप की नीति से जिन देशों को सबसे अधिक लाभ होगा, उनमें टॉप तीन देशों में भारत भी है। यदि ट्रंप चीन के विरुद्ध व्यापार प्रतिबंधों की शुरुआत करते हैं तो इसका लाभ भारत को मिलेगा, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक जैसे क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला के बदलाव से भारत लाभान्वित होगा। एसबीआई की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीतियों से भारत भी प्रभावित होगा लेकिन लंबी अवधि में इन नीतियों का भारत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार भारत को विनिर्माण क्षेत्र का विस्तार करना होगा और नया निर्यात बाजार खोजना होगा, जिससे कि यदि अमेरिका निर्यातों पर प्रतिबंध लगाता है तो इसकी क्षतिपूर्ति भारत कर सके।

Indian Economy को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी मजबूती से आगे बढ़ना होगा। अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने भारत के खिलाफ जो आर्थिक कदम उठाए थे, उसका भारत पर कोई अधिक विपरीत असर नहीं पड़ा। जिन भारतीय उत्पादों पर अमेरिका ने ज्यादा कर लगाया था, उसका निर्यात उसके बाद लगातार बढ़ा है। 2018 में अमेरिका ने स्टील पर 25 प्रतिशत, एल्युमिनियम पर 10 प्रतिशत, वाशिंग मशीन पर 35 प्रतिशत का शुल्क लगाया था, लेकिन 2019 से 2021 के मध्य भारत के स्टील की निर्यात में 44 प्रतिशत वृद्धि हुई।

फुटवियर, खनिज, रसायन, इलेक्ट्रिकल और मशीनरी निर्यात भी बढ़ा है। इससे यह प्रदर्शित होता है कि भारत कई उत्पादों के संदर्भ में चीन के मुकाबले वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में होने वाले परिवर्तनों का ज्यादा लाभ उठा सकने की स्थिति में है। इस रिपोर्ट के अनुसार ट्रंप के आने से रुपए के मूल्य में डॉलर के मुकाबले बहुत अधिक गिरावट भी नहीं होगी, क्योंकि ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारतीय रुपया में सिर्फ 11 प्रतिशत की गिरावट आई थी, इससे अधिक गिरावट तो बाइडेन के काल में हुई।

एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, विदेशी निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि ट्रंप मेक इन अमेरिका के तहत अमेरिका में निवेश बढ़ाने और उत्पादन करने पर लगातार जोर दे रहे हैं। इससे भारत में आने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है। हालांकि, भारत अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए सिर्फ अमेरिकी निवेश पर निर्भर नहीं है। दूसरा नकारात्मक प्रभाव भारत की आईटी कंपनियों पर पड़ सकता है क्योंकि एचवन वीजा की प्रक्रिया कठोर करने से कंपनियों को स्थानीय लोगों को नौकरी देनी पड़ सकती है, जिससे उनके लागत में वृद्धि होगी और वित्तीय सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, इसका एक सकारात्मक प्रभाव यह होगा कि भारत में विनिर्माण पर जोर बढ़ेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगी। चीन और अमेरिका का व्यापार चीन के पक्ष में है, चीन का अमेरिका से व्यापार में लगभग 280 अरब डॉलर का अतिरेक है इसीलिए चीनी आयात पर ट्रंप 60 प्रतिशत तक प्रशुल्क में वृद्धि की बात करते हैं।

यदि इन दो बड़ी आर्थिक महाशक्तियों में व्यापार युद्ध बढ़ता है तो उससे वैश्विक अर्थव्यवस्था अछूती नहीं रहेगी परंतु भारत पर भी असर होगा और निर्यात प्रभावित होगा। चीन के प्रति ट्रंप का आक्रामक रुख भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। यदि अमेरिका और चीन में व्यापार की प्रतिस्पर्धा बढ़ती है तो इस अवसर का लाभ भारत उठा सकता है। चीन के सामान महंगे होने से वैश्विक बाजार में भारतीय सामान अधिक प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में लेकिन इसके लिए भारत को उचित वातावरण तैयार करना होगा। भारत को अपने नीतियों में पारदर्शित लानी होगी, कंपनियों को बेहतर अवसर और सुविधाएं प्रदान करनी होगी, जिससे भारत में निवेश करने और कार्य करने का उचित माहौल बन सके।

भारत के अनुकूल ट्रम्प प्रशासन

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ट्रम्प ने प्रमुख उद्योगपति एलन मस्क और भारतवंशी उद्योगपति परंपरावादी और शाकाहारी हिंदू विवेक रामास्वामी को डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी जैसे नए विभाग का गठन कर उसका नेतृत्व सौंपा है। यह विभाग सरकारी खर्चों में कटौती करने और नौकरशाही के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एलन मस्क के कारण ट्रम्प के जलवायु परिवर्तन के विरोधी रुख को संतुलित करने में मदद मिलेगी। विवेक रामास्वामी भारत से अमेरिका के संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

विदेश मंत्रालय अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय होता है और भारत समर्थक सीनेटर मार्को रुबियो को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो कि चीन और पाकिस्तान के विरोधी हैं। वे चीन के सामानों पर कर बढ़ाए जाने के समर्थक रहे हैं और आतंकवाद के प्रसार के कारण पाकिस्तान को सुरक्षा मदद रोकने के भी ये समर्थक रहे हैं। रूबीरो का विदेश मंत्री बनना भारत के लिए बहुत ही सकारात्मक है।

फ्लोरिडा के सांसद माइकल वाल्ट्ज को ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया है, जो कि इंडिया कॉक्स समूह, जो कि भारत के पक्ष में आवाज बुलंद करने वाला एक प्रमुख मंच है, से जुड़े हैं और मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों के प्रबल हिमायती हैं। खुफिया विभाग की निदेशक के रूप में हिंदू, अमेरिकी तुलसी गबार्ड का चयन भी भारतीय हितों के अनुकूल सिद्ध हो सकता है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति चुने गए जेडी वैंस की पत्नी ऊषा बैंस भारतीय मूल की हिंदू है। ट्रंप प्रशासन में भारतीय मूल और भारत समर्थक लोगों के शामिल होने से इस बात की पूरी संभावना है कि दोनों देशों के बीच रणनीति साझेदारी और मजबूत होगी।

ट्रंप का आना भारत के लिए बेहतर स्थिति हो सकती है, परंतु इसके लिए भारत को अमेरिका से बेहतर तालमेल की आवश्यकता होगी। इसके लिए भारत को अमेरिका से लगातार उच्चस्तरीय वार्ता के जरिए आपसी समझ को बढ़ाना होगा और एक-दूसरे के आर्थिक हितों को भी समझ कर आगे बढ़ना होगा। भारत ने ट्रंप के पहले के शासनकाल में अमेरिका के कदमों पर जिस प्रकार से त्वरित जवाबी व्यापारिक कार्यवाही की थी, उस प्रकार के कदमों से बचने की आवश्यकता होगी। बेहतर तालमेल और आपसी हित देखकर दोनों देशों को समझदारी से कार्य करना होगा। भारत को अमेरिका को कुछ प्रशुल्क संबंधी छूट देनी होगी, जिससे कि दोनों देशों को फायदा हो।

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दीर्घ अवधि के लिए देखा जाए तो दोनों देशों के उद्यमियों, निवेशकों और व्यापारियों के लिए बेहतर संभावनाओं और अवसरों के लिए आपस में साझेदारी करनी होगी। भारत और अमेरिका दोनों देशों के मध्य सामरिक और आर्थिक रिश्ते आने वाले वर्षों में बेहद महत्वपूर्ण होंगे। सामरिक दृष्टि से भारत वैश्विक पटेल पर उभरती हुई शक्ति है। भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत लगातार बढ़ रही है। अमेरिका के लिए भारत एक बहुत बड़ा मध्यवर्गीय बाजार है, इसके साथ ही अमेरिका में भारतीय प्रतिभाओं की बहुत इज्जत और मांग है। अमेरिका में रोजगार सृजन और आर्थिक विकास के लिहाज से भारत बेहद महत्वपूर्ण है, वहीं 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य अमेरिका के सहयोग के बिना भारत नहीं प्राप्त कर सकता है।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह
प्रोफेसर, अर्थशास्त्र
ईसीसी इलाहाबाद विवि

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