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नाग पंचमी विशेषः इस मंदिर के सांपों ने बचाई थी नानाराव पेशवा की जान, आज भी पूजा करते हैं इच्छाधारी नाग-नागिन

कानपुरः श्रावण का माह चल रहा है और जहरीलें सांपों की बात करते ही लोगों के रूह कांप जाती है। अक्सर लोगों ने यह सुना होगा कि आज सांप काटने से किसी मानव की जान चली गई है लेकिन कानपुर का एक ऐसा मंदिर है, जहां आसपास क्षेत्रों में किसी को भी सांप ने नहीं काटा है। इतना ही नहीं भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार नानाराव पेशवा ने इसी मंदिर में छिपकर अंग्रेज सेना से अपनी जान बचायी थी।

सांपों के झुंड के फनकार को सुनकर भाग गयी थी अंग्रेजी सेना
इस संबंध में मंदिर के मुख्य पुजारी शैलेन्द्र मिश्रा ने बताया कि उनके पूर्वज बताते हैं कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम के शिल्पकार नानाराव पेशवा इस मंदिर में हर सोमवार को दर्शन को आते थे। कहीं से पता चला तो अंग्रेज सेना ने उन्हें पकड़ने के लिए योजना बनायी। इसके तहत नानाराव जैसे ही मंदिर के गेट पर पहुंचे, तभी अंग्रेज सेना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की तो जान बचाने के लिए वह मंदिर में छिप गए। उनको पकड़ने के लिए जैसे ही अंग्रेज सेना ने मंदिर में कदम रखा उसी समय चारों ओर से सैंकड़ों सांप निकल आए जिन्हें देखकर अंग्रेज सेना वहां से भाग खड़ी हुई थी।

आज तक सांप ने किसी को नहीं काटा
यह मंदिर कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से करीब तीन किलोमीटर कंपनी बाग के निकट स्थापित है और खेरेपति बाबा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के निर्माण के बाद आज तक सांप ने किसी को नहीं काटा है। यहीं वजह है कि आज भी इस मंदिर प्रांगण में जहरीले सांपों का मेला लगता है। दूर-दूर से सपेरे इस मेले में पहुंचते हैं और उनके पास नाग-नागिन के अलावा हर प्रजाति के जहरीले सांप होते हैं।

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दैत्यगुरु शुकराचार्य ने बनवाया था मंदिर
मुख्य पुजारी शैलेन्द्र मिश्रा बताते है कि उनके पूर्वज बताते है कि दैत्य गुरु शुकराचार्य ने यह मंदिर बनवाया था। दरअसल दैत्य गुरु ने अपनी पुत्री का विवाह जाजमऊ के राजा आदित्य के साथ किया था। एक दिन जब वह पुत्री का हालचाल लेने के लिए अपने महल से निकले तो कंपनी के बाग के निकट रुककर विश्राम करने लगे। तभी उन्हें स्वप्न में शेषनाग ने दर्शन दिए और कहा कि यहां पर शिवलिंग की स्थापना की जाए, क्योंकि वे यहां पर वास करना चाहते हैं। अचानक शुकराचार्य की नींद टूट गई। इसके बाद उन्होंने विधि-विधान से मंदिर का निर्माण कराते हुए शिवलिंग की स्थापना करवायी। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि श्रावण मास में रातों-रात मंदिर वाली जगह पर शेषनाग खुद ही स्थापित हो गए थे। बाद में इस मन्दिर का निर्माण उन्होंने करवाया था।

इच्छाधारी नाग-नागिन करते हैं पहली पूजा
मंदिर के पुजारियों का ऐसा मानना है कि नागपंचमी के एक दिन पहले साफ-सफाई की जाती है। मंदिर में एक भी फूल चाहे वह शिवलिंग पर हो हटा दिया जाता है। नागपंचमी के दिन पूजा के लिए जब कपाट खोला जाता है तो शिवलिंग पर जोड़े से पुष्प चढ़े होते हैं। हालांकि उनके स्वरूप के बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं है।

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