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विदेशी सहयोग से भारत में ही बनेंगी प्रोजेक्ट-75आई की छह पनडुब्बियां

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नई दिल्ली: हिन्द महासागर में चीन का मुकाबला करने के लिए 'मेक इन इंडिया' के तहत विदेशी सहयोग से छह एआईपी फिटेड पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करने की प्रक्रिया सरकार ने मंगलवार को आरएफपी जारी करके आगे बढ़ा दी है। 14 साल से लंबित 43 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना को 04 जून को औपचारिक मंजूरी मिली थी। इन पनडुब्बियों को नौसेना के बेड़े में शामिल होने में लगभग एक दशक लगेगा। रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत भारतीय नौसेना के लिए पी-75आई श्रेणी की 6 पनडुब्बियों का निर्माण भारत में ही किया जाएगा। इस परियोजना की लागत 40,000 करोड़ रुपये से अधिक है।

भारत में ही एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) फिटेड 06 नई पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण करने के लिए प्रोजेक्ट-75आई को पहली बार नवम्बर 2007 में प्रारंभिक मंजूरी मिली थी। मोदी सरकार ने मई 2017 में 'मेक इन इंडिया' प्लेटफॉर्म के तहत इस परियोजना को देश के सामने रखा था। रणनीतिक भागीदारी मॉडल के तहत दो भारतीय फर्मों लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (एमडीएल) को चुना गया है। निर्माण में सहयोग के लिए पांच विदेशी कंपनियों में जर्मनी की थायसीनक्रूप मरीन सिस्टम, रूस की रुबिन डिज़ाइन ब्यूरो, स्पेन की नवानतिया, फ्रांसीसी जहाज निर्माता कंपनी नेवल ग्रुप और साउथ कोरिया की देवू शिपबिल्डिंग एंड मरीन इंजीनियरिंग कंपनी को चुना गया है।

सरकार की ओर से आज आरएफपी जारी होने के बाद दोनों भारतीय रणनीतिक साझेदार एमडीएल और एलएंडटी अपनी तकनीकी और वित्तीय बोलियां जमा करने के लिए पांच चयनित विदेशी कंपनियों में से किसी एक के साथ गठजोड़ करेंगे। सामरिक मॉडल के तहत भारतीय कंपनी अपनी विदेशी भागीदार कंपनी के साथ मिलकर देश में उत्पादन इकाई बनाएगी और पनडुब्बियों की डिजाइन तथा प्रौद्योगिकी हासिल करेगी। पी-75आई प्रोजेक्ट के तहत बनने वाली यह पनडुब्बियां भूमि-हमला क्रूज मिसाइलों और अधिक पानी के भीतर सहनशक्ति के लिए वायु-स्वतंत्र प्रणोदन के साथ होंगी। परमाणु क्षमता से लैस न होने वाली पनडुब्बियों को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) सिस्टम के जरिए स्टील्थ कपैसिटी दी जाती है।

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हिन्द महासागर क्षेत्र में बढ़ती चीनी युद्धपोतों की चहलकदमी से नौसेना को पारंपरिक और परमाणु दोनों तरह की नई पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है। भारत को कम से कम 18 पारंपरिक पनडुब्बियों, छह एसएसएन और चार परमाणु-संचालित पनडुब्बियां चाहिए। पी-75आई प्रोजेक्ट के तहत पहली पनडुब्बी को रोल आउट करने में कम से कम एक दशक का समय लगेगा। नौसेना के पास वर्तमान में केवल 12 अन्य पुरानी डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं, जिनमें से केवल आधी चालू हैं और अगले साल एक के सेवानिवृत्त होने की उम्मीद है। भारत के पास परमाणु-संचालित एक मात्र आईएनएस अरिहंत पनडुब्बी है। यह परियोजना भारत में पनडुब्बियों की स्वदेशी डिजाइन और निर्माण क्षमता को एक बड़ा बढ़ावा देगी।