नई दिल्लीः होली के पर्व में अब चंद दिन शेष हैं। होली से आठ दिन पूर्व लगने वाले होलाष्टक आरम्भ हो चुके हैं। लोग भी होली पर्व की तैयारियों में जुट गए हैं। सनातन धर्म में यूं तो प्रतिदिन कोई न कोई पर्व और त्योहार होते हैं। दिवाली के बाद होली का पर्व बड़ा पर्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है। इस साल होलिका दहन की तिथि पर सुबह में भद्रा रहेगी। होलिका दहन के समय अग्नि में कुछ चीजों को अर्पित करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। इससे जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। लेकिन होलिका दहन के समय कुछ लोगों को अग्नि देखना वर्जित माना गया है। कहा जाता है कि इसके अशुभ परिणाम सामने आते हैं। आइए जानते हैं होलिका दहन के शुभ मुहूर्त और कथा के साथ ही किन लोगों को अग्नि नहीं देखनी चाहिए।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च (मंगलवार) को शाम 04.17 बजे से प्रारंभ होगी। पूर्णिमा तिथि का समापन 07 मार्च (बुधवार) को शाम 06.09 बजे पर होगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में होलिका दहन होता है। ऐसे में इस साल होलिका दहन 07 मार्च (मंगलवार) को होगा। 07 मार्च को होलिका दहन का मुहूर्त शाम 06.24 बजे से रात 08.51 बजे तक है। इस दिन होलिका दहन का कुल समय 02 घंटे 27 मिनट तक है। होलिका दहन के दिन 07 मार्च को भद्रा सुबह 05.15 बजे तक रहेगी। ऐसे में प्रदोष काल में होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। होलिका दहन के अगले दिन होली का त्योहार मनाया जाएगा। ऐसे में इस साल होली का त्योहार 08 मार्च को मनाया जाएगा। 08 मार्च को चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि शाम 07 बजकर 42 मिनट तक है।
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इन लोगों को नहीं देखना चाहिए होलिका दहन
नवविवाहिता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलिका दहन की अग्नि को जलते शरीर का प्रतीक माना जाता है। यह कहा जाता है कि होलिका दहन के साथ ही आप अपने पुराने साल के शरीर को जला रहे हैं। इसलिए होलिका दहन के समय की अग्नि को नवविवाहित महिलाओं को नहीं देखना चाहिए। नवविवाहित महिला का होलिका दहन देखना अशुभ होता है। इससे उनके वैवाहिक जीवन में उलझन और समस्याएं बढ़ सकती हैं।
गर्भवती महिला
होलिका दहन के समय कभी भी गर्भवती महिला को अग्नि की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से गर्भ में पल रह शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही यह अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी हितकारी नहीं होता है।
होलिका दहन का कथा
शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने के लिए उसके पिता हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को तैयार किया। होलिका के पास एक चादर थी, जिसको ओढ़ लेने से उस पर आग का प्रभाव नहीं होता था। इस वजह से वह फाल्गुन पूर्णिमा को प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई। भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई। इस वजह से हर साल होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। होली बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनायी जाती है।
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