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पुण्यतिथि पर विशेष: प्रखर समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया ने जगाई थी गोवावासियों में आजादी की अलख

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लखनऊः आज महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी चिंतक और राजनेता डॉ. राममनोहर लोहिया की 54वीं पुण्यतिथि है। हमारे देश में तमाम ऐसे महापुरुष हुए जिनका नाम व काम लोगों के बीच आज भी ज़िंदा है। इनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर, पंडित दीन दयाल उपाध्याय व डॉ. राम मनोहर लोहिया प्रमुख है। इन विचारकों, चिंतकों को उनके परिवार ने नहीं, बल्कि इनके अनुयायियों ने न केवल चिर प्रासंगिक बनाया बल्कि अमर कर देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए यह काम किया विंश्वनाथ प्रताप सिंह व कांशीराम ने तो लोहिया के लिए मुलायम सिंह यादव ने। उन्होंने उत्तर प्रदेश राजनीति में लोहिया के विचारों वाली की समाजवादी पार्टी बनाई। इस दल का नाम ही डॉ. लोहिया के को समर्पित रहा। पार्टी के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव डॉ. राम मनोहर लोहिया के सच्चे भक्त हैं।

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भारतीय राजनीति और आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया का पूरा जीवन काभी उतार-चढ़ाव से भरा है। आज उनके आदर्श और नाम पर देश में कई राजनीतिक दल सक्रिय है। उनके नाम से आज एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं संचालित हो रही है। 23 मार्च 1910 को जन्मे डॉ राम मनोहर लोहिया ने पं. जवाहर लाल नेहरू की सरकार के खिलाफ भी आवाज उठाई। 12 अक्टूबर 1967 को दुनिया को अलविदा कहने वाले लोहिया पर गांधी के विचार हमेशा जिंदा रहेंगे।

गोवा की आजादी में लोहिया का सक्रिय भूमिका

महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी चिंतक और राजनेता डा. राममनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है। संयोग से यह वर्ष गोवा क्रांति दिवस की 75वीं एवं गोवा की आजादी का 60वां सालगिरह भी है। डा. राममनोहर लोहिया ने 18 जून, 1946 को मडगांव में 451 वर्षो की पुर्तगाली सालाजारशाही औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गोमंतकों में संघर्ष करने का जज्बा पैदा किया था। 18 जून, 1946 गोवा की आजादी के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित अविस्मरणीय दिन है। शायद यही वजह है कि गोवावासी स्वयं को डॉ. लोहिया का ऋणी मानते हैं, जबकि डॉ. लोहिया कहा करते थे-मेरा गोवा पर नहीं, गोवा का मुझ पर ऋण है।

तमाम नागरिक स्वतंत्रता एवं प्रतिबंधों के बावजूद डॉ. लोहिया गोवा आए और गोवावासियों को अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने की प्रेरणा दी। इस दौरान कई बार उनकी गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन पुर्तगाली निजाम उनके हौसले को पस्त नहीं कर सका। गोवा मुक्ति संघर्ष में डॉ. लोहिया की अग्रणी भूमिका होने से गोवा मुक्ति संघर्ष समूचे भारत की लड़ाई बन गई। देश के चारों दिशाओं से सेनानियों का जत्था गोवा मुक्ति संग्राम में शामिल होने लगा। उन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में एक थे त्रिदिब चौधुरी। जो तत्कालीन पूर्वी बंगाल के ढाका में जन्मे त्रिदिब बाबू एक स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ और लोहिया के घनिष्ठ मित्र भी थे। त्रिदिब बाबू वर्ष 1955 में गोवा मुक्ति आंदोलन में डा. लोहिया की अपील पर शामिल हुए थे। पुर्तगाली शासन में उन्हें बारह वर्षो की सजा मिली थी, लेकिन उन्नीस महीने की कैद के बाद उन्हें मुक्त कर दिया गया।

आजादी की अलख धीरे-धीरे विशाल होती गई

डॉ. लोहिया द्वारा 18 जून, 1946 को जलाई गई आजादी की अलख धीरे-धीरे विशाल होती गई। इस आजादी की लड़ाई में देश के कई योद्धा शहीद हुए। अनेकों ने पीड़ादायक देह यातनाएं सहीं। हजारों को कारागृह में बंदी बनाया गया। इस तरह गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने त्याग भावना के साथ अपने खून-पसीने तथा आंसूओं के अघ्र्य अर्पित किए, जिसके परिणामस्वरूप 19 दिसंबर, 1961 को सैकड़ों वर्षो की लड़ाई के बाद गोवा मुक्त हुआ। गोवा के स्वतंत्र होते ही भारत की अधूरी स्वतंत्रता को पूर्णत्व प्रदान हुआ। हालांकि इतिहास में न तो गोवा मुक्ति संघर्ष के बारे में समग्र रूप से लिखा गया है और न ही इस बारे में शोध अध्ययन को तरजीह दी गई। नतीजतन देश की युवा पीढ़ी गोवा के गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता संघर्ष के बारे लोग आज भी अज्ञान है।

इतिहासकारों को गोवा और गोमंतक समाज के इतिहास पर समग्रता से कलम चलाने की पहल करनी होगी। गोवा की नई पीढ़ियों को गोवा मुक्ति आंदोलन और डा. लोहिया समेत सैकड़ों-हजारों मुक्ति योद्धाओं के विषय में भली प्रकार जानने की जरूरत है। डा. राममनोहर लोहिया की मृत्यु के साढ़े पांच दशक हो चुके हैं। उनके विचारों की प्रासंगिकता दिनों दिन बढ़ती जा रही है। देश की नौजवान पीढ़ी को उनके सिद्धांतों से अवगत कराने के लिए प्रसार करने की जरूरत है।

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