शिक्षक से राजनेता बने इन दिग्गजों ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को दी नई दिशा

लखनऊः आज शिक्षक दिवस है, जानिए उन राजनेताओं के बारे में जिन्होंने अपनी शुरुआत बतौर शिक्षक की थी। शिक्षक से नेता बने इन शिक्षकों ने काफी समय पहले अपनी शैक्षणिक गतिविधियों और रुचियों को छोड़ दिया। कई नई पीढ़ियों को नहीं पता है कि उन्होंने शिक्षक के रूप में अपनी शुरूआत की थी। शिक्षकों से राजनेता बने इन लोगों ने अपने तरीके से पिछले तीन दशकों में उत्तर प्रदेश की राजनीति को आकार दिया। कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को भी राज्य के राजनीतिक केंद्र मंच से बाहर कर दिया।

सबसे प्रसिद्ध शिक्षक से राजनेता बने समाजवादी पार्टी के पूर्व संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हैं। समाजवादी आंदोलन और फिर राजनीति के भंवर में फंसने से पहले मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी के करहल के एक कॉलेज में लेक्चरर के रूप में काम किया है। मुलायम ने अपने पूर्व छात्रों के साथ संपर्क बनाए रखा है, जिनमें से कुछ अभी भी कभी-कभार उनसे मिलने आते हैं। दिलचस्प बात यह है कि मुलायम हमेशा से ही छात्रों के बीच राजनीति को बढ़ावा देने के हिमायती रहे हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को राजनेताओं के लिए नर्सरी होना चाहिए और हमें छात्रों को राजनीति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

बसपा अध्यक्ष मायावती भी राजनीति में आने से पहले एक षिक्षक थीं। चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने इंद्रपुरी जे.जे.दिल्ली में शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरूआत की थी। वह सिविल सेवा परीक्षा के लिए पढ़ रही थी जब वह कांशीराम से मिलीं और बाद में कांषीराम ने उन्हें राजनीति में शामिल होने के लिए राजी किया। 2014 के लोकसभा और हाल के 2017 के विधानसभा चुनावों में लगातार दो हार के बाद मायावती और उनकी पार्टी राज्य की राजनीति में एक गैर-खिलाड़ी के रूप में सिमट गई है।

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एक और शिक्षक जो अब एक बड़े राजनेता के रुप में जानें जाते हैं। वह हैं केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह। हो सकता है कि उन्होंने जानबूझकर राज्य की राजनीति से खुद को अलग कर लिया हो, लेकिन वे अपने पूर्व शिक्षक सहयोगियों और छात्रों का खुले दिल से स्वागत करते हैं। राजनाथ सिंह ने राजनीति में आने से पहले मिजार्पुर में भौतिकी के व्याख्याता के रूप में काम किया था। उन्होंने 1991 में उत्तर प्रदेश में शिक्षा मंत्री के रूप में अपने पहले निर्णय के साथ हंगामा खड़ा कर दिया था, जब उन्होंने 1992 में नकल विरोधी अधिनियम लाया, जिससे नकल को गैर-जमानती अपराध बना दिया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी शिक्षक से नेता बने थे, जिन्होंने राजनीति में आने से पहले अलीगढ़ में एक स्कूल शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया था।

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