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तंबाकू सेवन से 2030 तक जा सकती है एक करोड़ लोगों की जान

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नई दिल्लीः विश्व तंबाकू दिवस पर आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च एनआईसीपीआर की निदेशक डॉ. शालिनी सिंह के अनुसार तंबाकू न केवल हमारी जेब में छेद कर रहा है, बल्कि यह हमारी जान भी ले रहा है। तंबाकू की खपत की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है सिर्फ तंबाकू के एकमात्र उपयोग से 2030 तक सालाना लगभग 10 मिलियन लोगों की जान चली जाएगी। डॉ. सिंह ने कहा कि अनुमान है कि 2030 तक अकेले तंबाकू के कारण सालाना लगभग 10 मिलियन लोगों की जान चली जाएगी। इसलिए हम सभी के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि हम तंबाकू की खपत को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ी को इसकी लत से कैसे बचा सकते हैं।

इस वर्ष के विश्व तंबाकू निषेध दिवस के उद्देश्य को बताते हुए डॉ. सिंह ने कहा इस वर्ष का लक्ष्य हानिकारक उत्पाद का उपयोग छोड़ने में तंबाकू उपयोगकर्ताओं को हर संभव सहायता प्रदान करना है। सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियमए 2003 सीओटीपीए में प्रस्तावित संशोधनों से तंबाकू नियंत्रण तंत्र को मजबूती मिलने पर जोर देते हुए डॉ. सिंह ने देश में तंबाकू की खपत को कम करने के लिए तंबाकू उत्पादों पर कर बढ़ाने का सुझाव दिया।

डॉ. सिंह ने कहा कि धूम्रपान रहित तंबाकू की खपत को कम करने के लिए भारत को आगे आना होगा, क्योंकि यह ज्यादातर दक्षिण पूर्व एशिया में खपत होता है। रेलवे स्टेशनों या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान के लिए कोई समर्पित स्थान नहीं है, जबकि हवाई अड्डों पर धूम्रपान क्षेत्र है। इस प्रथा को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। तंबाकू के अवैध व्यापार पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनोरंजन उद्योग को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है क्योंकि मशहूर हस्तियों की ओर से तंबाकू उत्पादों का समर्थन समाज में इसकी स्वीकार्यता को प्रोत्साहित करता है।

डॉ. सिंह ने आगे कहा कहा हमारे जागरूकता कार्यक्रम में बहुत कमियां हैं। एएनएमए आशा दीदी जैसे फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को प्रमुख भूमिका निभाने की जरूरत है। उन्हें गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को तंबाकू के सेवन से यह कहकर हतोत्साहित करना चाहिए कि इससे उनके नवजात शिशुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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अध्ययनों के अनुसार इसने दुनिया में अकेले स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक बोझ डाला है, जबकि 2017.18 के आंकड़ों के अनुसार भारत को प्रति वर्ष 27.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है। उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वास्थ्य देखभाल लागत के एक बड़े नुकसान का बचाव यह कहकर नहीं किया जा सकता है कि तंबाकू की खपत करों के माध्यम से राजस्व लाती है।