नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु के एक 2 हजार साल पुराने खेल को मंजूरी दे दी। महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों द्वारा बनाए गए समान कानूनों को भी शीर्ष अदालत ने अनुमति दी है। न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि वह विधायिका के दृष्टिकोण को बरकरार रखेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए तमिलनाडु के ‘जल्लीकट्टू‘ व महाराष्ट्र की ‘बैलगाड़ी दौड़’ को मंजूरी दे दी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि विधायिका ने माना है कि यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। जब विधायिका ने कहा है कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत है तो न्यायपालिका अलग नजरिया नहीं रख सकती। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विधायिका इसे तय करने के लिए सबसे उपयुक्त है।
तमिल संस्कृति का हिस्सा है जल्लीकट्टू –
पीठ ने कहा कि जल्लीकट्टू का तमिलनाडु में कई वर्षों से अभ्यास किया जाता रहा है और इसे तमिल संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है। यह न्यायपालिका के दायरे में नहीं आता है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल दिसंबर में तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सांडों को काबू में करने वाले खेल ‘जल्लीकट्टू’ और ‘बैलगाड़ी दौड़’ की अनुमति देने वाली याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। एक लिखित जवाब में तमिलनाडु सरकार ने कहा था कि जल्लीकट्टू सिर्फ मनोरंजन नहीं है बल्कि इसकी महान ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत है।
ये भी पढ़ें..अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं में नमाज कक्षों की स्टडी के लिए बनी विशेष कमेटी
2014 में सांडों के इस्तेमाल पर लगा था बैन –
मई 2014 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम नागराजा मामले में, शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने तमिलनाडु में जल्लीकट्टू के लिए सांडों के इस्तेमाल और देश भर में बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध लगा दिया था। जल्लीकट्टू को अनुमति देने के लिए तमिलनाडु ने केंद्रीय कानून, द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट, 1960 में संशोधन किया।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)