कभी नहीं भूल सकता लाला लाजपत राय का बलिदान

किसी भी व्यक्ति के कार्यों का समापन भी उसके संसार से विदा लेने के साथ ही हो जाता है, परंतु उसके द्वारा समाज के लिए किए गए त्याग, समर्पण, बलिदान और सामाजिक योगदान उसे अमर बनाते हैं। भारत की आजादी की जंग में अंग्रेज सरकार से जूझने वाले सेनानियों में लाल, बाल, पाल का नाम अग्रगण्य है। यह बताना प्रासंगिक होगा कि लाला लाजपत राय का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ जो अब पाकिस्तान में है। बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरि एवं बिपिन चंद्र पाल का जन्म अविभाजित भारत के हबीबगंज सदर उप जिला अंतर्गत हुआ जो अब बांग्लादेश में है। इस प्रकार लाल, बाल, पाल तीनों नाम एक साथ होने पर किन्हीं तीन व्यक्तियों के एक साथ होने मात्र की जानकारी ही नहीं देते अपितु तत्कालीन अखंड भारत का बोध कराते हैं।

इन तीन विभूतियों में से एक लाला लाजपत राय ने 18 जनवरी 1865 में पंजाब में (अविभाजित भारत) उर्दू फारसी के सरकारी शिक्षक मुंशी राधाकृष्ण अग्रवाल और गुलाबदेवी अग्रवाल के यहां जन्म लिया। प्रारंभिक शिक्षा राजकीय उच्च मध्य विद्यालय रेवाड़ी में हुई। पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे। इसलिए कानून की पढ़ाई के लिए 1880 में लाहौर के कॉलेज में प्रवेश लिया। वहां उनकी भेंट राष्ट्रवादी लाला हंसराज और पं. गुरुदत्त से हुई। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1884 में अपने पिता के पास रोहतक आ गए और वकालत करने लगे। हिसार के अलावा लाहौर उच्च न्यायालय में भी वकालत की। 1914 में वकालत छोड़कर दयाल सिंह के साथ मिलकर पंजाब नेशनल बैंक तथा लक्ष्मी बीमा कंपनी भी स्थापित की। इस बीमा कंपनी का 1956 में भारतीय जीवन बीमा निगम में विलय कर दिया गया। सर्वेंट्स ऑफ द पीपल सोसाइटी (लोक सेवा मंडल) जैसे सामाजिक संगठन को स्थापित किया।

बचपन से ही देशसेवा की ललक थी। वो इटली के महान क्रांतिकारी जोसेफ मेजिनी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे तथा स्वामी दयानंद से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने पंजाब में आर्य समाज को लोकप्रिय बनाया एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया। यह विद्यालय वर्तमान में डीएवी स्कूल व कालेज के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने यंग इंडिया, दुखी भारत, भारत पर इंग्लैंड का कर्ज, आर्य समाज, भारत का राजनीतिक भविष्य, भगवत गीता का संदेश, भारत की राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या और संयुक्त राज्य अमेरिका एक हिंदू प्रभाव आदि पुस्तकों के साथ मैजिनी, गैरीबाल्डी, शिवाजी और श्रीकृष्ण की जीवनी लिखीं। इसके बाद आर्य समाज के समाचार पत्र आर्य गजट के संस्थापक संपादक बने। वे हिंदू समाज में जाति व्यवस्था और छुआछूत को समाप्त करने के हिमायती थे। पिछड़ी जातियों के लोगों को वेद और मंत्र पढ़ने का अधिकार देने के पक्षधर थे। मां क्षय रोग से पीड़ित थीं। इसलिए आम जनता के मुफ्त इलाज की व्यवस्था हेतु गुलाब देवी चेस्ट हॉस्पिटल खोला। वर्तमान में गुलाब देवी मेमोरियल अस्पताल पाकिस्तान के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक है। वे भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करने वाले नेताओं में से एक थे। उनकी क्रांतिकारी लेखनी और ओजस्वी वाणी दोनों ने उनके प्रभाव का विस्तार किया। किसान आंदोलन का समर्थन करने के कारण फिरंगी सरकार ने 1907 में बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया। लॉर्ड मिंटो सबूत पेश नहीं कर पाया तो उसी वर्ष वापस स्वदेश आ गए। वे अमेरिका गए। वहां उन्होंने इंडियन होम रूल लीग, मासिक पत्रिका यंग इंडिया तथा हिंदुस्तान सूचना सेवा संघ की स्थापना की। भारत आकर सक्रिय राजनीति में भाग लिया। उन्हें पंजाब केसरी का संबोधन मिला ।उनका मानना था कि “जीत की ओर बढ़ने के लिए हार और असफलता कभी-कभी आवश्यक घटक होते हैं।” जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद अंग्रेजों के विरुद्ध प्रदर्शन किया। असहयोग आंदोलन का पंजाब में नेतृत्व किया। इसके फलस्वरूप 1921 से 1923 के बीच लाला जी को जेल में डाल दिया गया। साइमन कमीशन का विरोध किया तो अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर क्रूरतापूर्वक लाठियां बरसाईं। लालाजी बुरी तरह घायल हो गए। उन्होंने कहा- “मैं घोषणा करता हूं कि आज मुझ पर हुआ हमला भारत में ब्रिटिश शासन के ताबूत मेंआखिरी कील साबित होगा।” इसके बाद 17 नवंबर 1928 को भारत मां के इस वीर सपूत ने देश की स्वतंत्रता के लिए प्राणों की आहुति दे दी।

शिवकुमार शर्मा