Syria Civil War Crisis: सीरिया में विद्रोहियों के कब्जे के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़कर रूस की सरण में पहुंच गए है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने असद और उनके परिवार को राजनीतिक पनाह दी है। दरअसल रूस ने सीरियाई गृहयुद्ध में असद का साथ दिया था। रूस की सरकारी समाचार एजेंसी TASS ने क्रेमलिन के एक सूत्र के हवाले से बताया कि असद और उनका परिवार मॉस्को पहुंच गया है और रूस ने मानवीय कारणों से उन्हें शरण दी है।
Syria Civil War Crisis: रूस ने असद को क्यों दी पनाह ?
सूत्र ने कहा, “रूस ने हमेशा सीरियाई संकट के राजनीतिक समाधान के पक्ष में बात की है। हम जोर देते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता वाली वार्ता फिर से शुरू की जाए।” बताया गया कि “रूसी अधिकारी सशस्त्र सीरियाई विपक्ष के प्रतिनिधियों के संपर्क में हैं, जिनके नेताओं ने सीरियाई क्षेत्र में रूसी सैन्य ठिकानों और राजनयिक मिशनों की सुरक्षा की गारंटी दी है।”
Syria Civil War Crisis: विद्रोही गुटों ने सीरिया पर किया कब्जा
बता दें कि विद्रोही गुटों ने रविवार को सीरिया की राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद राष्ट्रपति असद देश छोड़कर भाग गए थे। 59 वर्षीय बशर अल-असद ने अपने पिता हाफिज अल-असद की मृत्यु के बाद 2000 में सत्ता संभाली थी। उनके पिता 1971 से देश पर शासन कर रहे थे।
2011 उनके शासन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष था जब हजारों सीरियाई नागरिक लोकतंत्र की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे, लेकिन उन्हें भारी सरकारी दमन का सामना करना पड़ा। हालांकि, सरकार के विरोध में विभिन्न सशस्त्र विद्रोही समूह बनाए गए और 2012 के मध्य तक, विद्रोह एक पूर्ण गृहयुद्ध में बदल गया।
ये भी पढ़ेंः- Syria War : सीरिया में नये युग की घोषणा, 2011 से चल रहा था गृहयुद्ध
रूस की मदद से वर्षों तक विद्रोही गुटों से लड़ा गृहयुद्ध
असद ने रूस, ईरान और लेबनान के हिजबुल्लाह की मदद से वर्षों तक विद्रोही गुटों से सफलतापूर्वक लड़ाई लड़ी। लेकिन हाल के दिनों में अचानक सक्रिय हुए विद्रोही समूहों ने सीरियाई राष्ट्रपति के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी क्योंकि असद के तीन सहयोगी – रूस, हिजबुल्लाह और ईरान इजरायल अपने स्वयं के संघर्षों में उलझे हुए थे।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, असद की सेना वर्षों के युद्ध से नष्ट हो गई थी और कई सैनिक उसकी तरफ से लड़ना भी नहीं चाहते थे। असद का पतन रूस और ईरान के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्होंने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया है।