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इस गांव में नजर आती है सरस्वती नदी

Maana Gaun

चमोली: आपने सरस्वती नदी (Saraswati River) के बारे में तो जरूर सुना होगा, लेकिन शायद ही देखा होगा। प्रयागराज में तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के मिलन को संगम के नाम से जाना जाता है, लेकिन यहां भी सरस्वती नदी (Saraswati River) नजर नहीं आती है। लेकिन, भारत-चीन सीमा के नजदीक बद्रीनाथ से केवल 3 किलोमीटर दूर माणा गांव के आखिरी छोर पर सरस्वती नदी नजर आती है।

भारत के आखिरी गांव के नाम से मशहूर माणा गांव के आखिरी छोर पर सरस्वती नदी (Saraswati River) को पूरे वेग में देखा जा सकता है। इस गांव के आखरी छोर पर चट्टानों के बीच से एक झरना गिरता हुआ दिखाई देता है। इसका पानी कुछ दूर जाते ही अलकनंदा नदी में मिलता है। इस जगह को केशव प्रयाग कहते हैं।

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इस नदी को लेकर स्थानीय लोगों में कई किवदंतियां प्रचलित हैं। यहां एक गुफा है, जिसे व्यास गुफा कहा जाता है। गुफा के पुजारी शंकरानंद उनियाल बताते हैं कि किवदंतियों के अनुसार, भगवान गणेश ऋषि वेद व्यास के कहने पर जब वेदों की रचना कर रहे थे, तब सरस्वती नदी के वेग के शोर से ऋषि को मंत्रोच्चारण में दिक्कत आ रही थी। इसी से क्रोधित होकर वेद व्यास ने सरस्वती को श्राप दिया कि वो आगे जाकर किसी को दिखाई नहीं देंगी।

इसके अलावा यहां एक पत्थर है, जिसे भीमपुल के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे भी एक प्राचीन कथा है। कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब रास्ते में सरस्वती नदी मिली। पांडव नदी को लांघकर पार नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था कि सरस्वती स्त्री है। और उन्हें लांघना न्यायसंगत नहीं होगा। ऐसे में भीम ने नदी के ऊपर एक पत्थर रख दिया और तब जाकर पांडवों ने पत्थर के सहारे नदी पार की। आज भी ये पत्थर भीमपुल के नाम से जाना जाता है।

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