नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को लचित दिवस पर लचित बोरफूकन को श्रद्धांजलि अर्पित की। मंगलवार को प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर कहा कि लचित दिवस के विशिष्ट अवसर पर हम लचित बोरफूकन के साहस के समक्ष नतमस्तक हैं। वह एक अदभुत नेता और रणनीतिकार थे, जिन्होंने असम की अनूठी संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने गरीबों और पिछड़े लोगों को सशक्त बनाने की दिशा में भी अमिट योगदान दिया।
कौन थे लचित बोरफूकन:
असम के इतिहास और लोकगीतों में लचित बोरफूकन का चरित्र मराठा वीर शिवाजी की तरह अमर है। 17वीं सदी में आहोम साम्राज्य के कमांडर लचित ने ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर मुगलों की शक्तिशाली सेना को धूल चटा दी थी। सराईघाट की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध इस युद्ध में लचित के शौर्य पर नेशनल डिफेंस अकैडमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को उनके नाम पर पड़े लचित मैडल से सम्मानित किया जाता है।
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सन् 1671 में सराईघाट की निर्णायक जंग लड़ी गई। उस वक्त मुगल शासक औरंगजेब पूरे भारत पर साम्राज्य स्थापित करना चाहता था। रामसिंह प्रथम के नेतृत्व में उसने विशाल मुगल सेना को कामरूप पर अधिकार करने के लिए भेजा। आहोम साम्राज्य के सेनापति लचित ने बेहद कम सैनिकों और संसाधन के साथ युद्ध कौशल का ऐसा प्रदर्शन किया कि मुगल सेना को मुंह की खानी पड़ी।