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भविष्य की आर्थिक संभावनाओं को लेकर कुछ लोग आश्वस्त तो कुछ बने हुए हैं निराशावादी: सर्वे

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नई दिल्लीः कुछ राज्यों में जहां लोग अपने भविष्य की वित्तीय संभावनाओं के बारे में उत्साह के साथ आशावादी बने हुए हैं, वहीं कुछ अन्य राज्यों के लोग अपने परिवारों की भविष्य की वित्तीय संभावनाओं के बारे में निराशावादी दिखाई दे रहे हैं। सीवोटर सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई है। सीवोटर की ओर से पिछले साल के पांच चुनावी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेश में कराए गए सर्वे में लोगों का यह विचार उभरकर सामने आया है। चार राज्यों - असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल - और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में एक विशेष सर्वेक्षण कराया गया था।

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इस दौरान देश के सामने मौजूद सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों पर जनता के मूड और राय जानने के लिए कई सवाल पूछे गए। भविष्य की संभावनाओं पर व्यापक रूप से भिन्न राय काफी आश्चर्यजनक रही, क्योंकि उत्तरदाताओं ने अधिकांश अन्य विषयों और मुद्दों पर एक ही राय व्यक्त की। पश्चिम बंगाल के लोग अपने भविष्य को लेकर सबसे ज्यादा निराशावादी नजर आए। अगले एक साल में उनके भविष्य के जीवन स्तर के बारे में पूछे जाने पर, उत्तरदाताओं में से 58 प्रतिशत ने कहा कि यह बिगड़ जाएगा, जबकि 21 प्रतिशत ने कहा कि इसमें सुधार होगा। अन्य 11 प्रतिशत ने कहा कि जीवन स्तर जैसा है, वैसा ही रहेगा।

पड़ोसी असम के लोग ज्यादा आशावादी दिखाई थे। यहां 38 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि अगले एक वर्ष में उनके जीवन स्तर में सुधार होगा, लगभग 29 प्रतिशत की राय थी कि यह बिगड़ जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि असम में 25 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि इस मुद्दे पर उनकी कोई राय नहीं है। केरल आशावादियों और निराशावादियों के बीच समान रूप से बंटा हुआ नजर आया। यहां 33 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि उनका जीवन स्तर अगले एक वर्ष में खराब हो जाएगा, लगभग 31 प्रतिशत ने माना कि इसमें सुधार होगा।

तमिलनाडु के लोग असामान्य रूप से आशावादी दिखाई दिए और लगभग 45 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि अगले एक वर्ष में उनके जीवन स्तर में सुधार होगा। इसके ठीक विपरीत, केवल 13 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनका जीवन स्तर खराब होगा। सीवोटर सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश भारतीय परिवार महंगाई और बढ़ते खचरें की चुभन महसूस कर रहे हैं और उनका मानना है कि पिछले एक साल में बढ़ते खचरें का प्रबंधन करना मुश्किल होता जा रहा है। तमिलनाडु में, लगभग दो-तिहाई उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें बढ़ते खचरें का प्रबंधन (मैनेज) करना मुश्किल हो रहा है। अन्य 22 प्रतिशत ने कहा कि खर्च वास्तव में बढ़ गया है, मगर वे इसका प्रबंधन करने में सक्षम रहे हैं।

पड़ोसी केरल में, लगभग 62 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उनके लिए बढ़ते खचरें का प्रबंधन करना मुश्किल हो रहा था, जबकि अन्य 25 प्रतिशत की राय है कि खर्चे बढ़ गए हैं, फिर भी वे मैनेज कर पा रहे हैं। अन्य राज्यों में भी स्थिति उतनी ही विकट नजर आ रही है। असम में, तीन में से दो उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें बढ़ते खचरें का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल रहा है, जबकि अन्य 18 प्रतिशत ने दावा किया कि खर्च बढ़ गया है, वे बस प्रबंधन करने में सफल रहे हैं। पश्चिम बंगाल राज्यों से सबसे अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित प्रतीत हुआ नजर आया है। कम से कम 74 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने दावा किया कि उनके लिए बढ़ते खचरें का प्रबंधन करना बहुत मुश्किल हो रहा है। अन्य 16 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें खर्चे बढ़ते तो महसूस हुए हैं, लेकिन वे इसका प्रबंधन करने में भी सक्षम रहे हैं।

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